हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने मध्य प्रदेश , राजस्थान और छत्तीसगढ़ जीत हासिल की। बीजेपी ने तीनों राज्यों में मुख्यमंत्रियों का चुनाव कर हर किसी को चौंकाया है। जब ये नाम सामने आए तो हर कोई आश्चर्यचकित रह गया। इन नामों को आगामी लोकसभा चुनाव से जोड़कर देखा जाने लगा।
विश्लेषकों का मानना है कि, मध्य प्रदेश , राजस्थान और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों का चयन आश्चर्य से अधिक रणनीतिक हैं। भाजपा की तीन मुख्यमंत्रियों की च्वॉइस सिर्फ मध्य प्रदेश और राजस्थान में जाति संतुलन या छत्तीसगढ़ में आदिवासी वोटों को मजबूत करने तक सीमित नहीं है।
राज्यों का चुनाव जीतना एक कठिन काम है। इन चुनावों में बीजेपी ने किसी भी राज्य में मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया था। इसके बाद भी बीजेपी इन राज्यों में चुनाव जीतने में सफल रही। बीजेपी ‘मोदी की गारंटी’ पर निर्भर रही। जिसे अब वह और आगे ले जाने की कोशिश कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने इस कठिन कार्य को अवसर में बदल दिया है और पार्टी के लिए ये समय की मांग भी थी।
गुरुवार को छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने पद की शपथ ली और शुक्रवार को भजन लाल शर्मा ने राजस्थान के सीएम पद की शपथ ली। कुछ राजनीतिक पंडितों का मानना है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में 543 सीटों में से 303 सीटें जीतने वाली भाजपा ने ये फैसला करके आगामी चुनावों में जीत हासिल कर ली है। उनका कहना है कि नए राज्य में जीत हासिल किए बिना बीजेपी के लिए उस प्रदर्शन को बेहतर करना लगभग असंभव है। इस परिदृश्य में हर एक सीट मायने रखती है। बीजेपी जैसी पार्टी किसी भी चुनावी फैक्टर को अछूता नहीं छोड़ना चाहेगी। जातीय राजनीति में भाजपा की भागीदारी उतनी स्पष्ट नहीं रही है। इसने ‘मंडल’ राजनीति के ख़िलाफ़ ‘कमंडल’ का इस्तेमाल किया था। इसने जाति-आधारित पार्टियों के खिलाफ हिंदुत्व, विकास के मुद्दों और राष्ट्रवाद के संयोजन का उपयोग किया है। जिसमें वह सफल भी रही।
यूपी और बिहार में यादव फैक्टर को सीमित करना
हालाँकि, भाजपा ने अन्य पिछड़ा वर्ग के वोटों को सफलतापूर्वक आकर्षित किया और पीएम मोदी ने खुद को ओबीसी के नेता के रूप में पेश किया। लेकिन ओबीसी के बीच एक प्रमुख समुदाय यादव ज्यादातर उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के साथ रहा है। बीजेपी अब इसमें सेंध लगाने की कोशिश कर रही है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में मोहन यादव को चुनकर भाजपा ने राज्य में अपने ओबीसी मतदाता आधार को मजबूत करने की कोशिश की है, जहां इस ब्लॉक की आबादी लगभग 50% है। पार्टी 2024 के चुनावों में यूपी और बिहार में यादवों से मिलने वाले झटके को कम करने की कोशिश करेगी। इससे भाजपा की जातिगत इंजीनियरिंग भी पूरी तरह से सामने आ गई है। जिसमें पार्टी ने दलित और ब्राह्मण जगदीश देवड़ा और राजेंद्र शुक्ला को उपमुख्यमंत्रियों के रूप में चुना है। पूर्व केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, जो ठाकुर हैं, उन्हें विधानसभा अध्यक्ष नियुक्त किया गया है।
छत्तीसगढ़ की राजनीति का सात राज्यों पर होगा असर
छत्तीसगढ़ में एक आदिवासी मुख्यमंत्री का चयन बीजेपी का एक पूर्ण मास्टरस्ट्रोक है। भाजपा ने छत्तीसगढ़ के सरगुजा और बस्तर के आदिवासी इलाके में 26 में से 22 सीटें जीतीं, जिससे पता चला कि कैसे आदिवासियों ने भगवा पार्टी को बड़े पैमाने पर वोट दिया। छत्तीसगढ़ किसी अन्य राज्य जैसा नहीं है। इसकी सीमा सात अन्य राज्यों के आदिवासी जिलों से लगती है। इसलिए जो बात छत्तीसगढ़ में होती है, वह छत्तीसगढ़ में नहीं रहती। इसका असर साथ के राज्यों पर पड़ता है। विष्णु देव साय अब छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री हैं। भाजपा ने आदिवासी सशक्तिकरण के अपने मुद्दे को आगे बढ़ाया है। जिसकी शुरुआत राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति भवन में जाने से हुई थी। अनुसूचित जनजातियों के लिए देश में 47 लोकसभा सीटें आरक्षित हैं। उनमें से चालीस पूर्वोत्तर राज्यों के बाहर हैं।
भाजपा ने राजस्थान की रणनीति बदली
राजस्थान में भजन लाल शर्मा को सीएम बनाया है। वह ब्राह्मण समाज से आते हैं। बीजेपी ने इस चुनाव के जरिए इस समुदाय को मरहम लगाने की कोशिश की है। कहा जा रहा है कि ब्राह्मणों के मन में पार्टी के लिए कुछ खटास है। जिसका वे दशकों से वफादारी से समर्थन करते रहे हैं। राजस्थान में ब्राह्मण एक छोटा समुदाय है, लेकिन कुछ पड़ोसी राज्यों में उनका बड़ा मतदाता आधार है। लेकिन बीजेपी ने मुख्यमंत्री पद की पसंद जातीय फैक्टर तक सीमित नहीं रखी है। भजन लाल शर्मा पहली बार विधायक बने हैं, और राज्य के किसी भी ऐसे खेमे से नहीं हैं जो किसी एक तरफ अपनी वफादारी रखता हो। न ही कोई शर्मा के खेमे का है। उनका चयन भाजपा नेतृत्व द्वारा एक स्पष्ट संकेत है कि आंतरिक लड़ाई से फल नहीं मिलेगा और 2024 के महत्वपूर्ण लोकसभा चुनाव से पहले इसे छोड़ना होगा। हालांकि भाजपा ने राजस्थान के उपमुख्यमंत्री के चयन में जाति की राजनीति को ध्यान में रखा है। जयपुर के पूर्व शाही परिवार की राजपूत दीया कुमारी और दलित प्रेमचंद बैरवा को राजस्थान का उपमुख्यमंत्री बनाया गया है।
तीनों राज्यों में भाजपा के पास एक आदिवासी, एक यादव और एक ब्राह्मण मुख्यमंत्री हैं। इसमें दो ब्राह्मण, दो दलित, एक ओबीसी और राजपूत उपमुख्यमंत्री हैं। भाजपा, जिसने हमेशा हिंदुत्व, विकास और राष्ट्रवाद के चुनावी मुद्दों के साथ जाति की राजनीति का मुकाबला करने की कोशिश की है। लेकिन इस बार उसने जाति संतुलन को लेकर अच्छा तरीका अपनाया है। लेकिन अब ये देखना दिलचस्प होगा कि, बीजेपी का ये नया प्रयोग 2024 के चुनावों में कितना सफल होता है। उनका नया प्रयोग वोटों को किस हद तक खींच पाएगा।