केंद्र की मोदी सरकार ने केंद्र सरकार ने 18 सितंबर से 5 दिन का संसद का विशेष सत्र बुलाया है। सत्र के पहले दिन आज PM मोदी ने संसद को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार के ऊपर लगे कैश फॉर वोट कांड का भी जिक्र कर दिया। इसके बाद कभी कांग्रेस डिफेंसीव तो कभी अग्रेसिव मोड में नजर आने लगी। हालांकि इस कांड के बारे में अधिकतर लोग नहीं जानते हैं। तो चलिए हम बताते है कि आखिर ये स्कैम क्या था। लेकिन उससे पहले जान लेते है प्रधानमंत्री ने कहा क्या हैं?
प्रधानमंत्री मोदी ने कसा तंज
पुराने संसद में बोलते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हमारे देश ने वीपी सिंह जी, चंद्रशेखर जी के नेतृत्व में गठबंधनों की सरकारें देखीं। देश जब आर्थिक बोझ के तले दबा हुआ था, तब नरसिम्हा राव जी की सरकार थी, उन्होंने हिम्मत के साथ पुरानी आर्थिक नीतियों को छोड़कर नई राह पकड़ने का फैसला किया था, जिसके परिणाम आज देश को देखने को मिल रहे हैं। इसी सदन में मनमोहन सिंह जी की सरकार के समय देश ने कैश फॉर वोट को भी देखा।
परमाणु संधि के बाद खतरे में आ गई थी मनमोहन सरकार
बता दें कि देश की ऊर्जा जरूरतों को ध्यान में रखकर 2008 में तब की UPA सरकार ने अमेरिका के साथ परमाणु संधि पर हस्ताक्षर किया था। इसके विरोध में कम्युनिस्ट पार्टी ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। इस कारण सरकार खतरे में आ गई। वहीं, विपक्ष के दबाव में सरकार को संसद में बहुमत साबित करने के लिए आना पड़ा। हालांकि आखिरी वक्त में कांग्रेस को सपा और अन्य कई पार्टियों का साथ मिलने के कारण सरकार गिरने से बच गई।
भाजपा सांसद ने लगाया था कैश फॉर वोट का आरोप
2008 में बहुमत साबित करने के लिए सरकार ने अपने बीमार सांसदों को, जेल की कोठरियों में बंद सांसदों को वोट में हिस्सा लेने के लिए बुलाया। वोटिंग से पहले अशोक अर्गल सहित तीन भाजपा सांसदों ने बहस के दौरान संसद में अपने थैलों से निकले नगदी के बंडल लहराए और सरकार पर उनका समर्थन खरीदने या अनुपस्थित रहने के बदले उन्हें पैसा देने का आरोप लगाया। इसके बाद भाजपा ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इस्तीफे की मांग की और दावा किया कि उनके पास किए जा रहे सौदों के वीडियो सबूत हैं।
CPI (M) ने भी उठाए थे सवाल
जबकि सीपीआई (एम) नेता ने कहा कि “व्यावहारिक रूप से संसद के प्रत्येक सदस्य को धन और प्रलोभन की पेशकश के साथ संपर्क किया गया है। हालांकि सरकार ने इन आरोपों से इनकार किया, यह इंगित करते हुए कि अर्गल ने रिश्वत लेने की बात स्वीकार करके खुद को दोषी ठहराया होगा। उस समय के लोकसभा अध्यक्ष, सोमनाथ चटर्जी ने नई दिल्ली के पुलिस प्रमुख को जांच करने के लिए कहा। हालांकि जांच में तथ्यात्मक तौर पर ऐसा कुछ नहीं निकला।