Punjab Lok Sabha Election: पंजाब की 13 लोकसभा सीटों पर 1 जून, 2024 यानी शनिवार को 2,14,61,739 से ज्यादा मतदाता वोट डालेंगे। पंजाब में इस बार जिस तरह कई सीटों पर चार प्रमुख दलों में मुकाबला हो रहा है और कुछ पर तो बहुकोणीय लड़ाई दिख रही है, नतीजे चौंकाने वाले आ सकते हैं।
करीब तीन दशकों के बाद पंजाब में बीजेपी अपनी सहयोगी रही शिरोमणि अकाली दल के बगैर अकेले चुनाव लड़ रही है। लेकिन, इस बहुकोणीय मुकाबले में खासकर शहरी चुनाव क्षेत्रों में इस बार उसका प्रभाव बढ़ता नजर आ रहा है।
पांच साल में आम आदमी पार्टी का बढ़ गया है जनाधार
वैसे मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों में बीजेपी वहां अभी चौथे नंबर की पार्टी है। 2022 के विधानसभा में धमाकेदार प्रदर्शन के बाद सत्ताधारी आम आदमी पार्टी का जनाधार बहुत ही विशाल हो चुका है। कांग्रेस वहां प्रमुख विपक्षी पार्टी है और अकाली दल का पंथिक सिखों वाले वोट बैंक पर परंपरागत तौर पर पकड़ रही है।
पंजाब में कैसा है चुनावी समीकरण?
लेकिन, इस बार बहुकोणीय मुकाबले की वजह से पंजाब में पूरा चुनावी समीकरण बदला नजर आ रहा है। अकाली दल का पहले वाला प्रभाव नजर नहीं आ रहा। उसके परंपरागत पंथिक वोटरों में बिखराव हो चुका है। खासकर शहरी इलाकों में हिंदू वोटरों की गोलबंदी की संभावना बढ़ गई है। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में किसान आंदोलन अभी बड़ा मुद्दा बना हुआ है।
पंजाब में भाजपा को क्यों है बढ़त की उम्मीद?
पंजाब में भारतीय जनता पार्टी को 2019 में अकाली दल के साथ गठबंधन में 2 सीटें मिली थीं। लेकिन, इस बार पार्टी को लगता है कि बहुकोणीय मुकाबले की वजह से उसे शहरी इलाकों में फायदा मिल सकता है। इसकी वजह भी है। पंजाब के मतदाताओं में अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण एक बड़े मुद्दे के रूप में उभरा है। खासकर महिला वोटरों में राम मंदिर का मुद्दा काफी प्रभाव है और पार्टी इसे एक बड़ी सफलता के रूप में देख रही हैं। पंजाब में करीब 38.5% हिंदू वोटर हैं और बीजेपी को शहरी सीटों पर इसका लाभ मिलने का पूरा भरोसा है। 1996 से 2022 के पंजाब विधानसभा चुनावों के पहले तक भाजपा-अकाली दल का जो गठबंधन काम कर रहा था, उसमें बीजेपी शहरी क्षेत्रों में उसके लिए हिंदू वोटरों को गोलबंद कर पाती थी और अकाली दल अपने सहयोगी को पंथिक वोटों से समर्थन दिलाती थी। भाजपा ने इस बार पंथिक वोट जोड़ने के लिए गुरमीत सिंह सोढ़ी और नौकरशाह तरणजीत सिंह संधू जैसे सिख नेताओं को भी अपने साथ जोड़ लिया है।
जबतक पंजाब की राजनीति अकाली दल और कांग्रेस की राजनीति में बंटी हुई थी, अकाली दल पूरी तरह से पंथिक वोट के दम पर राजनीति करता था। वहीं कांग्रेस पंजाबी हिंदुओं, उदारवादी सिखों और दलित वोट बैंक पर निर्भर थी। प्रकाश सिंह बादल और कैप्टन अमरिंदर सिंह के जमाने तक राज्य की राजनीति इसी तरह चली।
लेकिन, बादल अब हैं नहीं। कैप्टन बीजेपी में आ चुके हैं, लेकिन एक तरह से सियासी संन्यास की ही अवस्था से गुजर रहे हैं। उनकी पत्नी परनीत कौर जरूर पटियाला से बीजेपी के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं। इस तरह से बीजेपी ने उदारवादी सिखों में अपनी पैठ बनाने की पूरी कोशिश की है।