भारत और दक्षिण अफ़्रीका के बीच जारी मौजूदा सिरीज़ की शुरुआत से ठीक पहले मेरी मोहम्मद सिराज से प्रीटोरिया में बात हुई थी.
वह टीम को दिए गए होटल के बाहर निश्चिंचतता के साथ अकेले बैठकर कॉफ़ी पी रहे थे.
मैंने उनसे पूछा कि आप इतने कम सालों में स्टार बन गए हैं, कुछ दबाव महसूस नहीं होता?
इस पर सिराज का मासूमियत भरा जवाब आया – स्टार विस्टार, कुछ नहीं भाई साब, बस अच्छी गेंद डालनी है, कोई भी फॉर्मेट हो.
इसके लगभग एक हफ़्ते बाद न्यूलैंड्स में हुए टेस्ट मैच में सिराज़ ने जिस ख़ूबसूरती के साथ विपक्षी टीम की बल्लेबाज़ी क्रम को बिखेर दिया.
इस मौके पर लगा कि जैसे सिराज़ को ख़तरनाक गेंदबाज़ी करने की आदत सी पड़ गयी है, फॉर्मेट चाहें कोई भी हो.
इससे कुछ महीने पहले श्रीलंका के ख़िलाफ़ एशिया कप के फाइनल में भी सिराज़ ने ऐसा ही हैरतअंगेज़ स्पैल डाला था.
सिराज से ज़्यादा चर्चा मिली पिच को
लेकिन अफ़सोस की बात बस यही है कि पहले दिन का खेल ख़त्म होने के बाद जितनी चर्चा सिराज को मिलनी चाहिए थी उससे ज़्यादा पिच को मिल रही है.
आखिर पहले दिन के खेल में 23 विकेट गिरना हर रोज या दशक नहीं बल्कि सदियों में एक बार होता है.
टीम इंडिया के लिए मात्र शून्य के स्कोर पर आखिरी 6 विकेट खोना तो उनके क्रिकेट इतिहास में पहली बार हुआ है.
मेज़बान टीम के बल्लेबाज़ी कोच (सलाहकार) एश्वेल प्रिंस जब प्रेस कांफ्रेस में आये तो इस पिच का बचाव करने के लिए उनके पास किसी तरह का जवाब नहीं था.
उनका तर्क था कि उन्हें भी अंदेशा नहीं था कि ये पिच इतनी तेज़ और असमान बाउंस वाली रहेगी.
उन्होंने कहा कि अगर ऐसा उन्हें पता होता था कि वो गेंदबाज़ी आक्रमण में विविधता के लिए स्पिनर केशव महाराज को क्यों चुनते?
ज़ाहिर सी बात है कि अफ़्रीकी खेमे में इस बात का अहसास है कि शायद भारत को पटखनी देने की छटपटाहट में कहीं पिच क्यूरेटर के अति-उत्साह ने मेज़बान टीम को संकट में तो नहीं डाल दिया है.
रोहित शर्मा का आक्रामक रुख
जिस पिच पर महज़ चार बल्लेबाज़ों ने दहाई का आंकड़ा पार किया हो और जहां किसी भी बल्लेबाज़ से अर्धशतक तक नहीं बना हो तो ये मानना सही होगा कि इस पिच पर जितनी देर तक टिक गये उतने देर तक अपनी खैर मनाओ.
शायद ये बात टीम इंडिया के कप्तान रोहित रोहित शर्मा को बखूबी पता थी जिन्होंने अपनी बल्लेबाज़ी में वन-डे वर्ल्ड कप वाले आक्रामक ओपनर के नज़रिये की झलक दी.
कोहली जब तक पिच पर थे, नियंत्रण में दिख रहे थे लेकिन वो भी एक बड़ी पारी खेलने में नाकाम ही रहे.
इतना तो तय है कि ये मैच पांचवे दिन या चौथे दिन तो दूर की बात तीसरे दिन भी जाता नहीं दिख रहा है.
लेकिन अगर इस नाटकीय टेस्ट को जीतकर टीम इंडिया को अगर सिरीज़ बराबरी का सपना पूरा करना है तो एक बार फिर से रोहित और विराट के बल्ले से ही नहीं बल्कि उनके अनुभव और सूझबूझ और मार्ग-दर्शन की ज़रुरत भारत के युवा बल्लेबाज़ों को होगी.
अगर दूसरे दिन जसप्रीत बुमराह, सिराज और मुकेश कुमार की तिकड़ी से भारत को ज़बरदस्त उम्मीदें होंगी तो दबाव युवा बल्लेबाज़ों पर भी लक्ष्य का पीछा करते तय होगा.
क्या यशस्वी जायसवाल आख़िरी पारी को दौरे की सबसे यादगार पारी बना सकते हैं? क्या शुभमन गिल ब्रिसबने में तीन साल पहले 91 रनों की शानदार पारी खेलने के बाद टेस्ट क्रिकेट में एक निर्णायक पारी खेल सकते हैं?
क्या श्रेयस अय्यर पहले टेस्ट में शतक बनाने के बाद अफ्रीका में भले ही शतक ना बना पायें लेकिन क्या एक कीमती अर्धशतक बना सकते हैं?
इन सबसे भी ज़्यादा अहम ये सवाल कि क्या कोहली और रोहित शर्मा अपने टेस्ट करियर में क्या एक बार भी बिना टेस्ट सिरीज़ साउथ अफ्रीका से हारे वापस देश लौट सकते हैं?
यही आखिरी सवाल टीम इंडिया के दो दिग्गजों के लिए शायद सबसे बड़ी बात हो इस टेस्ट का नतीजा भारत के पक्ष में कर दे.
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