विधानसभा उपचुनाव की न तारीख तय हुई है, न ही इससे सरकार की सेहत पर कोई असर पड़ना है, लेकिन मामला आर-पार की लड़ाई जैसा है. मायावती ने तो अभी से टिकट बांटने शुरू कर दिए हैं. योगी आदित्यनाथ भी चुनाव प्रचार में लग गए हैं.
अखिलेश यादव ने एक-एक सीट के लिए रणनीति बना ली है. उन्होंने छह सीटों के लिए भारी भरकम नेताओं की फौज उतार दी है. कांग्रेस ने सभी सीटों के लिए चुनाव प्रभारी तय कर दिए हैं. भले ही पार्टी को अब तक ये भी नहीं पता उसे कितने सीटों पर लड़ना हैं. बीजेपी के सहयोगी दलों ने भी खूंटा गाड़ दिया है. बीजेपी ने बड़े नेताओं वाली टॉप 5 की कमेटी बनाई है. मंत्रियों वाली सुपर-30 पहले से ग्राउंड पर है. चुनाव अभी नहीं तो फिर कभी नहीं, जैसा हो गया है.
यूपी में विधानसभा की दस सीटों पर उपचुनाव हैं. इनमें से 5 सीटें पहले समाजवादी पार्टी के पास थीं. बीजेपी के खाते में 3 सीटें थीं. बीजेपी की सहयोगी पार्टी आरएलडी और निषाद पार्टी के पास एक-एक सीट थी. हाल में हुए लोकसभा चुनाव के नतीजे बीजेपी के लिए खतरे की घंटी हैं. इस हिसाब से पार्टी विधानसभा की सिर्फ तीन सीटों पर ही आगे रही थी. कहने का मतलब ये है कि बीजेपी को उन सीटों पर अधिक वोट मिले थे. अगर ट्रेंड यही रहा तो फिर गाजियाबाद, मझवां और फूलपुर में ही बीजेपी के लिए उम्मीदें बची हैं. कुंदरकी और करहल जैसी विधानसभा सीटों पर जीतना बीजेपी के लिए चमत्कार को नमस्कार करने जैसा होगा.
क्योंं खास है मिल्कीपुर विधानसभा सीट?
सबसे अधिक मारामारी तो मिल्कीपुर विधानसभा सीट के लिए है. जहां से विधायक रहे अवधेश प्रसाद अब फैजाबाद से समाजवादी पार्टी के सांसद हैं. ये वही फैजाबाद है जिसमें अयोध्या भी आती है. उसी अयोध्या के राम मंदिर से बीजेपी को कई सालों तक राजनीतिक खाद पानी मिलता रहा. मंदिर निर्माण के बावजूद बीजेपी यहां हार गई लेकिन ये हार बीजेपी पचा नहीं पा रही है. अब हर हाल में वो मिल्कीपुर उपचुनाव जीतकर धमाकेदार वापसी के जुगाड़ में है. पिछले हफ्ते योगी आदित्यनाथ दो बार अयोध्या का दौरा कर चुके हैं. अयोध्या जाकर सीएम योगी ने हिंदुत्व का कार्ड चल दिया. वो जानते हैं धर्म का दांव ही अखिलेश यादव के सामाजिक समीकरण को तोड़ सकता है. योगी आदित्यनाथ ने कहा कि बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार हो रहा है पर विपक्ष का मुंह सिला हुआ है.
