बंगाल में अंतिम चरण का मतदान शनिवार सुबह से शुरू हो जाएगा. जिन 9 सीटों पर बंगाल में वोटिंग हो रही है वो सभी सीटें अभी टीएमसी के पास ही हैं. पर मुख्य रूप इस चरण में सीपीएम को मिल रहे जनसमर्थन से टीएमसी के माथे पर बल पड़ गए हैं.
हालांकि बीजेपी की चिंता भी कम नहीं है. क्योंकि सीपीएम को बढ़त हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों से मिल रही है. इंडियन एक्सप्रेस ने टीएमसी के एक वरिष्ठ नेता के हवाले से लिखा है कि यह स्पष्ट है कि वाम-कांग्रेस गठबंधन का वोट शेयर बढ़ेगा, लेकिन चिंता का कारण यह है कि ‘हम नहीं जानते कि वे किसके वोट छीनने जा रहे हैं, अगर उन्हें अल्पसंख्यक वोटों का एक हिस्सा मिलता है, तो इससे हमें नुकसान होगा. पर अगर वे अपना हिंदू वोट बैंक फिर से हासिल कर लेते हैं, तो भाजपा हार जाएगी.’
यही कारण है कि 2 सीटें ऐसी हैं जहां बीजेपी ये मानकर चुनाव लड़ रही है कि उसकी जीत तय है. उसमें सबसे प्रमुख है जादवपुर और दूसरे पर है दमदम. बीजेपी इन दोनों सीटों पर अपने मन माफिक माहौल देख रही है. क्योंकि यहां जादवपुर और दमदम में सीपीएम का कैंडिडेट कड़ी टक्कर दे रहा है. साथ में पिछली बार चुनावों में बीजेपी ने यहां से बेहतर प्रदर्शन भी किया था. जाहिर है बीजेपी को उम्मीद तो दिखेगी ही. लेकिन तीसरी सीट बशीरहाट बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गई है. कारण है संदेशखाली. संदेशखाली को लेकर बीजेपी ने जो आंदोलन चलाया उसी का कारण रहा कि यह जगह पूरे देश में चर्चा का केंद्र बन गया. आइये 3 सीटों पर बीजेपी के लिए क्या उम्मीद है उसकी पड़ताल करते हैं.
जादवपुर
2019 के लोकसभा चुनावों में बंगाल की इस हाई प्रोफाइल सीट पर दूसरे नंबर पर रहने वाली भाजपा इस बार कमल खिलाने के लिए जबरदस्त मेहनत कर रही है. कभी वाममोर्चा का गढ़ रही इस सीट को फिर से हासिल करने के लिए सीपीएम ने भी पूरा जोर लगा दिया है. यही कारण है टीएमसी डरी हुई है. उसे लग रहा है कि यहां त्रिकोणीय मुकाबले में वो फंस गई है. कोलकाता के दक्षिणी हिस्से में स्थित यह सीट वामपंथियों का सबसे मजबूत गढ़ रही है. यहां स्थित जादवपुर विश्वविद्यालय वामपंथी छात्र संघों का अड्डा रहा है. इसी लोकसभा सीट से सोमनाथ चटर्जी, पूर्व गृह मंत्री इंद्रजीत गुप्त, तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी आदि चुने जाते रहे हैं.
पिछले तीन लोकसभा चुनावों से यहां लगातार जीत रही टीएमसी की वर्तमान सांसद अभिनेत्री मिमी चक्रवर्ती हैं. हालांकि, तृणमूल ने इस बार उनकी जगह अभिनेत्री व पार्टी की युवा इकाई की राष्ट्रीय अध्यक्ष सायोनी घोष को मैदान में उतारा है. भाजपा की ओर मुकाबले में हैं डॉ. अनिर्बान गांगुली, जो पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं. माकपा ने सृजन भट्टाचार्य को टिकट दिया है. पिछली बार यहां वामपंथियों को पीछे छोड़ दूसरे नंबर पर रहने वाली भाजपा के लिए इस बार माहौल मुफीद है. दरअसल इस सीट पर मुस्लिम मतदाताओं का वर्चस्व तो है. पर साथ ही हिंदीभाषी मतदाता भी अच्छी तादाद में हैं. आईएसएफ और एसयूसीआई (सी) जैसी पार्टियां यहां मुकाबले को रोचक बना रही हैं. नौशाद सिद्दीकी भांगड़ से आइएसएफ विधायक हैं, जो जादवपुर लोस क्षेत्र में ही आता है.
माकपा, आईएसएफ और एसयूसीआई जैसी तीन पार्टियों की नजर मुस्लिम वोटों पर है, जाहिर है कि टीएमसी के लिए यह चिंता का विषय है. बीजेपी को उम्मीद है कि पिछली बार की तरह इस बार भी हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण होगा.
