मुंबई : भारत में 67 वर्षों से रह रहे और देश के लिए काम कर रहे स्पेन के एक पादरी को 38 साल के लंबे संघर्ष के बाद आखिरकार इस सप्ताह भारतीय नागरिकता मिल गई। मुंबई उप महानगर के जिला कलेक्टर शेखर चन्ने ने दो दिन पूर्व अपने कार्यालय में एक छोटे से समारोह में फादर गुच्ची फ्रेडरिक सोपेना को भारतीय नागरिकता का प्रमाणपत्र दिया। उत्साहित फादर सोपेना ने ‘भारत माता की जय’ का नारा लगाकर अपनी खुशी का इजहार किया।
धाराप्रवाह हिंदी और मराठी बोलने वाले फादर सोपेना ने कहा, मैं बेहद खुश हूं कि मेरी कब्र एक भारतीय नागरिक के रूप में भारत में होगी। एक ऐसे देश में, जहां मैंने काम किया है, जहां मुझे इतना प्यार और इतने दोस्त मिले हैं। भारत माता की जय।
सोपेना गरीबों की सेवा के लिए 22 साल की उम्र में भारत आए थे। उन्होंने गरीब, जरूरतमंद और बीमार लोगों की सेवा में और ईश्वर के प्रेम का संदेश फैलाने में अपने जीवन के 67 साल समर्पित कर दिए। इस दौरान उन्होंने मुंबई, ठाणे, पलघड़, रायगढ़ और नासिक जिलों में सरकारी योजनाओं के बारे में भी जागरूकता फैलाई।
‘सोपेना बाबा’ के नाम से मशहूर पादरी ने 1978 में भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन किया था। 1978 में उनके आवेदन को नामंजूर कर दिया गया और 1988 में भी उन्होंने फिर से आवेदन किया, लेकिन उसे भी नामंजूर कर दिया गया। भारतीय नागरिकता पाने के लिए अटल सोपेना ने 2012 में फिर से नागरिकता के लिए आवेदन किया, लेकिन उनकी फाइल खो गई, जिसके कारण उन्हें फिर से आवेदन करना पड़ा। इसकी औपचारिकताएं 2015 में पूरी हुईं।
भारतीय नागरिकता पाने की चाहत के कारण के बारे में उन्होंने कहा, मैं भारतीय नागरिक कहलाना चाहता हूं, बस यही कारण है। सोपेना ने कहा, भारत जैसा कोई देश नहीं है। मैं यहां 67 रहा और काम किया। अब मैं बेहद खुश हूं। वर्ष 1990 में सोपेना एक दुर्घटना का शिकार हो गए थे, जिस कारण उनका एक पैर काटना पड़ा था और वह जयपुर-फुट से चलते हैं, लेकिन समाज के लिए सेवा की उनकी भावना में कोई कमी नहीं आई है।
फादर सोपेना के साथ चार दशकों से काम कर रहीं मशहूर परमाणु-रोधी कार्यकर्ता वैशाली पाटिल ने बताया कि सोपेना ने जनहित विकास मंच की स्थापना की थी और उन्होंने महिला सशक्तीकरण, आदिवासी बच्चों की शिक्षा और भूमिहीन कि सानों के कौशल विकास के लिए काम किया है।