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ फिर रविवार 18 अगस्त को अयोध्या जा रहे हैं. वो वहां रोजगार मेले में नौजवानों को रोजगार और नौकरी के सर्टिफिकेट देंगे. अखिलेश यादव ने मिल्कीपुर चुनाव के लिए अपने सांसद अवधेश प्रसाद को वहां का प्रभारी बनाया है. अवधेश यहां से अपने बेटे को चुनाव लड़वाना चाहते हैं. वो कहते हैं कि इस बार बीजेपी को पचास हजार वोट भी नहीं मिलेंगे. अवधेश खुद दलित हैं. मिल्कीपुर में यादव और मुसलमान वोटरों का दबदबा है. इस विधानसभा में 65 हजार यादव और 35 हजार मुसलमान हैं. करीब 60 हजार पासी दलित हैं जबकि 50 हजार गैर पासी दलित वोटर हैं. ठाकुर वोटरों की संख्या भी 25 हजार के आसपास है. बीजेपी 2017 के विधानसभा चुनाव में ये सीट जीत चुकी है. तब गोरखनाथ यहां से विधायक चुने गए थे. बीजेपी इस बार यहां से बाराबंकी की पूर्व सांसद प्रियंका सिंह रावत के नाम पर भी विचार कर रही है. कांग्रेस ने अपने प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह को इस सीट पर चुनाव तैयारी के लिए प्रभारी बनाया है.
बीजेपी मेंं सभी बड़े फैसले करती है यही कमेटी
यूपी बीजेपी कोर कमेटी में पार्टी के 5 बड़े नेता हैं. सरकार और संगठन के सभी बड़े फैसले यही कमेटी करती है. इसमें सीएम योगी आदित्यनाथ के साथ दोनों डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक शामिल हैं. इसके अलावा पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी और संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह भी इस कमेटी में हैं. इन सभी नेताओं ने आपस में दो-दो विधानसभा सीटों की जिम्मेदारी ले ली है. सीएम योगी ने मिल्कीपुर और कटेहरी की जिम्मेदारी अपने पास रख ली है. वे एक पार कटेहरी भी हो आए हैं. समाजवादी पार्टी ने सीएम योगी से मुकाबले के लिए शिवपाल यादव को यहां का चार्ज दिया है. कटेहरी से विधायक रहे लालजी वर्मा अब सांसद बन गए हैं. वे अपनी बेटी को यहां से चुनाव लड़वाना चाहते हैं. वैसे समाजवादी पार्टी की नजर बीजेपी के एक पूर्व विधायक पर भी है. ब्राह्मण समाज के ये नेता पहले भी समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ चुके हैं.
चुनाव की तारीखों का ऐलान अभी नही्ं हुआ है. लेकिन टिकट को लेकर जबरदस्त मारामारी मची है. निषाद पार्टी किसी भी सूरत में अपने कोटे की दोनों सीटें छोड़ने को तैयार नहीं है. पिछली बार पार्टी के हिस्से में कटेहरी और मंझवा् सीटें मिली थीं. बीजेपी के एक बड़े नेता ने कहा कमल निशान पर चुनाव लड़ना ही बेहतर होगा. निषाद पार्टी के चुनाव चिह्न को तो बहुत लोग जानते भी नहीं है. मुज़फ़्फ़रनगर की मीरापुर सीट आरएलडी अपने पास रखना चाहती है. यहाँ से विधायक रहे चंदन चौहान अब सांसद हैं.
ये बीजेपी के लिए दम दिखाने का मौका
कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का गठबंधन जारी है. लेकिन दोनों में एक दूसरे के खिलाफ दम दिखाने की भी तैयारी है. सीटों के बंटवारे पर दोनों में कोई बातचीत नहीं हुई है. लेकिन कांग्रेस की तरफ़ से कभी तीन तो कभी चार और एक नेता ने तो पांच सीटों की डिमांड कर दी. यूपी से पार्टी के छह सांसद हैं. राहुल गांधी को छोड़कर बाकी सभी पांचों एमपी की उपचुनाव में अभी से ड्यूटी लगा दी गई है.
यूपी में विधानसभा चुनाव 2027 की शुरूआत में है. लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने के बाद समाजवादी पार्टी उपचुनाव तक माहौल बनाए रखना चाहती है. बीजेपी के लिए ये मौका है अपना दम दिखाने का. एक संदेश देने का कि बाजी अभी भी उसके हाथ है. बीएसपी के लिए तो जीवन मरण का सवाल है. हालांकि, कांग्रेस न तीन में है और न तेरह में.