India-Israel News: भारत के दो प्रमुख सहयोगी इजराइल और ईरान के बीच तनाव ने नई दिल्ली की डिप्लोमेसी को चुनौतीपूर्ण स्थिति में डाल दिया है। जबकि भारत दोनों देशों के साथ मजबूत आर्थिक और सामरिक संबंध बनाए हुआ है और भारत, उनके संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान की वकालत करता है।
इस नाजुक संतुलन के लिए भारत को सावधानीपूर्वक कूटनीति और मुश्किल फैसले लेने के साथ एक जटिल भू-राजनीतिक परिदृश्य को नेविगेट करने की जरूरत है।
इजराइल और ईरान के बीच संबंधों में लंबे समय से गहरा अविश्वास और स्पष्ट शत्रुता रही है। ये दोनों देश एक दूसरे को अपने अस्तित्व के लिए एक बुनियादी खतरा मानते हैं, और ये धारणा हाल के वर्षों में लगातार बढ़ती रही है। खासकर पिछले साल 7 अक्टूबर को जब हमास ने दक्षिणी इजराइल पर हमला किया और फिर इजराइल ने गाजा पट्टी में हमास के खिलाफ युद्ध शुरू किया, तो हिज्बुल्लाह भी इसमें शामिल हो गया। 7 अक्टूबर के बाद से हिज्बुल्लाह और इजराइल अप्रत्यक्ष युद्ध में शामिल हैं।
चूंकी, हिज्बुल्लाह को ईरान का समर्थन हासिल है, इसलिए इजराइल और ईरान के बीच तनाव बढ़ता चला गया। वहीं, हमास के पॉलिटिकल लीडर इस्माइल हानिया की तेहरान में हत्या ने इजराइल और ईरान को युद्ध के मुहाने पर ला दिया है। जबकि ईरान की परमाणु महत्वाकांक्षाओं ने इस तनाव को और कठोर बना दिया है, जिसे इजरायल अत्यधिक चिंता के साथ देखता है।
वहीं, साल 2018 में अमेरिका, ईरान के साथ परमाणु समझौते से हट गया और उसने ईरान के उपर कई तरह के कठोर प्रतिबंध लगा दिए, जिसने ईरान को अलग-थलग कर दिया, और इन परिस्थितियों ने मिडिल ईस्ट को काफी तनावपूर्ण बना दिया है।
इस्माइल हानिया की हत्या का बदला लेने बेताब ईरान
इस्माइल हानिया, हमास का एक प्रमुख नेता था, जिसने इजराइल के लिए बातचीत युद्धविराम को लेकर होने वाली बातचीत में अहम भूमिका निभाई थी। वह कतर और ईरान के बीच अक्सर यात्रा करता था, जहां हमास का राजनीतिक मुख्यालय है, जो दोनों के बीच घनिष्ठ संबंधों को दर्शाता है।
नवनिर्वाचित ईरानी राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने के बाद ईरानी धरती पर इस्माइल हानिया की हत्या ने एक बड़े उकसावे को हवा दी, जिसने तनाव को काफी बढ़ा दिया है। यह कृत्य आसानी से ईरान और उसके सहयोगियों की ओर से एक सशक्त प्रतिक्रिया को ट्रिगर कर सकता है, जो संभावित रूप से इस क्षेत्र को एक व्यापक संघर्ष में खींच सकता है।
इस अस्थिरता को बढ़ाते हुए, ईरान ने अप्रैल 2024 में इजरायली सैन्य ठिकानों के खिलाफ ड्रोन और मिसाइल हमले किए थे और पहली बार ऐसा हुआ था, कि ईरान ने इजराइली सैन्य बुनियादी ढांचे को सीधे निशाना बनाय था। इस कार्रवाई ने ईरान की बढ़ती सैन्य क्षमताओं और अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए शक्ति का इस्तेमाल करने की उसकी बेताबी को जाहिर कर दिया।
भारत के रणनीतिक-सामरिक हित
पश्चिम एशिया में भारत के मजबूत आर्थिक और रणनीतिक हित हैं, जो इसे इजराइल-ईरान संघर्ष में एक प्रमुख हितधारक बनाता है। यह क्षेत्र भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत के तेल आयात का एक महत्वपूर्ण हिस्सा यहीं से आता है। इस क्षेत्र से तेल के प्रवाह में कोई भी व्यवधान, भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर परिणाम हो सकता है।
जबकि भारत ने अमेरिका और रूस से तेल आयात बढ़ाने सहित अपने ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने में काफी हद तक कामयाबी हासिल की है, फिर भी पश्चिम एशिया तेल का एक महत्वपूर्ण स्रोत बना हुआ है, खासकर भारत और पश्चिम एशिया के बीच नजदीक और आसान व्यापार मार्गों को देखते हुए, ये भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण बन जाता है।
ऊर्जा से अलावा, यह क्षेत्र भारतीय निर्यात के लिए एक महत्वपूर्ण बाजार है और खाड़ी देशों में काम करने वाले बड़े भारतीय प्रवासी भी भारत में करोड़ों डॉलर भेजते हैं, जो भारतीय अर्थव्यवस्था और महत्वपूर्ण स्थान रखता है। ये आर्थिक संबंध भारत की आर्थिक वृद्धि और विकास में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
