Centre Government Fact Check Units: केंद्र सरकार को बॉम्बे हाई कोर्ट से शुक्रवार को बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) नियमों में 2023 के संशोधनों को भारत के संविधान का उल्लंघन करने वाला और असंवैधानिक बताया है।
दरअसल, अदालत ने सोशल मीडिया पर इसके संचालन के बारे में झूठी या भ्रामक सूचनाओं की पहचान करने और उनका खंडन करने के उद्देश्य से फैक्ट चेक इकाइयां स्थापित करने के केंद्र सरकार के अधिकार का मूल्यांकन करने के बाद सुनाया है।
केंद्र सरकार की फैक्ट चेक यूनिट
बता दें केंद्र सरकार ने “इंटरमीडियरी गाइडलाइन” और “डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड रूल्स 2021” में संशोधन किया था। जिसमें कहा गया था कि केंद्र सरकार को फैक्ट चेक यूनिट बनाने का अधिकार होगा। ये फैक्ट चेक यूनिट को अगर सरकार के कार्य से जुड़ी कोई खबर गलत या भ्रामक है तो उसे संबंधित वेबसाइट को इसे हटाना होगा। हालांकि इसके दायरे में सोशल मीडिया वेबसाइट और वेब होस्टिंग सर्विस ही थीं लेकिन न्यूज वेबसाइट नहीं थीं।
वहीं अब मुंबई कोर्ट ने ये फैसला इस चिंता के बीच सुनाया गया कि ये संशोधन कानून के समक्ष समानता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सिद्धांतों को कमजोर कर सकते हैं।
आईटी नियमों में संशोधन असंवैधानिक
‘टाई-ब्रेकर’ जज की भूमिका निभा रहे जस्टिस अतुल चंद्रूकर ने निष्कर्ष निकाला कि आईटी नियमों में ये संशोधन समानता (अनुच्छेद 14) और मुक्त भाषण (अनुच्छेद 19) की संवैधानिक गारंटी के अनुरूप नहीं हैं।
कोर्ट ने क्या कहा?
दो जजों की बेंच के बीच अलग-अलग राय के कारण यह निर्णय आवश्यक हो गया था, जिसके कारण जस्टिस चंद्रूकर ने संशोधनों के खिलाफ निर्णायक रुख अपनाया। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा “मेरा मानना है कि संशोधन भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 19 का उल्लंघन करते हैं।
कैसे पहुंचा केंद्र की फैक्ट चेक यूनिट का मामला
कोर्ट न्यायालय की जांच चार कानूनी चुनौतियों के कारण हुई, जिसमें स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन और न्यूज ब्रॉडकास्ट एंड डिजिटल एसोसिएशन की याचिका शामिल है। याचिका में दिया गया था ये तर्क पिछले साल अप्रैल में दायर की गई इन याचिकाओं में संशोधनों के खिलाफ इस आधार पर तर्क दिया गया था कि वे आईटी अधिनियम की धारा 79 के विधायी दायरे से बाहर हैं और समानता और पेशेवर स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। सूचना प्रौद्योगिकी (Intermediary Guidelines and Digital Media Code of Conduct) नियम, 2021 के संशोधित नियम 3, जो तथ्य फैक्ट चेक यूनिट के गठन की अनुमति देता है, को याचिकाओं द्वारा विशेष रूप से लक्षित किया गया था। आलोचकों और याचिकाकर्ताओं ने समान रूप से सेंसरशिप की संभावना और ऑनलाइन बनाम पारंपरिक प्रिंट मीडिया के असमान व्यवहार पर चिंता जताई।
फैक्ट चेक इकाइयां मौलिक अधिकारों का उल्लंघन
विभाजित पीठ में न्यायमूर्ति पटेल ने चिंता व्यक्त की कि फैक्ट चेक इकाइयां मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कर सकती हैं, विशेष रूप से संविधान के अनुच्छेद 19(1)(जी) के तहत पेशे की स्वतंत्रता से संबंधित अधिकारों का, जिससे सेंसरशिप का जोखिम बढ़ सकता है। इसके विपरीत, न्यायमूर्ति गोखले ने संशोधनों का बचाव किया, पक्षपात के दावों को ‘निराधार’ बताते हुए खारिज कर दिया और जोर देकर कहा कि इन परिवर्तनों ने मुक्त भाषण पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया है या उपयोगकर्ताओं के लिए दंडात्मक परिणाम नहीं लाए हैं।
क्यों अहम है ये फैसला?
अब, न्यायमूर्ति चंद्रूकर के निर्णायक फैसले के बाद, मामले को अंतिम फैसले के लिए खंडपीठ के समक्ष प्रस्तुत किया जाना तय है। यह निर्णय भारत में डिजिटल सामग्री के विनियमन और संवैधानिक स्वतंत्रता की सुरक्षा पर चल रही बहस में एक महत्वपूर्ण क्षण है। इस निर्णय के परिणाम डिजिटल युग में सरकारी निगरानी और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच संतुलन के लिए दूरगामी प्रभाव डाल सकते हैं।