Ayodhya: 9 नवंबर अयोध्या के इतिहास में एक ऐतिहासिक तिथि बन गयी है। 9 नवंबर 2019 को देश के सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में रामजन्मभूमि परिसर पर हिन्दुओं का दावा स्वीकार करते हुए उसे हिन्दू पक्ष को देने का फैसला किया था। इसीलिए चार साल बाद जब अयोध्या में रामजन्मभूमि पर रामलला का भव्य मंदिर आकार ले रहा है तब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूरी कैबिनेट के साथ अयोध्या पहुंचकर न केवल रामलला का दर्शन किया बल्कि वहां अपनी कैबिनेट की बैठक भी की।
कैबिनेट की बैठक में अन्य निर्णयों के साथ एक महत्वपूर्ण निर्णय अयोध्या तीर्थ क्षेत्र विकास परिषद के गठन का भी लिया गया। इस तीर्थक्षेत्र विकास परिषद के गठन के साथ न केवल अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण कार्य संपन्न होगा बल्कि पूरे अयोध्या परिक्षेत्र का एक तीर्थक्षेत्र के रूप में विकास होगा। इस मौके पर योगी आदित्यनाथ ने कहा कि “अयोध्या नये युग की ओर जा रही है। पूरी दुनिया आज रामनगरी की ओर आकर्षित हो रही है।”
इसमें कोई दो राय नहीं कि जब से अयोध्या में रामलला टेंट से बाहर आये हैं वहां जानेवाले दर्शनार्थियों की संख्या भी बढ़ी है। वरना लंबे समय तक अयोध्या एक ऐसे उपेक्षित कस्बे के रूप में ही रहा जहां के मुख्य देवता का मंदिर ही विवादों में बना रहा। वैसे भी अयोध्या कोई बड़ा शहर नहीं बल्कि एक कस्बा है जो फैजाबाद कस्बे से सटा हुआ है। भारत के अन्य तीर्थक्षेत्रों जैसी इसकी महत्ता जरूर है लेकिन आर्थिक रूप से यह एक विपन्न शहर था।
राजनीतिक विवाद और पुलिस प्रशासन की भारी मौजूदगी के कारण लोगों ने अयोध्या जाना लगभग बंद कर दिया था। सिर्फ आसपास के स्थानीय लोग ही हनुमानगढ़ी या फिर सख्त पहरे में टेन्ट में विराजमान रामलला का दर्शन करने आते थे। तीर्थस्थानों की संपन्नता वहां आनेवाले तीर्थयात्रियों पर ही निर्भर करती है। लेकिन जहां तीर्थयात्री ही न आयें, वहां संपन्नता भला कैसे आयेगी?
फिर शासन प्रशासन का भी सारा जोर अयोध्या विवाद के कारण अयोध्या के विकास के बजाय वहां शांति व्यवस्था बनाये रखने पर था। 2017 तक कमोबेश यही स्थिति बनी रही। मानों अयोध्या से राम वनवास पर नहीं गये बल्कि अयोध्या से वैभव और संपन्नता ने ही वनवास ले लिया था। 2017 में उत्तर प्रदेश में भाजपा की प्रचंड जीत के बाद और कुछ हुआ या न हुआ, एक नगर के रूप में अयोध्या का वनवास खत्म हो गया। योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने जिनके दादागुरु महंत दिग्विजय नाथ ने ही 1949 में बाबरी मस्जिद के भीतर रामलला विराजमान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। योगी आदित्यनाथ के लिए अयोध्या का रामजन्मभूमि मंदिर मात्र राजनीतिक या धार्मिक आस्था का ही विषय नहीं था। यह उनके लिए गुरु ऋण उतारने का भी अवसर था इसलिए मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने न केवल सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में प्रदेश सरकार की ओर से हर प्रकार की मांग को पूरा करवाया बल्कि अयोध्या के विकास पर भी ध्यान दिया। मुख्यमंत्री बनते ही उसी साल अयोध्या में उन्होंने दीपावली से एक दिन पहले भव्य दीपोत्सव की शुरुआत की जो आज अयोध्या का प्रमुख आकर्षण बन गया है। उस समय भी योगी ने कहा था कि उत्तर प्रदेश को देश दुनिया का पर्यटन हब बनाना है और इसकी शुरुआत आज अयोध्या से हो रही है। इसमें कोई शक नहीं कि घरेलू हों या वैश्विक पर्यटक, सबसे बड़ी संख्या में वो उत्तर प्रदेश ही आते हैं। इसका कारण यहां के धार्मिक स्थल ही हैं जिसमें काशी, प्रयाग और मथुरा वृन्दावन आनेवाले पर्यटक ही प्रमुख हैं। इसके अलावा आगरा का ताजमहल भी पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है। लेकिन काशी, मथुरा, प्रयागराज आनेवाले पर्यटक शायद ही अयोध्या का प्लान करते थे। इसका कारण उससे जुड़ा राजनीतिक विवाद तो था ही, अयोध्या में पर्यटकों और तीर्थयात्रितों के लिए आधारभूत ढांचे का अभाव भी एक बड़ा कारण था। राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला भले ही नवंबर 2019 में आया लेकिन अयोध्या शहर के वनवास का खात्मा 2017 में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के साथ ही हो गया था। 