PM Modi Russia Visit: भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल की शुरूआत हो चुकी है और जी7 शिखर सम्मेलन में इटली का दौरा करने के बाद अब प्रधानमंत्री मोदी 8 जुलाई को रूस का दौरा करने वाले हैं, जहां वो राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात करेंगे।
जून में चुनावी जीत के बाद यह उनकी पहली द्विपक्षीय यात्रा होगी और कोविड महामारी और यूक्रेन में युद्ध के बाद से ये उनकी पहली रूस की यात्रा होगी, लिहाजा भारत के साथ साथ यूक्रेन, पश्चिमी देश और अमेरिका ने भी पीएम मोदी की मॉस्को यात्रा पर निगाहें गड़ा रखी हैं।
रूस के दौरे पर जाएंगे प्रधानमंत्री मोदी
यूक्रेन में युद्ध को दो साल से ज्यादा हो गए हैं और पश्चिमी देशों से मिल रहे हथियारों की बदौलत यूक्रेन अभी भी युद्ध लड़ने में सक्षम है, जबकि युद्ध जीतने के लिए रूस अभी भी संघर्ष कर रहा है और इन परिस्थितियों में जंग कब थमेगा, फिलहाल कोई नहीं कह सकता है।
हालांकि, स्थिति बदल रही है और अमेरिका के लिए भी एक साथ दो युद्धों में अरबों डॉलर झोकना मुश्किल होता जा रहा है। इजराइल-गाजा युद्ध और रूस-यूक्रेन युद्ध अमेरिका के के खजाने को खाली कर रहे हैं। इसलिए पश्चिम अब चुपचाप शांति योजना पर जोर दे रहा है। इस बीच, पुतिन इन परिस्थितियों का लाभ उठाने और मुख्यधारा में लौटने के लिए हर संभव कदम उठा रहे हैं। साथ ही, हाल ही में पुतिन के वियतनाम दौरे पर अमेरिका की हल्की प्रतिक्रिया रूसी नेता के साथ यूक्रेन पर पिछले दरवाजे से फिर से बात करने की उसकी मजबूरी को भी दर्शाता है।
लिहाजा मॉस्को में भारत-रूसी नेताओं की शिखर वार्ता बहुत बड़ा बदलाव ला सकती है, क्योंकि भारत दोनों पक्षों के बीच पुल का काम कर सकता है।
प्रधानमंत्री मोदी जब 8 जुलाई को मॉस्को के लिए दिल्ली से रवाना होंगे, तो उनकी ये पिछले पांच सालों में पहली रूस की यात्रा होगी। पिछली बार उन्होंने 2019 में व्लादिवोस्तोक का दौरा किया था, जहां उन्होंने ईस्टर्न इकोनॉमिक फोरम में हिस्सा लिया था।
भारत और रूस के बीच हर साल शिखर सम्मेलन करने की परंपरा साल 2000 से चली आ रही है और इस परंपरा के तहत एक साल भारत के शीर्ष नेता रूस का दौरा करते हैं, तो एक साथ रूस के नेता दिल्ली आते हैं।
साल 2000 में भी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की दिल्ली यात्रा से इस परंपरा की शुरूआत हुई थी। और उसके बाद से दोनों देशों ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा है। पिछला वार्षिक शिखर सम्मेलन दिसंबर 2021 में हुआ था, जब राष्ट्रपति पुतिन ने नई दिल्ली में पीएम मोदी से मुलाकात की थी। तब से शिखर सम्मेलन के लिए मॉस्को जाने की बारी नरेन्द्र मोदी की है, लेकिन पहले कोविड और फिर यूक्रेन युद्ध की वजह से उनका दौरा टलता रहा।
यूक्रेन युद्ध के लेकर भारत ने बार बार शांति के लिए कूटनीति की दिशा में लौटने का आह्लान किया है और भारत का यही आधिकारिक रूख है, जिसपर भारत आज भी कायम है।
मोदी सरकार की डिप्लोमेसी पर ध्यान दें, तो पता चलता है, कि 2014 पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी की पहली द्विपक्षीय यात्रा हिमालयी पड़ोसी देश नेपाल और भूटान की यात्रा के साथ हुई थी। 2019 में दुबारा जीतने के बाद उनका ध्यान श्रीलंका और मालदीव की अपनी पहली द्विपक्षीय यात्राओं के साथ हिंद महासागर पर चला गया।
और इस बार वे अलग राह पर चल रहे हैं। उन्होंने सबसे पहले मालदीव, श्रीलंका, भूटान और बांग्लादेश सहित पड़ोसी देशों के नेताओं को अपने शपथ ग्रहण समारोह में बुलाया। इसके बाद वे जी7 शिखर सम्मेलन के लिए इटली गए, जहां उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन समेत पश्चिमी नेताओं से मुलाकात की। फिर उन्होंने चीन से तिब्बत के लिए स्वायत्तता की मांग करने वाले अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल की मेजबानी की।
लेकिन, प्रधानमंत्री मोदी अगले महीने होने वाले कजाकिस्तान में होने वाले SCO शिखर सम्मेलन में भाग नहीं लेंगे और माना जा रहा है, कि पीएम मोदी का एससीओ में नहीं जाना, चीन का अपमान है, क्योंकि एससीओ पर चीन का प्रभाव माना जाता है। इसके बजाए, पीएम मोदी सीधे रूस जाएंगे।
