राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मंगलवार को प्रथम एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन का उद्घाटन किया। इस दौरान उन्होंने बौद्ध धर्म की शिक्षाओं की सराहना की। राष्ट्रपति ने कहा कि विश्व जहां संघर्ष और जलवायु संकट का सामना कर रहा है, ऐसे समय में बौद्ध धर्म के पास मानव समुदाय को देने के लिए बहुत कुछ है।
इनकी शिक्षाएं संकट के समय काफी उपयोगी हैं। उन्होंने कहा कि बौद्ध धर्म की शिक्षाओं में करुणा शब्द शामिल है, जिसकी विश्व को आज जरूरत है।
शांति और अहिंसा का संदेश दे रहा बौद्ध धर्म
राष्ट्रपति ने कहा कि आज दुनिया कई मोर्चों पर संकट का सामना कर रही है। इस वक्त आपसी संघर्ष के साथ ही जलवायु संकट भी खूब बढ़ रहा है। ऐसे वक्त में बौद्ध धर्म के पास मानव जाति को देने के लिए बहुत कुछ है। बौद्ध धर्म के अलग-अलग स्कूल संप्रदायवाद का मुकाबला करना सिखा रहे हैं। धर्म का मुख्य संदेश शांति और अहिंसा को फैलाना है। उन्होंने कहा कि एशिया को मजबूत करने के लिए बुद्ध धम्म के बारे में भी चर्चा की जानी चाहिए। बुद्ध धम्म एशिया और विश्व में वास्तविक शांति ला सकता है। यह शांति ऐसी है जो न केवल शारीरिक हिंसा से मुक्त है, बल्कि लालच और घृणा से भी दूर करती है।
बौद्ध साहित्य हमारी साझा विरासत
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि पुराने समय में चीनी और अन्य विद्वानों द्वारा अनुवादित की गईं बौद्ध साहित्यिक कृतियों ने मूल कृतियों के नष्ट हो जाने के बाद भी संरक्षण में योगदान दिया। बौद्ध साहित्य हमारी साझा विरासत है। पाली और प्राकृत को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने पर राष्ट्रपति ने कहा कि इससे दोनों भाषाओं के ग्रंथों के संरक्षण और पुनरोद्धार में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि शिखर सम्मेलन बुद्ध की शिक्षाओं की हमारी साझा विरासत के आधार पर सहयोग को मजबूत करने में एक लंबा रास्ता तय करेगा।”
संस्कृति मंत्रालय करा रहा सम्मेलन
दो दिवसीय शिखर सम्मेलन का आयोजन संस्कृति मंत्रालय की ओर से अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (आईबीसी) के सहयोग से किया जा रहा है। सम्मेलन का विषय एशिया को मजबूत बनाने में बुद्ध धम्म की भूमिका है। मंत्रालय ने कहा कि बुद्ध धम्म भारत की संस्कृति का एक मूल्यवान घटक है। इससे देश को विदेश नीति और राजनयिक संबंध मजबूत करने में मदद मिली है। शिखर सम्मेलन भारत की एक्ट ईस्ट नीति के तहत हो रहा है। यह एशिया के सामूहिक, समावेशी और आध्यात्मिक विकास पर आधारित है।