Arab Nations: 7 अक्टूबर को हमास के मुजाहिदों ने जिस तरह से संगठित होकर इजरायल पर हमला किया था उसके सामने मानों इजरायल धराशायी हो गया। देखते ही देखते हमास के लड़ाकों ने लगभग 1200 निर्दोष नागरिकों को बेरहमी से कत्ल कर दिया और लगभग 240 लोगों को बंधक बना लिया जिसमें अधिकांश यहूदी थे। इस हमले को समझने और संभलने में इजरायल को दो से तीन दिन लग गये। लेकिन जब इजरायल ने हमास के ठिकानों पर पलटवार किया तो आज लगभग 40 दिन बाद केवल हमास ही नहीं बल्कि पूरी मुस्लिम उम्मा धराशायी होती नजर आ रही है।
सोमवार 13 नवंबर को सऊदी अरब की पोर्ट सिटी जेद्दा में 57 इस्लामिक देशों के प्रतिनिधि इजरायल के हमले के खिलाफ एकजुट हुए। लेकिन वो गाजा में हमास पर ‘इजरायल के हमले की निंदा’ करने और ‘तत्काल युद्ध बंद’ करने से अधिक इजरायल के खिलाफ किसी निर्णय पर नहीं पहुंच सके। अल्जीरिया और लेबनान जैसे देशों ने सुझाव दिया कि मुस्लिम देशों से इजरायल को जानेवाले तेल की सप्लाई रोक दी जानी चाहिए। लेकिन इस प्रस्ताव के खिलाफ यूएई और बहरीन ही खड़े हो गये और इजरायल को तेल की सप्लाई रोकने का प्रस्ताव पास नहीं हो सका। बाकी जो कुछ हुआ वह सब खानापूर्ति भर था।
मुस्लिम उम्मा की इस मीटिंग में सऊदी अरब क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान, ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी और तुर्की के राष्ट्रपति तैयब एर्दोगान एक साथ मौजूद थे। सीरिया के राष्ट्रपति बसर अल असद भी इस बैठक में आये जिन्होंने लंबे समय तक मुस्लिम उम्मा का बहिष्कार झेला था और इसी साल इस्लामिक देशों के संगठन में शामिल हुए हैं। इसके बावजूद इजरायल के खिलाफ मुस्लिम उम्मा तेल सप्लाई रोकने जैसे “सामान्य प्रतिबंध” पर भी एकमत नहीं हो सका।
असल में 7 अक्टूबर को हमास का इजरायल पर हमला न तो अचानक था और न ही अनायास। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि जिस स्तर पर इजरायल के खिलाफ हमास के चरमपंथियों ने हमला किया उसके लिए व्यापक तैयारियों की जरूरत थी। जिस तरह से गाजा से इजरायल की ओर पांच हजार से अधिक रॉकेट दागे गये, उन्हें तैयार करना और गाजा तक पहुंचाना अकेले हमास के बूते की बात नहीं थी। निश्चित रूप से इसके पीछे किसी अन्य इस्लामिक देश या फिर अनेक देशों की मदद शामिल थी जो इजरायल को सबक सिखाना चाहते थे।
इजरायल को सबक सिखाने की नीयत रखनेवालों में सबसे पहला नाम ईरान का है। ईरान और कतर पर सीधे तौर पर हमास के मददगार होने का आरोप है जबकि गाजा पर इजरायल के हमले के बाद सऊदी अरब ने भी इजरायल से संभावित संबंध बनने से पहले ही कदम रोक लिए हैं। वह हमास या हिजबुल्ला का मददगार तो नहीं रहा है लेकिन बदली परिस्थितियों में वह इजरायल से राजनयिक संबंध भी स्थापित नहीं कर सकता। यूएई गाजा पर इजरायल के हमले की निंदा तो कर रहा है लेकिन इजरायल से अपने राजनयिक संबंध भी बरकरार रखने की बात कर रहा है। दरअसल यूएई और बहरीन ही हैं जिन्होंने इस बैठक में खुलकर अपने आर्थिक हितों और उसमें इजरायल की भूमिका का बचाव किया। इसलिए इजरायल को सप्लाई किये जाने वाले तेल पर प्रतिबंध पर भी मुस्लिम उम्मा के बीच बात नहीं बन सकी क्योंकि यह कुछ अरब देशों के आर्थिक हितों के खिलाफ जाता है। एक ओर मुस्लिम उम्मा हमास पर इजरायल के हमले को लेकर अभी यह तय नहीं कर पा रही है कि उसे क्या भूमिका निभानी है तो दूसरी ओर गाजा में सबसे कठिन सैन्य अभियान को संचालित करते हुए इजरायल की सेना उस इमारत तक पहुंच गयी जिसे हमास पार्लियामेन्ट कहता था। इजरायली सैनिकों द्वारा अल सिफा अस्पताल की घेरेबंदी के बीच आईडीएफ के प्रवक्ता रियल एडमिरल डैनियर हागरी ने दावा किया है कि हमास अस्पतालों को अपनी शरणस्थली के रूप में इस्तेमाल कर रहा है। इसको साबित करने के लिए रनतीसी अस्पताल का एक वीडियो भी जारी किया जिसमें अस्पताल के बेसमेन्ट में हथियार छिपाकर रखे गये थे। इसके अलावा हागरी ने यह भी दावा किया कि हमास ने इजरायल से अगवा किये गये लोगों को इस अस्पताल के बेसमेन्ट में ही छिपाकर रखा था। इससे जुड़े कुछ सबूत भी उन्होंने वीडियो के माध्यम से दिखाये।