Maha Kumbh 2025: उत्तर प्रदेश में योगी सरकार द्वारा महाकुंभ के दौरान कैबिनेट बैठक आयोजित करने के फैसले ने राजनीति और धर्म के मेल पर बहस छेड़ दी है। समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने इस कदम की आलोचना करते हुए कहा कि धार्मिक आयोजनों को राजनीतिक गतिविधियों के लिए इस्तेमाल करना अनुचित है। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी ने भी धार्मिक आयोजनों में भाग लिया है। लेकिन उनका प्रचार नहीं किया।
कैबिनेट बैठक का एजेंडा और पवित्र स्नान
महाकुंभ के दौरान आयोजित इस बैठक में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके मंत्रिमंडल ने संगम में पवित्र स्नान किया। यह परंपरा पहली बार 2019 के कुंभ में शुरू की गई थी। इस बार उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि बैठक का उद्देश्य राज्य के विकास से संबंधित महत्वपूर्ण प्रस्तावों और योजनाओं पर चर्चा करना था।
संगम में स्नान के अलावा इस बैठक ने धार्मिकता और शासन के मेल को उजागर किया। 54 मंत्रियों ने इस आध्यात्मिक कार्य में भाग लिया। जो धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के साथ-साथ सरकारी गतिविधियों को भी दर्शाता है।
महाकुंभ में सुरक्षा के कड़े इंतजाम
महाकुंभ 2025 के दौरान सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई। 10,000 से अधिक पुलिस और अर्धसैनिक बलों की तैनाती। संगम क्षेत्र में एनडीआरएफ द्वारा जल एम्बुलेंस की व्यवस्था। यह विशाल आयोजन 13 जनवरी से 26 फरवरी तक चल रहा है। जिसमें करोड़ों श्रद्धालु शामिल हो रहे हैं। महाकुंभ में 29 जनवरी मौनी अमावस्या, 3 फरवरी बसंत पंचमी, 12 फरवरी माघी पूर्णिमा, 26 फरवरी महाशिवरात्रि को महास्नान होने हैं।
अखिलेश यादव का विरोध और बहस
अखिलेश यादव ने धार्मिक आयोजनों को राजनीतिक मंच के रूप में इस्तेमाल करने के इस कदम पर सवाल उठाए। उनका कहना है कि धर्म और राजनीति को अलग रखना चाहिए। ताकि धार्मिक आयोजनों की पवित्रता बनी रहे। दूसरी ओर योगी सरकार का दावा है कि यह बैठक न केवल आध्यात्मिकता को बढ़ावा देने का प्रयास है। बल्कि सरकार के पारदर्शी और सामूहिक निर्णय लेने की प्रक्रिया को भी दर्शाता है।
महाकुंभ में धर्म और राजनीति का संगम या विवाद
महाकुंभ जो अपनी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है। इस बार राजनीतिक चर्चाओं का केंद्र बन गया है। योगी सरकार के फैसले से जहां शासन और धार्मिक परंपराओं के मेल का संदेश दिया गया। वहीं अखिलेश यादव जैसे नेता इसे धर्म का राजनीतिकरण मानते हैं। महाकुंभ जैसे आयोजनों का महत्व केवल धार्मिक नहीं। बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक भी है। हालांकि इस बार यह आयोजन राजनीति और धर्म के संबंधों पर बहस का मुख्य विषय बन गया है। क्या धार्मिक आयोजन राजनीति से परे रह सकते हैं। यह सवाल न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश के लिए विचारणीय है।