एनसीपी में शरद पवार का भतीजा वही राजनीति कर रहा है जिसके लिए उसके चाचा जाने जाते हैं। देखना यह है कि महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनने को बेताब अजीत पवार इस बार इस पार ही रहते हैं या उस पार चले जाते हैं।
Ajit Pawar : भाजपा से मेल मुलाकात की खबरों के बीच अजीत पवार भले ही यह कहें कि वह एनसीपी में हैं और रहेंगे लेकिन इतना तो तय है कि एनसीपी में सब कुछ सामान्य नहीं है। शुक्रवार 21 अप्रैल को मुम्बई में हुई राष्ट्रवादी कांग्रेस की महत्वपूर्ण बैठक में यह साफ दिखा। मुम्बई के घाटकोपर में शरद पवार की अध्यक्षता में एनसीपी की एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई, लेकिन इस महत्वपूर्ण बैठक में एनसीपी के सबसे महत्वपूर्ण नेता अजीत पवार को न्यौता नहीं दिया गया। अजीत पवार के पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों का बहाना बनाकर पार्टी ने इसे तूल न देने की कोशिश की है लेकिन अजीत पवार का इस बैठक में न आना बताता है कि राष्ट्रवादी पार्टी में अजीत पवार को लेकर सब कुछ सही नहीं चल रहा है।
इसका संकेत इस बात से भी मिलता है कि शुक्रवार को जहां एक ओर मुंबई की बैठक में एनसीपी प्रमुख शरद पवार अपने नेताओं को नरेन्द्र मोदी सरकार की कमियां गिना रहे थे वहीं दूसरी ओर पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के कारण न आ पाने वाले अजीत पवार पुणे में मोदी का गुणगान कर रहे थे। शरद पवार ने पुलवामा अटैक और गुजरात के नरोडा हिंसा मामले को लेकर केंद्र की मोदी सरकार पर हमला किया तो अपनी पार्टी के नेता और पूर्व मंत्री अनिल देशमुख, नबाव मलिक समेत तमाम विपक्षी नेताओं के खिलाफ ईडी, सीबीआई की कार्रवाई को लेकर भी केंद्र की मोदी सरकार को जमकर आड़े हाथ लिया।
वहीं, शुक्रवार को ही पुणे में अजीत पवार ने पुणे के एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जी भरकर प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि बीजेपी का जो भी करिश्मा है, वह सिर्फ नरेंद्र मोदी के कारण है। उन्होंने ही बीजेपी को देश भर में फैलाया है। मोदी ने देश के करोड़ों लोगों का विश्वास हासिल किया है। अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे नेता जो नहीं कर पाए, वह मोदी ने कर दिखाया। उनका करिश्मा नाकारा नहीं जा सकता। जब उनसे पूछा गया कि मोदी के बाद कौन? इस पर अजित पवार ने कहा कि वक्त आने पर वह इसका जवाब देंगे।
पवार परिवार की उठापटक
हालांकि भले ही अजीत पवार सार्वजनिक रूप से राष्ट्रवादी कांग्रेस के साथ होने की बात कर रहे हों लेकिन सच्चाई यही है कि शरद पवार का भतीजा वही कर रहा है जो करने के लिए शरद पवार जाने जाते हैं। मतलब साफ है अजीत पवार महाराष्ट्र की राजनीति में अपने बेहतर भविष्य की संभावना के लिए पिच तैयार कर रहे हैं।
दरअसल अजीत पवार इस बात को बेहतर तरीके से जानते हैं कि महाराष्ट्र और केन्द्र की राजनीति में भाजपा एक बड़ी ताकत बन चुकी है। ऐसे में उम्र के 63 वर्ष पूर्ण कर चुके अजीत पवार के लिए सक्रिय राजनीति के लिए बहुत ज्यादा समय नहीं है। तीन बार उपमुख्यमंत्री बन चुके अजीत दादा पवार अब एक बार मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं और उनकी यह महत्वाकांक्षा अब बिना भाजपा के सहयोग के संभव नही है। वो मुख्यमंत्री बनने के लिए कितने आतुर हैं इसका संकेत उनके इस बयान से मिलता है जिसमें शुक्रवार को उन्होंने पुणे में कहा कि “महाराष्ट्र में एनसीपी का मुख्यमंत्री बनने के लिए 2024 का इंतजार करने की जरूरत नहीं है।”
भाजपा के साथ जाने का एक कारण यह भी हो सकता है कि सिंचाई घोटाले के साथ चीनी मिल मामले में प्रवर्तन निदेशालय अजीत पवार और उनके परिवार से जुड़ी कंपनी की जांच कर रहा है। ऐसे में केन्द्रीय जांच एजेसियों से बचने के लिए भाजपा से जुड़ना एक कारण हो सकता है। इसके अलावा एक कारण पवार परिवार के अंदर की राजनीतिक उठापटक भी है।
एनसीपी प्रमुख शरद पवार 83 साल की उम्र में भी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सर्वेसर्वा हैं और सभी निर्णय वही लेते हैं। शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले भी कई निर्णय पार्टी में अपने पिता को आगे कर करवा लेती हैं और अजीत पवार के पास उसे स्वीकार करने के अलावा कोई चारा नही रहता। अजीत पवार चाहते हैं कि शरद पवार पार्टी की कमान अब उन्हे सौप दे। लेकिन पवार इसके लिए तैयार नहीं हैं। अजीत पवार का राष्ट्रवादी कांग्रेस को तोड़कर भाजपा के साथ जाने की रणनीति शरद पवार पर दबाव की राजनीति के रूप में भी देखी जा सकती है। अजीत पवार पार्टी अध्यक्ष को लेकर जल्द फैसला चाहते हैं।
बीजेपी को क्यों जरूरत है अजीत पवार की?
