हरियाणा में विधानसभा का पहला पूर्णकालिक सत्र शुरू होने जा रहा है, लेकिन कांग्रेस अब तक विधानसभा में अपना नेता नहीं चुन पाई है. वो भी तब, जब चुनाव नतीजे आए हुए 45 दिन का वक्त बीत चुका है.
सवाल उठ रहा है कि आखिर एक महीने बाद भी कांग्रेस इस पद को लेकर फैसला क्यों नहीं कर पाई है?
विधायक दल का नेता ही विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष होते हैं. नेता प्रतिपक्ष का काम फ्लोर पर विपक्षी विधायकों को एकजुट रखना और बड़े मुद्दों पर सरकार को घेरना है.
हार से उबर नहीं पा रही कांग्रेस?
नेता प्रतिपक्ष को लेकर फैसला न कर पाने की एक बड़ी वजह हार से नहीं उबर पाना है. कांग्रेस के कई बड़े नेता अब भी हार की समीक्षा में ही जुटे हैं. पार्टी चुनाव आयोग से भी लगातार शिकायत कर रही है. पार्टी का मानना है कि कई बूथों पर वोटिंग और ईवीएम की वजह से उसके उम्मीदवार हार गए.
कांग्रेस ने हरियाणा में हार की समीक्षा के लिए छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम भूपेश बघेल और राजस्थान कांग्रेस के नेता हरीश चौधरी के नेतृत्व में एक कमेटी गठित की थी.
इस कमेटी को कहा गया था कि उन सभी पहलुओं की समीक्षा की जाए, जिससे पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है. हार के लिए जिम्मेदार नेताओं की पहचान करने की जिम्मेदारी भी कमेटी को सौंपी गई थी.
कहा जा रहा है कि कमेटी ने अभी तक पूरी रिपोर्ट कांग्रेस हाईकमान को नहीं सौंपी है.
चेहरे को लेकर चकल्लस जारी
कांग्रेस के 37 विधायक इस चुनाव में जीत कर सदन पहुंचे हैं. इनमें 31 विधायक भूपिंदर सिंह हुड्डा गुट के हैं. हुड्डा गुट की कोशिश अपने किसी करीबी को नेता प्रतिपक्ष बनाने की है. इसके लिए गुट की तरफ से कई नाम की सिफारिश भी कांग्रेस हाईकमान को की गई है.
वहीं कद्दावर नेता कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला हुड्डा गुट से अलग किसी को नेता प्रतिपक्ष बनाने पर जोर दे रहे हैं. चंडीगढ़ में विधायक दल की बैठक में इसको लेकर तनातनी भी देखी गई थी. हालांकि, फाइनल फैसला हाईकमान पर छोड़ा गया था.
कांग्रेस हाईकमान वर्तमान में झारखंड और महाराष्ट्र चुनाव में बिजी है.
जातीय समीकरण भी एक फैक्टर
हरियाणा में कांग्रेस जाट और दलित समीकरण के सहारे आगे बढ़ती रही है. 2024 के चुनाव से पहले दलित समुदाय के चौधरी उदयभान को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी सौंपी गई थी तो जाट समुदाय के भूपिंदर सिंह हुड्डा को नेता प्रतिपक्ष की.
जाट समुदाय का वोट एकतरफा इस बार कांग्रेस को मिला है. वहीं लोकसभा चुनाव की तुलना में इस बार दलित वोटबैंक में सेंधमारी हुई है. हरियाणा में दलित और जाटों की आबादी करीब 40 प्रतिशत है. ऐसे में कहा जा रहा है कि कांग्रेस फिर इस समीकरण को साधने का काम करेगी.
पिछली बार दलित समुदाय के उदयभान के पास प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी थी. उदयभान होडल से विधायकी नहीं जीत पाए. ऐसे में उनकी कुर्सी भी खतरे में है. कहा जा रहा है कि विधायक दल का नेता न चुने जाने की एक वजह प्रदेश अध्यक्ष पर फैसला होना भी है.
इन 3 वजहों के अलावा कांग्रेस हाईकमान भी नेता प्रतिपक्ष को चुनने को लेकर कन्फ्यूज है. अगर किसी गुट को बड़ी जिम्मेदारी मिलती है और उन पर कांग्रेस के उम्मीदवारों को हराने का आरोप लगता है तो इससे पार्टी की किरकिरी हो सकती है.
इसलिए भी कांग्रेस इस मसले पर सारे एंगल जानने के बाद ही फैसला करना चाहती है.
हरियाणा में आपसी झगड़े से कांग्रेस हारी
लोकसभा चुनाव में 44 सीटों पर बढ़त हासिल करने वाली कांग्रेस 4 बाद ही हुए विधानसभा चुनाव में 37 सीटों पर सिमट गई. कांग्रेस की हार की बड़ी वजह आपसी गुटबाजी थी. सैलजा और हुड्डा गुट की तनातनी की वजह से कांग्रेस करीब एक दर्जन सीटों पर हार गई.
कुमारी सैलजा के कई करीबी को भी इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. इनमें प्रदीप चौधरी और शमशेर गोगी का नाम प्रमुख हैं. चुनाव में मिली हार के बाद असंध के पूर्व विधायक गोगी ने हुड्डा गुट पर सीधा हमला बोला था.
इधर, सैलजा के गांव और विधानसभा क्षेत्र में भी कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था. जानकारों का मानना है कि हरियाणा का पूरा चुनाव जाट वर्सेज गैर-जाट का हो गया, जिसकी वजह से कांग्रेस के परंपरागत दलित भी बीजेपी की तरफ शिफ्ट हो गए.