नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने तीन दिवसीय अमेरिका के राजकीय यात्रा के दौरान राष्ट्रपति जो बाइडन और प्रथम महिला जिल बाइडन से मुलाकात की।
इस दौरान उन्होंने राष्ट्रपति और उनकी पत्नी को कई तोहफे दिए। हालांकि, पीएम मोदी द्वारा दिए गए तोहफे में सबसे अधिक चर्चा 7.5 कैरेट के हीरे की हो रही है। इस हीरे को पर्यावरण अनुकूल प्रयोगशाला में विकसित किया गया है।
लैब में आधुनिक तरीके से किया जाता है तैयार
मालूम हो कि पीएम मोदी द्वारा अमेरिका के प्रथम महिला को दिया गया तोहफा अपने आप में अनमोल है। इस हीरे को लैब में आधुनिक तरीके से बनाया गया है। मालूम हो कि भारत सरकार लैब वाले हीरे को बनाने के लिए इसके बिजनेस को भारत सरकार सहायता भी कर रही है।
प्रयोगशाला में विकसित हीरे को सिंथेटिक हीरे के रूप में भी जाना जाता है। हालांकि, वर्तमान में लैब में बनने वाले हीरे को ग्रीन डायमंड भी कहा जा रहा है। यह कृत्रिम हीरे प्राकृतिक रूप से जमीन के नीचे विकसित हीरे से बिल्कुल ही एक जैसे होते हैं। इसका भौतिक और रासायनिक गुण में कोई अंतर नहीं होता है।
जमीन से निकलने वाले हीरे के बनने में लगता है लंबा समय
पूरी दुनिया में जो डायमंड मिलता है उसको जमीन के अंदर से निकाला जाता है, जिसको नेचुरल तरीके से बनने में काफी लंबा समय लग जाता है। हालांकि, उस हीरे को निकालने के बाद उसको कई प्रोसेस से गुजरना पड़ता है। कई जगहों पर हीरा निकालने के लिए खून भी बहाना पड़ता है। कई बार अफ्रीका में लोगों पर अत्याचार कर डायमंड निकाला जाता है, जिसके कारण उसको ब्लड डायमंड भी कहा जाता है।
40 दिन में तैयार हो जाता है कृत्रिम हीरा
वहीं, आज के समय में जो लैब में बनने वाला डायमंड किसी क्रांति से कम नहीं है। इसको करीब दो से तीन माह में बनाया जा सकता है और दोनों में कोई अंतर नहीं दिखता है। यहां तक की जमीन से निकलने वाले डायमंड और कृत्रिम डायमंड दोनों का रासायनिक और भौतिक गुण एक समान ही होता है। कृत्रिम डायमंड को करीब 1500 डिग्री तापमान में बनाया जाता है। पीएम मोदी ने जिल बाइडन को जो हीरा उपहार के रूप में दिया है उसको बनाने में बनने में करीब 40 दिन का समय लगा है।
लैब में कैसे बनता है हीरा
पीएम मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की पत्नी जिल बाइडन को जो हीरा तोहफे में दिया है उसको बनाते समय एक कैरेट में सिर्फ 0.028 ग्राम कार्बन उत्सर्जित हुआ है। इस हीरे को पर्यावरण अनुकूल प्रयोगशाला में विकसित किया जाता है, जिसमें सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा जैसे संसाधनों की मदद ली जाती है। लैब में बनने वाले हीरा के लिए पहले कार्बन को कलेक्ट किया जाता है।
इसके बाद हाई प्रेशर और हाई टेंपरेचर के जरिये आर्टिफिशियल हीरा यानी लैब ग्रोन डायमंड बनाया जाता है। इसको बनाने के लिए कार्बन सीड की जरूरत पड़ती है। इसे माइक्रोवेव चैंबर में रखकर डिवेलप किया जाता है। इसे तेज तापमान में गरम करने के बाद प्लाज्मा बॉल बनाई जाती है। डायमंड बनाने के लिए कई हफ्तों तक कण को रखा जाता है जिसके बाद वो कुछ हफ्तो में डायमंड में बदल जाते हैं। इसके बाद उसकी कटिंग और पॉलिशिंग होती है। इस हीरे को बनने में कुल 40 दिन का समय लगता है।