सीटों के लिहाज से महाराष्ट्र देश का दूसरा सबसे बड़ा राज्य है जहां 48 लोकसभा सीटें हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में मोदी को दो तिहाई सीटों के साथ लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने के लिए महाराष्ट्र की 48 सीटों में से ज्यादातर सीटें जीतना जरूरी होगा। इसके लिए अजीत पवार का साथ भाजपा की राह आसान कर देगा। पिछले माह ही कस्बापेठ विधानसभा सीट जिस पर जहां भाजपा का 24 साल से कब्जा था, कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस और उद्धव गुट ने मिलकर भाजपा से छीन ली। भाजपा के लिए यह एक झटका भी था और इसके पीछे छुपा हुआ संदेश भी। अगर यह तीनों दल मिलकर व्यवस्थित तरीके से लड़ते हैं तो 2024 के चुनाव और उसके तुरंत बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा को महाराष्ट्र में तगड़ा झटका दे सकते हैं।
क्या शिंदे की जगह अजीत पवार को मुख्यमंत्री बनायेगी भाजपा?
महाराष्ट्र में भाजपा ने शिवसेना को तोड़कर एकनाथ शिंदे के साथ मिलकर सरकार बना ली और सिर्फ 40 विधायकों के समर्थन के बाद भी एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बना दिया। शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने के पीछे उनका मराठा होना एक बड़ा कारण रहा है। महाराष्ट्र की राजनीति में मराठाओं का वर्चस्व है और 32 प्रतिशत वोट पर इस समुदाय का कब्जा है। भाजपा की नजर इसी वोट बैंक पर है। मराठा वोट बैंक को अपने पाले में करने की कोशिश कर रही भाजपा को इस बात का अच्छे से पता है कि मराठा क्षत्रप शरद पवार का इस वोट बैंक पर अब भी दबदबा बना हुआ है। पश्चिम महाराष्ट्र राष्ट्रवादी कांग्रेस का गढ़ है और भाजपा यहां पर कमजोर है। ऐसे में अगर अजीत पवार को साथ लिया जाता है तो पश्चिम महाराष्ट्र के साथ साथ पूरे महाराष्ट्र में भाजपा का दबदबा स्थापित हो जाएगा।
भाजपा की एक प्रमुख चिंता एकनाथ शिंदे गुट के 12 विधायकों पर अयोग्यता की लटकी तलवार भी है। इस मामलें में सुप्रीम कोर्ट कभी भी फैसला सुना सकता है। ऐसे में अगर एकनाथ शिंदे के 12 विधायक अयोग्य घोषित कर दिए जाते हैं तो भाजपा एक बार फिर अजीत पवार के साथ सरकार बना सकती है।
तब डिप्टी सीएम बने थे, अब सीएम पद की शर्त?
ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या भाजपा एकनाथ शिंदे की जगह अजीत पवार को मुख्यमंत्री बना देगी? अजीत पवार 23 नवंबर 2019 को अचानक भाजपा के साथ सरकार बनाकर उपमुख्यमंत्री बन गए थे। हालाकि अजीत पवार को 29 नवंबर को इस्तीफा देना पड़ा था। अजीत पवार अपने चाचा शरद पवार से विद्रोह कर एक बार भाजपा के साथ सरकार बना चुके है। लेकिन अब अजीत पवार पहले विकल्प के रूप में अपने चाचा शरद पवार के साथ एनडीए का हिस्सा बनना चाहते हैं और इसके लिए शरद पवार पर दबाव बना रहे हैं। 82 वर्षीय मराठा क्षत्रप बढ़ती उम्र और गिरते स्वास्थ के कारण अब अजीत पवार से दो दो हाथ करने की स्थिति में नहीं है।
पार्टी विधायकों और संगठन पर शरद पवार से ज्यादा अजीत पवार का कब्जा है। अजीत पवार शरद पवार से हरी झंडी चाहते हैं जिससे चाचा के साथ दो दो हाथ करने की नौबत न आए। भाजपा भी चाहती है कि अजीत पवार शरद पवार को साथ लेकर आए, जिससे पवार जैसे कद्दावर नेता के एनडीए में आने से दिल्ली में जारी विपक्षी एकता को तगड़ा झटका लगे।
तीन बार के उपमुख्यमंत्री रहे अजीत पवार इस बार सिर्फ उपमुख्यमंत्री बनने के लिए भाजपा में नहीं आना चाहेंगे। अजीत पवार शिंदे को 40 विधायकों के दम पर मुख्यमंत्री बनता हुआ देख चुके हैं। ऐसे में वह भी एकनाथ शिंदे से ज्यादा विधायकों का समर्थन बताकर मुख्यमंत्री का दावा पेश कर सकते हैं। शायद यही कारण है कि पुणे में शुक्रवार को उन्होंने साफ कहा कि “महाराष्ट्र में एनसीपी का मुख्यमंत्री बनने के लिए 2024 तक रूकने की जरूरत नहीं है।” उनका इरादा स्पष्ट है और संकेत भी। देखना ये है कि पूरा कितना हो पाता है l