Maharashtra polls: महाराट्र में 20 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दल जोर- शोर से प्रचार कर रहे हैं। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) में चल रही अंदरूनी कलह के कारण ये चुनाव शरद पवार और अजित पवार के भविष्य और महाराष्ट्र की राजनीति के लिए बेहद अहम है।
इसकी वजह है कि शरद पवार की विरासत और अजित पवार की सुधारवादी दृष्टि के बीच मतदाता उलझे हुए हैं, ऐसे में आगामी चुनाव परिणाम न केवल एनसीपी के नेतृत्व को बल्कि राज्य की राजनीतिक की दिशा निर्धारित करेगा।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) में आंतरिक कलह के कारण दिग्गज राजनीतिज्ञ शरद पवार को उनके भतीजे अजित पवार के विरुद्ध खड़ा कर दिया है, दोनों ही पार्टी प्रभुत्व की लड़ाई लड़ रहे हैं।
चाचा से बगावत के बाद एनसीपी के हुए दो टुकड़े
बता दें एनसपी में विभाजन की शुरूआत 2023 में तब हुई जब अजित पवार ने चाचा शरद पवार की एनसीपी से बगावत कर भाजपा और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना के साथ गठबंधन करने का फैसला किया।
35 सीटों के वोटर्स पवार परिवार के झगड़े का करेंगे फैसला
इस विवाद के कारण दोनों गुटों अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी और शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी (एसपी) ने 35 प्रमुख निर्वाचन क्षेत्रों में उम्मीदवार खड़े किए हैं, जिनमें बारामती भी शामिल है, जो एनसीपी का एक पारंपरिक गढ़ है। ये 35 सीटें ही दो गुटों में बंटी एनसीपी और पवार परिवार के झगड़े का निर्णय करेंगे, यहां के वोटर्स दो दिग्गज नेताओं और एनसीपी का भविष्य तय करेंगे।
कौन सी हैं ये 35 सीटें
बासमथ, फलटण, येवला, सिन्नर, डिंडोरी, शाहपुर, मुंबई कलवा, जुन्नार, अंबेगांव, शिरूर, इंदापुर, बारामती, पिंपरी, वडगांव, शेरी, हडस्पसर, अकोले, कोपरगांव, अहमदनगर शहर (अहिल्यानगर), मजलगांव, बीड, परली, अहमदपुर , उदगीर, माधा, माहोल, वाई, चिपलून, चांदगढ़, कागल, इस्लामपुर, तासगांव-कवथे महांकाल, तुमसर, अहेरी, पुसाद, पारनेर
विदर्भ की सात सीटों पर हो रही सीधी टक्कर
बता दें विदर्भ में कुल 62 सीटें हैं जिसमें से 35 सीटों पर तो कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला हो रहा है और विदर्भ की सात सीटों पर शरद पवार और अजित पवर की पार्टी के बीच सीधी टक्कर होगी। वहीं छह सीटों पर शिवसेना के ठाकरे और शिंदे गुट के बीच सीधी लड़ाई हो रही है।
विदर्भ में है असली लड़ाई
शरद पवार धर्मनिरपेक्षता और क्षेत्रीय पहचान के हिमायती हैं, जबकि अजित पवार भाजपा गठबंधन द्वारा समर्थित व्यावहारिक शासन की ओर झुकाव रखते हैं। एनसीपी का विभाजन एक कड़ी चुनावी लड़ाई में बदल गया है, जिसमें प्रत्येक गुट विदर्भ जैसे क्षेत्रों में प्रभाव के लिए होड़ कर रहा है। जिसमें तुमसर (भंडारा), अहेरी (गढ़चिरौली) और पुसाद (यवतमाल) जैसे निर्वाचन क्षेत्रों में सीधे चुनाव लड़ते हैं।
दोनों गुटों की जानें क्या है चुनावी रणनीति?
चुनाव प्रचार के दौरान शरद पवार ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों से जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं, सामाजिक कल्याण और विकास के पारंपरिक एनसीपी मूल्यों पर जोर दे रहे हैं और एमवीए गठबंधन के साथ मजबूत संबंध बनाए हुए हैं। इसके विपरीत, अजीत पवार के अभियान में बुनियादी ढांचे के विकास और शहरी परियोजनाओं के वादे शामिल हैं, जिसका उद्देश्य तेजी से विकास के लिए उत्सुक शहरी और अर्ध-शहरी मतदाताओं को आकर्षित करना है।
जानें दोनों गुट किस नाम और चुनाव चिन्ह पर लड़ रहे चुनाव
गौरतलब है कि चुनाव आयोग द्वारा दोनों गुटों को एनसीपी नाम का उपयोग अलग-अलग चुनाव चिन्ह के साथ करने की अनुमति दी है। हालांकि पार्टी के नाम और चुनाव चिन्ह को लेकर चल रही कानूनी लड़ाई के बीच हो रहे आगामी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में अजित पवार की पार्टी पुराने नाम एनसीपी और चुनाव चिन्ह घड़ी पर चुनाव लड़ रही है। वहीं शरद पवार एनसीपी (एसपी) और चुनाव चिन्ह तुतुही बजाता हुआ आदमी पर लड़ रहे हैं।
क्या कहते हैं विश्लेषक
एक राजनीतिक विश्लेषक एनसीपी के मतदाता आधार के भीतर तनाव पर बात करते हुए कहा “एनसीपी के मुख्य मतदाताओं ने अजीत पवार के दलबदल को पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया है। लोकसभा चुनाव में शरद पवार के गुट ने दस में से आठ सीटें जीतीं, जबकि अजीत के गुट को चार में से केवल एक सीट मिली। यह आगामी विधानसभा चुनाव बताएगा कि लोग अजीत के भाजपा के साथ गठबंधन के बारे में क्या सोचते हैं।”
चुनाव से पहले मजबूत हुई शरद पवार की एनसीपी
इसके अलावा, सिंदखेड राजा से राजेंद्र शिंगाने जैसे वरिष्ठ राजनेताओं की शरद पवार के खेमे में वापसी, एनसीपी के असली सार के रूप में कई लोगों द्वारा देखे जाने वाले समर्थन के एकीकरण का बड़ा संकेत है।
ऐसे में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे न केवल एनसीपी के भीतर नेतृत्व तय करेंगे बल्कि राज्य की भावी शासन शैली की दिशा भी तय करेंगे। अगर शरद पवार का गुट जीतता है, तो यह पार्टी के पारंपरिक मूल्यों और विपक्षी रुख को मजबूत कर सकता है। हालांकि, अजित पवार की जीत एनसीपी को भाजपा के साथ गठबंधन में विकास-केंद्रित दृष्टिकोण की ओर मोड़ सकती है।