चेन्नई. चेंगलपेट जिले के वड़नेमिली स्नेक कैचर्स सोसायटी ने पिछले 3 वर्षों में सांपों के जहर से 2.5 करोड़ रुपए का मुनाफा कमाया है। जिले के तिरुपोरूर, महाबलीपुरम और तिरुकल्लीकुंड्रम क्षेत्र में बड़ी संया में इरुलर जनजाति के लोगों की बसावट हैं। इनका मुय कार्य खेतों और जंगलों में सांप पकड़ना है। सांप पकड़ने की इनकी खूबी अब संगठित व्यवसाय का रूप ले चुकी है। वे इस सोसायटी के सदस्य के रूप में यह कार्य कर रहे हैं।
1978 में बनी कॉ-ऑपरेटिव सोसायटी :
उनकी आजीविका में सुधार के लिए, वड़नेमिली स्नेक कैचर्स इंडस्ट्रियल कॉ-ऑपरेटिव सोसायटी 1978 से तमिलनाडु उद्योग और वाणिज्य विभाग के तहत महाबलीपुरम के बगल में वड़नेमिली क्षेत्र में काम कर रही है। यह सोसायटी वहां सांपों का फार्म चला रही है। सोसायटी के सदस्य सर्पदंश का एंटीडोट (दवा) तैयार करने के लिए यहां जहरीले सांपों का विष निकाल कर एकत्र करते हैं। स्नेक फार्म में आने वाले आगंतुकों के सामने सांप से जहर निकालने का प्रत्यक्ष मुजायरा भी किया जाता है। तमिलनाडु सरकार के श्रम कल्याण विभाग के एक अधिकारी के जिमे यह फार्म और उसकी क्रियाएं हैं। स्नेक कैचर्स सोसायटी में एक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और पांच कार्यकारी समिति के सदस्य हैं। वड़नेमिली के स्नेक फार्म में जहरीले सांप का विष निकालकर मटकों में संग्रहित किया गया है।
महाराष्ट्र बेचा जाता है सांप का जहर
इस एसोसिएशन के इरुलर सदस्य कोबरा, कट्टुविरियन, कन्नाड़ी और सुरुटै नस्ल के जहरीले सांपों को पकड़ते हैं। फिर सर्प विशेषज्ञ इनका जहर निकालकर मटकियों में भरकर रखते हैं तथा डिमांड के अनुसार इनकी सप्लाई महाराष्ट्र के पुणे की विषरोधी दवा उत्पादक कंपनियों को करते हैं।
सोसायटी के एक सदस्य ने बताया कि जहरीले सांपों से सालाना करीब आधा किलो विष निकाला जाता है। इसे बेचने से करीब डेढ़ करोड़ की आय होती है। वड़नेमिली स्नेक फार्म के एक अधिकारी ने बताया कि पिछले तीन सालों में 1,807 ग्राम जहर इकट्ठा कर, इसे साढ़े पांच करोड़ रुपए में बेचा गया, इससे सोसायटी को ढाई करोड़ का मुनाफा हुआ।