पंचकूला : मोटर वाहन अधिनियम के तहत यदि किसी चालक द्वारा किसी व्यक्ति को हानि या कोई क्षति पहुंचाने की स्थिति में पीडि़त व्यक्ति को मुआवजा पाने का अधिकार है। इसके लिए पीडि़त व्यक्ति को मोटर दुर्घटना के लिए स्थापित विशेष अदालत में दावा डालना होता है, जिसे मोटर एक्सीडेंट ट्रायब्यूनल कहते है।
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की सचिव एवं मुख्या न्यायिक दंडाधिकारी निधि बंसल ने बताया कि 14 मई को न्यायिक परिसर में मोटर वाहन अधिनियम व मुआवजा प्राप्त करने संबंधी मामलों का निपटारा करने के लिए राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन किया जाएगा। अगर कोई व्यक्ति इस लोक अदालत में अपना मामला लाना चाहता है तो वह जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यालय, जोकि न्यायिक परिसर में स्थित है, में संपर्क कर सकता है। उन्होंने बताया कि मोटर वाहन अधिनियम के तहत कोई निश्चित राशि तय नहीं है, यह मामले की स्थिति पर निर्‘र करता है। दुर्घटना के दौरान यदि पीडि़त व्यक्ति की असावधानी या गलती मिल जाए तो मुआवजे की राशि कम होती है। इस अधिनियम के तहत हानि को दो प्रकार से आका जाता है, पहला शारीरिक व मानसिक व दूसरा संपत्ति। दुर्घटना में मृत्यु होने की स्थिति में मुआवजा उसके वारिसों को दिया जाता है।
उन्होंने बताया कि दुर्घटना में हुई क्षति के लिए का प्राथमिक दायित्व दुर्घटना करने वाले वाहन के मालिक या चालक का होता है, लेकिन यदि मालिक द्वारा परपक्ष (थर्ड पार्टी)बीमा पॉलिसी प्राप्त कर रखी है तो भुगतान का दायित्व संबंधित बीमा कंपनी का हो जाता है। उन्होंने बताया कि अधिनियम की धारा 146 के तहत परपक्ष बीमा पॉलिसी लेनी जरूरी है। इसके बिना मोटर वाहन सार्वजनिक सडक़ पर चलाने पर अधिनियम की धारा 196 के तहत दंडनीय अपराध है।
निधि बंसल ने बताया कि मोटर वाहन अधिनियम 1988 की धारा 163(क) में प्रावधान है कि दावाकर्ता को अपनी याचिका में यह प्रमाणित करने की आवश्यकता नहीं कि मोटर दुर्घटना करने वाले चालक की कोई गलती थी या नहीं जबकि इसमें दूसरे पक्ष की गलती मानते हुए मुआवजा की राशि दी जाती है। उन्होंने बताया कि मोटरवाहन प्रतिकर वाद दायर करने के लिए प्राधिकरण की ओर से निशुल्क कानूनी सहायता उपलब्ध करवाई जाती है अगर दुर्घटना प्रतिकर से संबंधित अपील उच्च न्यायालय में लंबित है तो इसके लिए हरियाणा राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण सेवा समिति चंडीगढ़ से संपर्क किया जा सकता है।