पश्चिम को पीएम मोदी का संदेश
प्रधानमंत्री मोदी का रूस दौरा पश्चिम के लिए एक संकेत है,कि भारत पश्चिम के साथ अपने संबंधों को और मजबूत करना जारी रखेगा। लेकिन स्वाभाविक रूप से, भारतीय विदेश नीति का झुकाव सिर्फ एक देश की तरफ नहीं रहेगा और भारत, पश्चिम के लिए अपने दोस्त रूस को नहीं छोड़ेगा।
भारत ने रूस के साथ संबंध खत्म करने और उसके खिलाफ प्रतिबंधों में शामिल होने से इनकार कर दिया है। और हकीकत ये भी है, कि रूसी तेल पर पश्चिमी प्रतिबंधों से उत्पन्न वैश्विक तेल संकट के दौरान, रूस ने भारत को डिस्काउंट पर तेल देना शुरू किया और भारत ने पश्चमी विरोध के बाद भी रूस से भारी डिस्काउंट पर तेल खरीदना जारी रखा। इसके अलावा, भारत रूस के साथ अपने लंबे समय से चले आ रहे सैन्य संबंधों को संजोए हुए है जो उनके संबंधों का मूल है।
लिहाजा पीएम मोदी की ये यात्रा, दोनों देशों के बीच मजबूत संबंधों की पुष्टि है। भारत रूस के साथ अपनी दोस्ती को एक महत्वपूर्ण संपत्ति मानता है, खासकर चीन के साथ तनाव के संदर्भ में। बीजिंग के साथ इतने घनिष्ठ संबंधों के बावजूद, रूस में चीन को लेकर शक है और वो भारत को एक प्रतिकार के रूप में मदद करता है।
पीएम मोदी-पुतिन मुलाकात का दिशा क्या है?
पीएम मोदी और व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात के दौरान, दोनों नेताओं को कई मुद्दों को सुलझाना होगा। सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा व्यापार का है। भारत-रूस व्यापार की मात्रा 2023 में बढ़कर 65 अरब डॉलर हो गई है, जिसमें से अधिकांश रूस के तेल निर्यात से संबंधित है।
इस बीच, रूस को भारत का निर्यात केवल सिर्फ 4 अरब डॉलर है और भारत इस व्यापार असंतुलन से खुश नहीं है। यह व्यापक व्यापार घाटा है, जिसे नई दिल्ली रूस के साथ बातचीत के दौरान सुलझाना चाहता है।
इसके अलावा, भारत रूस से जो तेल खरीदता है, उसका भुगतान रुपये में करता है और रूस के पास अरबों रुपये जमा हो गये हैं, जिसका वो इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है। लिहाजा, दोनों देश भुगतान को लेकर विकल्प तलाश रहे हैं। पीएम मोदी की कोशिश इस बात को लेकर होगी, कि रूस भारतीय रुपये का इस्तेमाल भारतीय सामान खरीदने को लेकर करे, ताकि रूस में भारत का निर्यात बढ़े।
भारत-रूस डिफेंस सेक्टर की क्या स्थिति है?
भारत और रूस, दोनों ही पुराने रक्षा साझेदार हैं। भारत ने रूसी हथियारों की कई अन्य खरीदों के अलावा रूसी एस-400 एंटी-एयरक्राफ्ट मिसाइल सिस्टम भी खरीदे हैं। रूस अब भारत के साथ एक लॉजिस्टिक्स समझौते पर जोर दे रहा है, जिससे उनकी नौसेना को लॉजिस्टिक्स सहायता के लिए एक-दूसरे के बंदरगाहों का उपयोग करने की अनुमति मिल जाएगी।
वास्तव में, रूस ने इस पारस्परिक आदान-प्रदान रसद समझौते (RELOS) के बारे में जानकारी प्रकाशित की है, जो वर्षों से पाइपलाइन में था, और रूस का कहना है, कि अब सिर्फ कुछ ही मुद्दों पर समझौता होना बाकी है। इस समय भारत की तुलना में रूस के लिए यहां बहुत कुछ हासिल करने को है, लेकिन आर्कटिक समुद्री मार्गों के बढ़ते महत्व को देखते हुए यह भारत के लिए एक रणनीतिक लाभ जोड़ता है।
यूक्रेन के मुद्दे पर हो सकती है बात
यूक्रेन निश्चित रूप से दोनों नेताओं की बैठक के एजेंडे में सबसे ऊपर होगा। यह बहुत स्पष्ट है, कि यूक्रेन में शांति के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने लंबे समय से कहा है कि “यह युद्ध का युग नहीं है” और मतभेदों को कूटनीति और बातचीत के माध्यम से सुलझाया जा सकता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने जी7 शिखर सम्मेलन के दौरान यूक्रेनी राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की से भी मुलाकात की खी। लेकिन भारत ने स्विट्जरलैंड द्वारा आयोजित यूक्रेन शांति शिखर सम्मेलन में, संयुक्त विज्ञप्ति पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था। भारत का तर्क ये था, कि सभी पक्षों से बातचीत की जानी चाहिए, क्योंकि इसमें रूस शामिल नहीं था। लिहाजा, दोनों नेताओं में यूक्रेन को लेकर भी बातचीत होने की संभावना है।