दमदम
पश्चिम बंगाल की दमदम लोकसभा सीट पर चुनावी गणित में पांच साल पहले के चुनावी समीकरणों की तुलना में भारी बदलाव नजर आ रहा है. पीटीआई की एक रिपोर्ट बताती है कि मौजूदा टीएमसी सांसद सौगत रॉय के लिए भगवा दल पहले की तुलना में अधिक कठिन हो गया है. दरअसल चुनाव विशेषज्ञों का मानना है कि माकपा द्वारा मजबूत प्रत्याशी उतारने से यहां मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है. माकपा के सुजान चक्रवर्ती केंद्रीय समिति के सदस्य और राज्य की राजनीति में जाने-माने चेहरे हैं. हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि कांग्रेस समर्थित चक्रवर्ती को केवल वोट काटने वाला समझना भूल भी साबित हो सकता है. क्योंकि इस बार माकपा जिस तरह मेहनत कर रही है उससे यह भी हो सकता है कि वो टीएमसी और बीजेपी को पीछे छोड़ते हुए सीट जीत ले.
सौगत रॉय टीएमसी टिकट पर दमदम से चौथी बार चुनाव लड़ रहे हैं और उन्हें अच्छी तरह पता है कि टीएमसी विरोधी मतदाताओं के भाजपा की ओर मुड़ जाने के बाद 2019 में उनकी जीत का अंतर 2014 की तुलना में लगभग एक लाख वोटों से कम हो चुका है. जबकि दोनों अवसरों पर उनका वोट लगभग समान रहा. यानि बीजेपी साल दर साल, चुनाव दर चुनाव आगे बढ़ रही है.
कोलकाता के सेंटर फॉर स्टडीज इन सोशल साइंसेज के राजनीति विज्ञानी मैदुल इस्लाम ने पीटीआई को बताते हैं कि ‘दमदम उन 20 लोकसभा सीटों में से एक है, जहां वाम-कांग्रेस गठबंधन पश्चिम बंगाल में अपनी ताकत दिखा सकता है. मतलब सीधा है कि माकपा की मजबूत होती स्थिति से बीजेपी को भी नुकसान हो सकता है. क्योंकि ऐसा नहीं है कि माकपा केवल मुस्लिम वोट में सेंध लगाएगी. अगर हिंदू वोट में सेंध लगाने में माकपा सफल होती है तो निश्चित है कि बीजेपी को नुकसान होगा. हालांकि बीजेपी के उम्मीदवार शीलभद्र दत्ता, जो इस क्षेत्र के पूर्व तृणमूल विधायक थे और विधानसभा चुनावों से पहले दिसंबर 2020 में बीजेपी में शामिल हो गए थे, का कहना है कि लोग संसदीय चुनाव में माकपा को वोट क्यों देंगे, जिसने राष्ट्रीय प्रासंगिकता ही खो दी है?
दमदम में, जहां बड़ी संख्या में लोग बांग्लादेश के प्रवासी हैं, नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के क्रियान्वयन को खुश हो सकते हैं. इसके साथ ही दमदम में वर्तमान सांसद अनधिकृत रियल एस्टेट निर्माणों की बढ़ती संख्या और उद्योगों में ठहराव के कारण स्थानीय असंतोष का शिकार हो सकते हैं.
बशीहाट संसदीय सीट
देश भर में पिछले 3 महीने से चर्चा में आया संदेशखाली अब किसी परिचय को मोहताज नहीं है. बीजेपी ने यहां कुछ खास लोगों द्वारा महिलाओं से रेप और जमीन कब्जे को बड़ा मु्द्दा बनाया. ईडी के अफसरों की पिटाई के चलते भी यह जगह पूरे देश में सुर्खियों बना. संदेशखाली जिस लोकसभा सीट में स्थित है उसका नाम बशीरहाट है. यहां से टीएमसी की सांसद चर्चित अभिनेत्री नुसरजहां रही हैं जिन्हें इस बार टिकट नहीं मिला है. टीएमसी ने यहां से 2009 में लोकसभा सांसद रहे हाजी नुरुल इस्लाम को टिकट दिया है. हाजी का सीपीआई (एम) के निरापद सरदार और बीजेपी की रेखा पात्रा से कड़ा मुकाबला है.
संदेशखाली के खलनायक टीएमसी नेता शेख शाहजहां को मीडिया ने गब्बर की तरह दिखाया. फिलहाल शाहजहां इस समय जेल में हैं. शाहजहां सहित उनके दो साथियों शिबू हाजरा और उत्तम सरदार पर महिलाओं से गैंगरेप करने और जमीन हड़पने का आरोप है. राशन घोटाले में शाहजहां शेख के घर पर ईडी की रेड भी पड़ी थी. कई महीनों फरारी के बाद शाहजहां शेख अब पुलिस के कब्जे में है. पर टीएमसी ने इन सबके पीछे बीजेपी की साजिश बताया था. कई महिलाओं के ऐसे टेप भी वायरल हुए जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ लोगों के दबाव और लालच में उन्होंने आरोप लगाए थे.
बीजेपी की उम्मीदवार रेखा पात्रा संदेशखाली कांड की एक पीड़िता ही हैं. पर 54 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाली इस सीट पर बीजेपी की सारी उम्मीद मुस्लिम वोटों के बंटवारे पर ही है. 2019 में बीजेपी का वोट परसेंटेज इस सीट पर 30.3 प्रतिशत था. जबकि तृणमूल का वोट शेयर 54.9 परसेंट है जो बीजेपी से बहुत अधिक है.