नई दिल्ली : केन्द्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कहा है कि भारत में कोरोना संक्रमण को लेकर लोगों में “हर्ड इम्युनिटी” विकसित नहीं हुई है और इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि हम सब कोविड समुचित व्यवहार का पालन करें।
डा़ हर्षवर्धन ने रविवार को संडे संवाद के तीसरे एपिसोड में सोशल मीडिया के साथ विचार-विमर्श किया और उनके द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब में यह बात कही।
उन्होंने कहा कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद(आईसीएमआर) की सीरो सर्वे की रिपोर्ट से लोगों में आत्म संतुष्टि की भावना नहीं आनी चाहिए। मई माह में कराए गए पहले सीरो सर्वे में पता चला था कि देश भर में नोवेल कोरोना वायरस का संक्रमण 0.73 प्रतिशत था। दूसरे सीरो सर्वे की रिपोर्ट जारी होने वाली है, इसमें संकेत है कि हम किसी प्रकार की हर्ड इम्युनिटी से अभी काफी दूर हैं। हर्ड इम्युनिटी तब उत्पन्न होती है, जब 60 से 70 प्रतिशत जनसंख्या में इस विषाणु का संक्रमण हो जाए और उनमें विषाणु के खिलाफ एंटीबॉडी विकसित हो जाए, इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि हम सब कोविड समुचित व्यवहार का पालन करें।
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने चरणबद्ध तरीके से स्कूल खोलने के भय को गलत बताया और सलाह दी कि सैलून और हेयर स्पा में जाते समय समुचित प्रोटोकॉल का पालन किया जाना चाहिए। इसके अलावा प्रत्येक व्यक्ति को कोविड समुचित व्यवहार के प्रति जागरुकता बढ़ानी चाहिए और वह स्वयं अपनी कार को रोक कर मास्क नहीं पहनने वाले लोगों को मास्क पहनने की हिदायत देते हैं।
उन्होंने जोर देकर कहा कि धार्मिक स्थलों पर भी मास्क पहनने की आवश्यकता है। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा, “महामारी से तभी लड़ा जा सकता है, जब सरकार और समाज तालमेल के साथ मिलकर काम करे और यह नारा भी दिया”दो गज की दूरी और थोड़ी समझदारी,पड़ेगी कोरोना पे भारी।”
रेमडिसिवर और प्लाज्मा थेरेपी जैसी अन्वेषणात्मक थेरेपी के व्यापक उपयोग के बारे में डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि सरकार ने इनके तर्क संगत उपयोग के बारे में नियमित रूप से कई परामर्श जारी किए हैं। निजी अस्पतालों को अन्वेषणात्मक थेरेपी के नियमित उपयोग के खिलाफ सलाह दी गई है। राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में डॉक्टरों को वेबिनार के माध्यम और नई दिल्ली के एम्स के टेली-कंसल्टेशन सत्रों में इस बारे में जागरुक किया जा रहा है।
उन्हाेंने यह भी कहा कि अब तक जो जानकारियां सामने आ रही है उनमें कोरोना न केवल फेफड़ों को प्रभावित करता है, बल्कि अन्य अंगों को भी प्रभावित करता है विशेष रूप से कॉर्डियोवस्कुलर और गुर्दे, । स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोविड-19 के इन प्रभावों की जांच के लिए विशेषज्ञों की समितियां गठित की हैं। आईसीएमआर भी इस विषय का अध्ययन कर रहा है और आईसीएमआर फिर से संक्रमण होने की खबरों को लेकर उनका सक्रिय रूप से अन्वेषण और अनुसंधान कर रहा है। हालांकि फिर संक्रमण वाले मामलों की फिलहाल संख्या नगण्य है।
डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को कोविड जांच की दरों में कमी लाने की सलाह दी गई है। महामारी के शुरूआती दौर में जब जांच किट आयात की जाती थी तो दरें अधिक हुआ करती थी। लेकिन अब टेस्टिंग किट की आपूर्ति स्थिर हो गई है और इनका स्वदेशी उत्पादन भी हो रहा है।