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट का रामजन्मभूमि पर फैसला आने के बाद न सिर्फ जन्मभूमि पर रामलला के मंदिर का निर्माण कार्य शुरु हुआ बल्कि समूचे अयोध्या के पुनर्निमाण का खाका खींचा गया।
जब योगी मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने अन्य कार्यों के साथ धूल धूसरित अयोध्या को नये सिरे से सजाने संवारने का काम भी शुरु किया। 2017 में दीपोत्सव की शुरुआत ने मानों अयोध्या का वनवास खत्म कर दिया। इसके अगले साल 2018 में न सिर्फ दीपोत्सव हुआ बल्कि राम की पैड़ी के उन मंदिरों का रंग रोगन कराया गया जिन पर दशकों से बदरंग होने की उदासी छायी हुई थी। उसी साल कोरिया की महारानी किम जुंग शुक भी बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुईं जिनके बारे में कहा जाता है कि उस राजघराने की पहली महारानी अयोध्या की राजकुमारी थीं। आज भी कोरिया के लोग इसी वजह से अयोध्या से अपना विशेष लगाव रखते हैं। इस समय अयोध्या में 3,000 करोड़ रुपए की परियोजनाओं पर काम चल रहा है। इसमें नव्य अयोध्या बसाने से लेकर सड़कों और सड़क किनारे बनी दुकानों, मकानों का कायाकल्प किया जा रहा है। अयोध्या कैण्ट (पूर्व में फैजाबाद) से लता मंगेशकर चौक तक के रामपथ को फोर लेन किया जा रहा है और पूरी सड़क की साज सज्जा भी की जा रही है। इसके बाद भक्ति पथ और जन्मभूमि पथ को भी न सिर्फ चौड़ा किया गया है बल्कि उन्हें किसी आधुनिक शहर की तर्ज पर विकसित किया जा रहा है। इन सड़कों के किनारे जो दुकानें या मकान थे उन्हें भी एक मानक डिजाइन पर तैयार करवाया जा रहा है ताकि इन सड़कों से गुजरते हुए व्यक्ति को अयोध्या की अलौकिक आभा के दर्शन हों।
एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन, सड़कों और चौक चौराहों को भव्य बनाने के साथ ही राम की पैड़ी को भी नये तरह से सजाया संवारा जा रहा है। जगह जगह पार्किंग का निर्माण, अयोध्या के आसपास की 8 झीलों का सुन्दरीकरण, चौदह कोसी परिक्रमा मार्ग का सुन्दरीकरण, सूर्यकुण्ड के सूर्य मंदिर का विकास, गुप्तार घाट के सौंदर्यकरण के साथ ही अयोध्या के सभी मंदिरों के आसपास यात्री सुविधाओं का विकास और सौंदर्यकरण शामिल है। इनमें कुछ योजनाएं दीर्घकालीन हैं जैसे नव्य अयोध्या, मंदिर स्थापत्य संग्रहालय, पंच सितारा होटल आदि का विकास लंबी अवधि में होगा। लेकिन 22 जनवरी 2024 को राम मंदिर के प्रथम चरण के पूरा होने के साथ ही सड़कों, चौक चौराहों का काम पूरा कर लिया जाएगा। उम्मीद की जा रही है तब तक न केवल नया अयोध्या स्टेशन भवन संचालित हो जाएगा बल्कि एयरपोर्ट भी चालू कर दिया जाएगा। जबकि बाकी योजनाएं क्रमिक रूप से पूरी की जाती रहेंगी और 2030 तक अयोध्या को एक भव्य तीर्थनगरी के रूप में विकसित कर लिया जाएगा।
22 जनवरी के कार्यक्रम को ध्यान में रखते हुए गुप्तार घाट के पास 75 एकड़ क्षेत्र में एक रामचरितमानस अनुभव केन्द्र विकसित किया जा रहा है जिसमें एक टेन्ट सिटी भी होगी। यह सब लंबे समय तक धूल धूसरित रही अयोध्या के लिए एक कायाकल्प जैसा होगा। अयोध्या में रामलला ही अपने मंदिर में विराजमान नहीं होंगे बल्कि योगी सरकार के प्रयास से अयोध्या का पौराणिक वैभव भी अपने आधुनिक साज सज्जा के साथ वापस लौटेगा। यही अयोध्या के वनवास की समाप्ति भी होगी।