जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सर्वजन को साधने का प्रयास करते-करते बहुजन (दलितों) पर बसपा की पकड़ कमजोर होती जा रही है। इसे अच्छी तरह महसूस कर रहीं पार्टी प्रमुख मायावती दोराहे पर खड़ी नजर आ रही हैं।
राजनीतिक जमीन पर फिर से कदम जमाने के लिए पहले तो उन्होंने ‘सर्वजन हिताय’ की बजाए ‘बहुजन हिताय’ का मंत्र-जाप शुरू कर कोर वोट को प्रत्यक्ष तौर पर साधने के जतन शुरू किए, लेकिन अब शायद चिंता सवर्णों के दूर हो जाने की भी सता रही है।
ऐसे में नई रणनीति अपनाते हुए वह कैडर में पैठ रखने वाले आधार संगठन बैकवर्ड एंड माइनारिटी कम्युनिटीज एम्लाई फेडरेशन (बामसेफ) को सक्रिय करने जा रही हैं। ब्राह्मण समेत अन्य समाज-वर्गों के लिए भाईचारा समितियां बनाकर इस संगठन के जरिए ‘सोशल इंजीनियरिंग’ संभालने की तैयारी है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में 2014 के बाद से बसपा लगातार ढलान पर ही है।
कोर वोट में लग चुकी है सेंध
वर्तमान लोकसभा में उसका एक भी सांसद नहीं है और राज्य विधानसभा में मात्र एक विधायक। इसकी बड़ी वजह है कि दलित वोटों में भाजपा पहले ही बड़ी सेंध लगा चुकी थी और इस बार सपा ने भी बसपा का कोर वोट काफी छीन लिया। मुस्लिम वोट पहले ही सपा के पाले में खिसक चुका है। बहरहाल, लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद मायावती ने समीक्षा करते हुए मुस्लिमों के प्रति नाराजगी स्पष्ट रूप से जताई और धीरे-धीरे सवर्णों से भी मुंह फेरने का संकेत दे दिया।
कई वर्षों तक सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय की बात कहने वालीं पूर्व मुख्यमंत्री मायावती को जोर अब बहुजन हिताय पर है। इन शब्दों का संदेश उनके कोर वोटबैंक यानी दलितों और पिछड़ों के लिए है। मगर, अब वह फिर से रणनीति बदलती दिखाई दे रही हैं। सूत्रों के अनुसार, बसपा प्रमुख ने पार्टी संस्थापक द्वारा स्थापित सरकारी कर्मचारियों के संगठन बामसेफ को पुनर्गठित और सक्रिय करने का निर्णय किया है।
हर जिले में संयोजक बनाने के निर्देश
उन्होंने हर जिले में बामसेफ का एक संयोजक और दस सह-संयोजक बनाने के लिए कहा है। जोर है कि ब्राह्मण और मुस्लिम भाईचारा समितियां बनाकर इन वर्गों में पैठ बढ़ाई जाए। बामसेफ के एक पदाधिकारी ने बताया कि काफी समय से बामसेफ अलग-थलग था, लेकिन अब फिर हलचल है। बसपा नेतृत्व ने संवाद शुरू किया है। सामाजिक संपर्क बढ़ाने के साथ ही संदेश दिया है कि अभी बसपा को मजबूत नहीं किया गया तो फिर दोबारा खड़ा होना बहुत मुश्किल होगा।
बामसेफ पदाधिकारी इसे रणनीतिक दांव मानते हैं, क्योंकि मुस्लिम के साथ ही ब्राह्मण भी जुड़ेगा, तभी बसपा मजबूत होगी। 2007 में मायावती ने बड़ी संख्या में ब्राह्मणों को टिकट दिए। उनमें से 41 विधायक जीते, तब बसपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी। अब मायावती प्रत्यक्ष राजनीति दलितों-पिछड़ों के लिए करेंगी और बामसेफ के माध्यम से समाज के अन्य वर्गों को साधने का प्रयास होगा।