केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) डायरेक्टर संजय कुमार मिश्रा का कार्यकाल बढ़ाने के लिए SC ने मंजूरी दे दी है. संजय मिश्रा अब 15 सितंबर तक ईडी डायरेक्टर के पद पर रह सकेंगे.
कोर्ट ने कहा कि यह फैसला ‘राष्ट्र हित’ में लिया जा रहा है.
सरकार ने 15 अक्टूबर तक का एक्सटेंशन मांगा था. लेकिन उसके लिए सुप्रीम कोर्ट राजी नहीं हुआ. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इससे आगे अब कोई विस्तार नहीं दिया जाएगा.
एक्सटेंशन देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कुछ सवाल भी उठाए. उन्होंने पूछा कि सारी जिम्मेदारी सिर्फ एस के मिश्रा को क्यों दी गई है. कोर्ट ने कहा कि इससे ऐसा संदेश जाता है कि ईडी के बाकी अफसर अक्षम हैं. इससे बाकी अफसर हताश भी हो सकते हैं.
केंद्र ने दी थी FATF रिव्यू की दलील
एक्सटेंशन बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. इसमें एक्सटेंशन बढ़ाने के पीछे FATF रिव्यू की दलील दी गई थी. बता दें कि वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) एक अंतरराष्ट्रीय निकाय है. यह मनी लॉन्ड्रिंग और आतंक वित्तपोषण को रोकने के लिए बनाया गया है. इसमें भारत समेत दूसरे 200 देश शामिल हैं. रिव्यू के बाद ये संस्था रेटिंग जारी करती है.
FATF रिव्यू और ED का क्या कनेक्शन है? इसपर सरकार की तरफ से बताया गया कि मनी लॉन्ड्रिंग और टेरर फाइनेंसिंग सीधे तौर पर FATF रिव्यू से जुड़े हैं और इन दोनों की मामलों की जांच ED करता है.
केंद्र सरकार की तरफ से कहा गया कि फिलहाल FATF का पीयर रिव्यू चल रहा है. इसके लिए FATF की कमेटी भी तीन नवंबर को भारत आएगी. ऐसे में उनके सवालों के जवाब तैयार करने के लिए मिश्रा की जरूरत होगी क्यों कि वह पिछले कुछ सालों से ईडी को हेड कर रहे हैं.
आगे कहा गया कि FATF रिव्यू का असर सीधा देश को मिलने वाली क्रेडिट रेटिंग पर पड़ता है, ऐसे में इसको हल्के में नहीं लिया जा सकता क्योंकि इसका कनेक्शन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि से है.
सुप्रीम कोर्ट ने एक्सटेंशन को गलत माना था
बता दें कि 11 जुलाई को दिए अपने अहम आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने संजय मिश्रा का कार्यकाल तीसरी बार बढ़ाने के केंद्र सरकार के फैसले को गलत ठहराया था. SC ने तब अपने फैसले में संजय मिश्रा को सिर्फ 31 जुलाई तक ही ED निदेशक के पद पर रहने की इजाजत दी थी. इस तरह मिश्रा का कार्यकाल कोर्ट ने 110 दिन घटा दिया था, केंद्र सरकार उनको 18 नवंबर तक पर बनाए रखना चाहती थी.
इसके बाद सरकार ने तकनीकी और प्रक्रियागत पेचीदगियों में लगने वाले समय के मद्देनजर कार्यकाल अगले कुछ समय तक बढ़ाने की गुहार लगाई थी, ताकि adhock या तय प्रक्रिया के मुताबिक स्थाई नियुक्ति की जा सके.