आत्म निर्भर भारत योजना के बारे में एक प्रश्न पर डॉ. हर्षवर्धन ने भारत की दो सूत्री उत्पादन और उच्च गुणवत्ता की दवाएं और चिकित्सा उपकरण बनाने की रणनीति का उल्लेख किया, ताकि देश को आत्म निर्भर बनाया जा सके। उन्होंने कहा कि सरकार ने यह सुनिश्चित किया और इस क्षेत्र में आयात का विकल्प बना है और देश अब आयात पर निर्भर नहीं है। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में न केवल हम स्वदेशी आवश्यकता पूरी करेंगे, अपितु कम लागत के गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा उपकरणों की वैश्विक मांग पूरी कर सकेंगे। उन्होंने कहा कि महामारी के फैलाव के बाद पिछले कुछ महीनों में भारत में वेंटीलेटर, पीपीई, टेस्टिंग किट और कई चिकित्सा उपकरणों के विनिर्माण में बहुत प्रगति हुई है।
डॉ. हर्षवर्धन ने विभिन्न क्षेत्रों में एम्स स्थापित करने में असमानता और समूचे पूर्वोत्तर में केवल एक मेडिकल कॉलेज होने पर कहा कि प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना की केन्द्रीय स्कीम का उद्देश्य स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करना है। नये एम्स बनाने के अलावा स्कीम का उद्देश्य वर्तमान चिकित्सा ढांचे को देश भर में चरणबद्ध तरीके से उन्नत बनाना है। स्कीम के विभिन्न चरणों में केन्द्र सरकार असम के जिलों- धुबरी, नगांव, उत्तर लखीमपुर, दिफू, कोकराझार और मणिपुर में चूड़ाचांदपुर, मेघालय में पश्चिम गारो पर्वतीय जिले, मिजोरम में फलकावान जिले और नगालैंड में कोहिमा तथा मोन में वर्तमान जिला और रेफरल अस्पतालों से जुड़े मेडिकल कॉलेजों के साथ नये मेडिकल कॉलेज बनाएगी।
डॉ. हर्षवर्धन ने यह भी कहा कि केन्द्र सरकार ने पिछले पांच वर्षों में एमबीबीएस की29,185 सीटें बढ़ाई हैं। नये मेडिकल कॉलेज बनने, वर्तमान सरकारी मेडिकल कॉलेजों के उन्ययन और मजबूती, नये मेडिकल कॉलेज बनाने के नियमों में ढील, एमबीबीएस की सीटों को 150 से बढ़ाकर 250 करने और शिक्षकों, डीन, प्रिंसिपल और मेडिकल कॉलेजों के निदेशकों की नियुक्ति की आयु बढ़ाने और विस्तार देने से देश में डॉक्टरों के अनुपात में सुधार आएगा। वर्तमान में भारत में 10,189 लोगों पर एक डॉक्टर है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार एक हजार लोगों को एक डॉक्टर होना चाहिए। पिछले वर्ष सितंबर 2019 को 12 लाख एलोपैथिक डॉक्टर पंजीकृत थे। इनकी 80 प्रतिशत उपलब्धता हो जाने पर 9 लाख 61 हजार डॉक्टरों की सेवाएं मिल जाएंगी। ऐसा हो जाने पर भारत में डॉक्टरों का अनुपात 1404 लोगों पर एक डॉक्टर हो जाएगा।
जन-स्वास्थ्य प्रणाली की मजबूती पर एक प्रश्न पर उन्होंने बताया कि सरकार जन-स्वास्थ्य पर खर्च के वर्तमान जीडीपी पर 1.15 प्रतिशत को 2025 तक बढ़ाकर 2.5 प्रतिशत करने को प्रतिबद्ध है। ऐसा होने से इस कम अवधि में जन-स्वास्थ्य पर खर्च का भार बढ़कर 345 प्रतिशत अधिक हो जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि 15वें वित्त आयोग के उच्च स्तरीय समूह ने माना है कि वर्तमान महामारी के मद्देनजर अगले 5 वर्षों में स्वास्थ्य देखभाल पर व्यय में काफी वृद्धि की जाना चाहिए।
डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि डिसइंफेक्शन टनल से लोगों पर जो डिसइंफेक्शन स्प्रे किया जाता है, वह लोगों के लिए हानिकारक है। इससे आंखों में जलन और उल्टी हो सकती है और अप्रैल में स्वास्थ्य मंत्रालय ने परामर्श जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि लोगों पर डिसइंफेक्शन स्प्रे न किया जाए। इन निर्देशों के अनुसार कई राज्यों और जिलों ने ऐसे टनल बंद कर दिए हैं।