इसके अलावा, भारत इस क्षेत्र में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में एक प्रमुख निवेशक है, जिसमें ईरान में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण चाबहार बंदरगाह भी शामिल है। यह बंदरगाह भारत को पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए भूमि से घिरे मध्य एशिया और अफगानिस्तान तक पहुंच प्रदान करता है, और इसे भारत की क्षेत्रीय कनेक्टिविटी रणनीति में एक महत्वपूर्ण एलिमेंट के रूप में देखा जाता है। बंदरगाह और उससे संबंधित बुनियादी ढांचे का विकास, भारत के लिए दीर्घकालिक प्रतिबद्धता है, जिसका व्यापार, निवेश और क्षेत्रीय स्थिति पर प्रभाव पड़ेगा।
भारत-मध्य-पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे के लिए भारत की कोशिश, जिसका मकसद भारत को मध्य एशिया और यूरोप से जोड़ना है, वो शांतिपूर्ण और स्थिर क्षेत्रीय वातावरण पर निर्भर करता है।
यह महत्वाकांक्षी परियोजना, जिसमें भूमि और समुद्र के पार बुनियादी ढांचे और व्यापार मार्गों का विकास शामिल है, भारत को नए बाजारों तक पहुंच प्रदान करेगी और इसके क्षेत्रीय प्रभाव को बढ़ाएगी। इसे चीन की बेल्ट एंड रोड पहल का मुकाबला करने के तरीके के रूप में भी देखा जाता है।
लेकिन, इजराइल-ईरान संघर्ष के बढ़ने से ये योजनाएं बाधित हो सकती हैं और भारत के दीर्घकालिक आर्थिक और रणनीतिक लक्ष्य खतरे में पड़ सकते हैं।
भारत के लिए एक और मुश्किल जियो-पॉलिटिकल स्थिति
बढ़ते तनाव और हिंसा के बीच, भारत काफी सतर्क डिप्लोमेसी के साथ आगे बढ़ रहा है और अपने विविध हितों की रक्षा करने के लिए संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है। आतंकवाद की निंदा करते हुए और शांतिपूर्ण बातचीत की वकालत करते हुए, भारत ने इस्माइल हानिया की हत्या के फौरन बाद किसी का भी पक्ष लेने से परहेज किया है।
यह नजरिया भारत की लंबे समय से चली आ रही गुटनिरपेक्षता की नीति और इजराइल और ईरान, दोनों के साथ-साथ क्षेत्र के अरब राज्यों के साथ मजबूत संबंध बनाए रखने की उसकी इच्छा के मुताबिक ही हैं। इस तटस्थता को बनाए रखना एक नाजुक संतुलन कार्य है। किसी एक पक्ष के प्रति कोई भी कथित पूर्वाग्रह भारत के दूसरे पक्ष के साथ संबंधों को खतरे में डाल सकता है, जिससे संभावित रूप से आर्थिक और रणनीतिक परिणाम हो सकते हैं।
उदाहरण के लिए, इजराइल का खुले तौर पर पक्ष लेने से ईरान के साथ भारत के संबंधों को नुकसान पहुंच सकता है और चाबहार बंदरगाह में उसके निवेश को खतरा हो सकता है। इसके विपरीत, ईरान का समर्थन करने से इजराइल के साथ उसकी बढ़ती रणनीतिक साझेदारी पर असर पड़ सकता है और सऊदी अरब और यूएई जैसे प्रमुख अरब सहयोगी, संभावित रूप से अलग-थलग पड़ सकते हैं।
इजराइल-ईरान के बीच कैसे बैलेंस बना रहा भारत?
इस्माइल हानिया की हत्या पर किसी भी तरह से बयान देने के परहेज करना, भारत के तटस्थ रूख को दर्शाता है। इस्माइल हानिया पर कोई भी बयान, भारत को ईरान या इजराइल के पाले में खड़ा कर सकता है। और भारत का सतर्क दृष्टिकोण, ईरान या उसके अरब सहयोगियों, विशेष रूप से सऊदी अरब, जो अपनी प्रतिक्रिया में भी सावधान रहा है, उसने ईरानी संप्रभुता को प्राथमिकता देने का विकल्प चुना है, को अलग-थलग करने से बचने के भारत के मजबूत संकल्प को दर्शाता है।
अरब देश, खास तौर पर यूएई और सऊदी अरब, भारत में भारी निवेश के साथ महत्वपूर्ण आर्थिक साझेदार के रूप में उभरे हैं। इस नई आर्थिक वास्तविकता ने भारत को I2U2 जैसे नए समूहों में भाग लेने के लिए प्रेरित किया है, जो एक ऐसा मंच है, जो आर्थिक सहयोग और तकनीकी नवाचार को बढ़ावा देने के लिए भारत, इजरायल, यूएई और अमेरिका को एक साथ लाता है।
यह जुड़ाव भारत की कुछ रणनीतिक और आर्थिक मुद्दों पर पश्चिमी शक्तियों के साथ गठबंधन करने की इच्छा को उजागर करता है, भले ही वह अपनी गुटनिरपेक्ष स्थिति को बनाए रखना चाहता हो।
इस बीच, ईरान भारत की रणनीतिक सोच में एक महत्वपूर्ण कारक बना हुआ है, खासकर इसकी पड़ोस नीति के संबंध में। भारत ईरान को मध्य एशिया और अफगानिस्तान के लिए एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में देखता है, जो व्यापार और सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं।
लेकिन, अगर इजराइल और ईरान के बीच संघर्ष छिड़ता है, तो निश्चित तौर पर भारत के लिए बैलेंस बनाना काफी मुश्किल हो सकता है और संभवत: भारत दोनों देशों से कूटनीति और बातचीत के जरिए शांतिपूर्ण रास्ते पर लौटने की अपील कर सकता है।