नई दिल्ली/टीम डिजिटल। हरियाणा में लंबे समय से चर्चा रही है कि जाट मतदाता BJP के खिलाफ लामबंद हो रहे हैं। किसानों के आंदोलन और पहलवानों के प्रदर्शन से भी इस धारणा को काफी मजबूत किया है।
हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में BJP को हरियाणा में 10 में से 5 सीटें ही मिल पाई थी। इस निराशा के बाद अक्टूबर में आगामी विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं।
अब इन सब के बाद BJP चाहती है कि एंटी- इनकम्बेंसी से उबरा जाए। ऐसे में जाट फैक्टर की काट के लिए वह सामाजिक समीकरण तैयार करने की कोशिश जारी है।
बताया जा रहा है कि इस के पहले ओबीसी चेहरे नायब सिंह सैनी को सीएम बनाया गया है। फिर ब्राह्मण नेता मोहन लाल बड़ौली को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी गई है।
अब दलित समाज से आने वाले कृष्ण बेदी को महासचिव बनाया गया है । पहले इस पद पर मोहन बड़ौली थे, उनका प्रमोशन हुआ तो जगह खाली थी और अब कृष्ण को उस जगह पर नियुक्त कर दिया गया है।
बीजेपी ने इस तरह से जाट फैक्टर की काट के लिए OBD फॉर्मूला तो अपना रही है। इस फॉर्मूला के अंतर्गत भाजपा राज्य के 62 फीसदी मतदाताओं को टारगेट करना चाहती है।
राज्य में सैनी, गुर्जर , यादव समेत ओबीसी बिरादरियों के करीब 30 फीसदी वोट हैं। यह सबसे बड़ा सामाजिक समूह है।इसके अलावा दलितों की संख्या भी करीब 20 फीसदी बताई जाती है।
2024 के लोकसभा चुनाव से एक संकेत तो साफ मिल गया, जाट और दलित मतदाता कांग्रेस के पक्ष में एकजुट होकर मतदान कर रही है।
ऐसे में बीजेपी ने उस गठजोड़ की काट के लिए कृष्ण बेदी को मौका दिया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में मिल 58 प्रतिशत वोट, अब 46 प्रतिशत पर आकर ठहर गया है।