छिंदवाड़ा के एक गांव में पादरी के शव को दफनाने के मामले में बुधवार (22 जनवरी, 2025) को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से कहा कि इस तरह तो कल कोई हिंदू मुस्लिम कब्रिस्तान में अंतिम संस्कार की जिद कर सकता है. उन्होंने कहा कि कल को अगर कोई ये तर्क दे कि उनके पूर्वज मुस्लिम थे और बाद में हिंदू धर्म अपना लिया इसलिए उन्हें मुस्लिम कब्रिस्तान में क्रिमेशन करने दिया जाए तो क्या होगा.
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार याचिकाकर्ता के पिता एक हिंदू थे जिन्होंने बाद में ईसाई धर्म अपना लिया. एसजी तुषार मेहता ने कोर्ट में कहा, ‘इस तरह तो कल कोई हिंदू भी यह तर्क देकर मुस्लिमों के कब्रिस्तान में अंतिम संस्कार की जिद कर सकता है कि उसके पूर्वज मुस्लिम थे और बाद में उन्होंने हिंदू धर्म अपना लिया. तो क्या होगा? राज्य सरकार का मानना है कि ये पब्लिक व्यवस्था का मुद्दा है और सार्वजनिक व्यवस्था आर्टिकल 25 का अपवाद है.’ उन्होंने कहा कि राज्य सरकार याचिकाकर्ता के पिता का शव ईसाई कब्रगाह तक ले जाने के लिए तैयार है और उसके लिए एंबुलेंस की व्यवस्था भी दी जाएगी.
एसजी तुषार मेहता ने राज्य सरकार का पक्ष रखते हुए कोर्ट में कहा, ‘ईसाई कब्रगाह गांव से 15 किमी की दूरी पर है और वहां 100-200 शवों के लिए जगह है. 3-4 गांवों के लिए एक कब्रिस्तान है, जिसका एरिया 4-5 एकड़ है. एसजी तुषार मेहता ने कहा कि जहां तक गांव के कब्रिस्तान की बात है, वो जगह हिंदू आदिवासियों के लिए है, ईसाइयों के लिए नहीं. वहीं, याचिकाकर्ता रमेश बघेल के वकील कोलिन गोंजाल्विस का दावा है कि वो कब्रिस्तान सभी समुदायों के लिए है और याचिकाकर्ता के परिवार के लिए वहां एक निर्दिष्ट स्थान है.
सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलील सुनकार कहा कि उसे एक सौहार्दपूर्ण समाधान निकलने और पादरी का सम्मानजनक तरीके से अंतिम संस्कार किये जाने की उम्मीद है. कोर्ट ने पादरी के बेटे की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. पादरी का शव सात जनवरी से शवगृह में रखा हुआ है. जस्टिस बी. वी. नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच रमेश बघेल नाम के व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. याचिकाकर्ता ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के एक आदेश को चुनौती दी है. हाईकोर्ट ने उसके पादरी पिता के शव को गांव के कब्रिस्तान में ईसाइयों को दफनाने के लिए निर्दिष्ट क्षेत्र में दफनाने के अनुरोध संबंधी उसकी याचिका का निपटारा कर दिया था.
कोर्ट ने कहा, ‘शव 15 दिन से शवगृह में है, कृपया कोई समाधान निकालें. मृतक का अंतिम संस्कार सम्मानपूर्वक हो. आपसी सहमति से समाधान निकाला जाना चाहिए.’ छत्तीसगढ़ सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि शव ईसाई आदिवासियों के लिए निर्धारित क्षेत्र में दफनाया जाना चाहिए, जो परिवार के छिंदवाड़ा गांव से लगभग 20-30 किलोमीटर दूर स्थित है.
सीनियर एडवोकेट कोलिन गोंजाल्विस ने कहा कि राज्य के हलफनामे में दावा किया गया है कि ईसाई आदिवासियों के लिए शव को दफनाने के लिए गांव से बाहर जाना एक परंपरा है, यह झूठ है. उन्होंने गांव के राजस्व मानचित्रों को रिकॉर्ड पर रखा और तर्क दिया कि ऐसे कई मामले थे जिनमें समुदाय के सदस्यों को गांव में ही दफनाया गया था.
बेंच ने हिंदू आदिवासियों की आपत्ति पर आश्चर्य जताया, क्योंकि वर्षों से किसी ने भी दोनों समुदायों के मृतकों को एक साथ दफनाने पर आपत्ति नहीं जताई थी. जब अदालत ने सुझाव दिया कि वैकल्पिक रूप से पादरी को उनकी निजी भूमि पर दफनाया जा सकता है, तो एसजी तुषार मेहता ने आपत्ति जताई और कहा कि शव को केवल उस निर्दिष्ट स्थान पर ही दफनाया जाना चाहिए जो गांव से 20-30 किलोमीटर दूर है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने पक्षकारों की सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उसे यह देखकर दुख हुआ कि छत्तीसगढ़ के एक गांव में रहने वाले व्यक्ति को पिता के शव को ईसाई रीति-रिवाजों के अनुसार दफनाने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा क्योंकि अधिकारी इस मुद्दे को सुलझाने में विफल रहे. रमेश बघेल ने दावा किया है कि छिंदवाड़ा गांव में एक कब्रिस्तान है जिसे ग्राम पंचायत ने शवों को दफनाने और अंतिम संस्कार के लिए मौखिक रूप से आवंटित किया है.
याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता और उसके परिवार के सदस्य अपने परिजन का अंतिम संस्कार करना चाहते थे और उसके पार्थिव शरीर को कब्रिस्तान में ईसाई लोगों के लिए निर्दिष्ट क्षेत्र में दफनाना चाहते थे. याटिका में कहा गया है, ‘यह बात सुनकर कुछ ग्रामीणों ने इसका कड़ा विरोध किया और याचिकाकर्ता और उसके परिवार को इस भूमि पर याचिकाकर्ता के पिता को दफनाने पर गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी. वे याचिकाकर्ता के परिवार को उसके निजी स्वामित्व वाली भूमि पर शव को दफनाने की भी अनुमति नहीं दे रहे हैं.’
रमेश बघेल के अनुसार, ग्रामीणों का कहना है कि उनके गांव में किसी ईसाई को दफनाया नहीं जा सकता, चाहे वह गांव का कब्रिस्तान हो या निजी जमीन. उन्होंने कहा, ‘जब गांव वाले हिंसक हो गए, तो याचिकाकर्ता के परिवार ने पुलिस को सूचना दी, जिसके बाद 30-35 पुलिसकर्मी गांव पहुंचे. पुलिस ने परिवार पर शव को गांव से बाहर ले जाने का दबाव भी बनाया.’