Ghoshi bypoll: घोसी उपचुनाव को जीतने के लिए अखिलेश यादव ने जहां अपने चाचा शिवपाल को तो भाजपा ने अपनी पूरे मंत्रीपरिषद को एक तरह से मैदान में उतार दिया था। लेकिन अखिलेश के PDA के नारे के सामने बाबा का बुलडोजर नहीं चल पाया और कई दलों की सवारी कर चुके दारा को हार का सामना करना पड़ा है।
घोसी विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में अब तक सपा के उम्मीदवार सुधाकर सिंह को 33वें राउंड तक 124427 वोट मिले। भाजपा के दारा सिंह चौहान दूसरे नंबर पर हैं। सुधाकर सिंह 42759 वोट से आगे हैं। बीजेपी प्रत्याशी दारा सिंह को कुल 81668 वोट मिले हैं। अब लगभग सपा प्रत्याशी की जीत तय मानी जा रही है। इस चुनाव को जीतने के लिए अखिलेश यादव ने जहां अपने चाचा शिवपाल को तो भाजपा ने अपनी पूरे मंत्रीपरिषद को एक तरह से मैदान में उतार दिया था। लेकिन अखिलेश के PDA के नारे के सामने बाबा का बुलडोजर नहीं चल पाया और कई दलों की सवारी कर चुके दारा को हार का सामना करना पड़ा है।
ये है घोसी का जातीय समीकरण
घोसी विधानसभा सीट पर कुल 4.37 लाख वोटर हैं। अनुमानों के मुताबिक, यहां मुस्लिम वोटरों की तादाद करीब 90 हजार के आसपास हैं। दलित वोटर भी करीब 80 से 85 हजार के बीच हैं। अनुमान के मुताबिक, घोसी में सवर्ण मतदाता करीब 70 से 80 हजार के बीच हैं। इनमें भूमिहार 45000, राजपूत 16000 और ब्राह्मण 6 हजार के करीब हैं। पिछड़े समुदाय से ताल्लुक रखने वाले वोटरों की तादाद करीब 2 लाख है।
अखिलेश यादव ने दिया था PDA का नारा
अखिलेश यादव 2022 के यूपी चुनाव के बाद से सपा के पक्ष में नया सियासी, सामाजिक समीकरण गढ़ने की कोशिश में लगे हैं। उन्होंने ‘पीडीए’ यानी ‘पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यकों’ का फॉर्म्युला अपनाया है जो घोसी उपचुनाव में हिट साबित हुआ। बीएसपी उपचुनाव लड़ नहीं रही थी लिहाजा उसके कोर वोटरों यानी दलित समुदाय को लुभाने के लिए एसपी और बीएसपी दोनों ने पूरा जोर लगाया। नतीजों से ऐसा लग रहा है कि एसपी को दलित वोटों को साधने में कामयाबी मिली है। चुनाव प्रचार के लिए घोसी आए सपा प्रमुख ने ये दावा किया था कि सपा का PDA बाबा के बुलडोजर को रोक देगा और यह साबित भी हुआ।
नहीं चला CM योगी के बुलडोजर का जादू
घोसी उपचुनाव में प्रचार के लिए भाजपा ने अपने दर्जनों मंत्रियों को जिम्मेदारी थी। खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रचार करने के लिए घोसी गए। वहां उन्होंने बुलडोजर का भी जिक्र किया। लेकिन जनता की नब्ज नहीं पकड़ पाए। भाजपा ने स्वतंत्रदेव सिंह, विजय लक्ष्मी गौतम, दयाशंकर सिंह, एके शर्मा, नरेंद्र कश्यप, असीम अरुण, दानिश आजाद अंसारी जैसे मंत्रियों को जिम्मेदारी सौंपी। इसके अलावा डेप्युटी चीफ मिनिस्टर केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक भी मोर्चा संभाले हुए थे।
मंत्रियों के अलावा कई सांसदों और विधायकों को भी बीजेपी ने चुनाव प्रचार में उतारा था। सपा के यादव वोट बेस में सेंध लगाने के लिए बीजेपी ने आजमगढ़ के सांसद और भोजपुरी फिल्मों के सुपरस्टार दिनेश लाल यादव निरहुआ और राज्यसभा सांसद संगीता यादव को मोर्चे पर लगाया था। दोनों वहां कैंप कर रहे थे। निरहुआ ने रोड शो के जरिए माहौल बनाने की कोशिश की। गैर-यादव ओबीसी वोटरों को साधने के लिए बीजेपी के सहयोगी दलों सुभासपा, निषाद पार्टी और अपना दल के नेता भी लगातार जनसंपर्क और रैलियां कर रहे थे।
पहले ही परीक्षा में फेल हो गए राजभर
सुभासपा चीफ ओम प्रकाश राजभर, निषाद पार्टी के अध्यक्ष डॉक्टर संजय निषाद की ताबड़तोड़ रैलियां कराई गईं। बीजेपी विधायक जय प्रकाश निषाद भी निषाद वोटरों को साधने के लिए लगातार सक्रिय थे। लेकिन बीजेपी के एड़ी-चोटी का जोर लगाने के बावजूद समाजवादी पार्टी बाजी मार ले गई। वहीं, सुभासपा के ओम प्रकाश राजभर ने भी अपना पूरा जोर लगा दिया। उन्होंने अपने पूरे कैडर के साथ वहां डेरा डाल दिया लेकिन NDA के उम्मीदवार को जीत नहीं दिला पाए। दबी जुबान में भाजपा नेता भी ये कहने लगे है कि राजभर अपनी पहली परीक्षा में ही फेल हो गए।