फैजाबाद में चुनावी हार बीजेपी के लिए नई बात नहीं थी. अयोध्या में बाबरी मस्जिद के नाम से मशहूर विवादित ढांचा ढहाए जाने के बाद भगवा पार्टी को इस सीट पर तीन बार हार का सामना करना पड़ा है जो यह बताने के लिए पर्याप्त है कि बीजेपी का उदय उस फैजाबाद में उसके चुनावी प्रदर्शन का पर्याय नहीं है जो कभी राम मंदिर आंदोलन का केंद्र था.
अयोध्या एक ऐसा विधानसभा क्षेत्र है जहां पिछले लोकसभा चुनाव में 50,000 से अधिक वोटों से सीट हारने के बावजूद भी भाजपा उम्मीदवार ने बढ़त बनाए रखी थी. हालांकि, 2014 में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की राजनीति की लहर पर सवार होकर नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से बीजेपी यहां हारी नहीं… इसलिए हाल ही में समाजवादी पार्टी के हाथों मिली हार ने इंडिया गठबंधन में एक नई ऊर्जा तो भरी ही. क्योंकि, बीजेपी की लुढ़कन सिर्फ एक सीट तक सीमित नहीं थी. बीजेपी ने 29 सीटें खो दीं जिनमें से कई सीटें उस रूट विशेष पर पड़ती थीं जिसे राम वन गमन पथ माना जाता है जो दरअसल वह मार्ग है जिस पर चलकर भगवान राम ने अयोध्या वन की ओर से निर्वासन किया था. फैजाबाद के बाद बद्रीनाथ विधानसभा उपचुनाव में हार ने इंडिया ब्लॉक, खासकर कांग्रेस को और अधिक उत्साह से भर दिया. पार्टी मानती है कि इन जीतों से उनके कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ेगा जिससे यह विश्वास पैदा होगा कि वे बीजेपी को उसी के मैदान में चुनौती दे सकते हैं.
पार्टी नेतृत्व ने अयोध्या को बद्रीनाथ से जोड़ने में कोई देरी नहीं की. भगवान राम को विष्णु का सातवां अवतार माना जाता है. और, बद्रीनाथ वह स्थान है जहां के लिए माना जाता है कि भगवान विष्णु ने ध्यान किया था… उत्तराखंड कांग्रेस के नेता गणेश गोदियाल और हरीश रावत ने बिना वक्त गंवाए इन दोनों के बीच कॉमन बिन्दु निकाला और बीजेपी पर हमला बोलते हुए कहा कि मोदी की पार्टी हिंदू भावनाओं की एकमात्र संरक्षक नहीं है. अब विडम्बना यह है कि एक और ‘टेंपल टाउन क्लैश’ नजदीक है. देवभूमि में अब एक और उपचुनाव होगा जो केदारनाथ में होगा जहां भगवान शिव की पूजा की जाती है. इस जगह को लेकर शिव से राम का पौराणिक संबंध पहले ही कांग्रेस सामने रखा चुकी है क्योंकि माना जाता है कि भगवान राम हमेशा भगवान शिव की पूजा करते थे. कहा जाता है कि श्रीलंका जाने से पहले उन्होंने रामेश्वरम के शिव मंदिर में पूजा की थी.
बद्रीनाथ में हार उत्तराखंड में किसी भी उपचुनाव में सत्तारूढ़ दल को मिली पहली हार थी. गौरतलब है कि यह सीट मौजूदा कांग्रेस विधायक राजेंद्र भंडारी के पार्टी से इस्तीफा देने और बीजेपी से चुनाव मैदान में उतरने के बाद खाली हुई थी. बीजेपी ने ऐतिहासिक रूप से उपचुनाव परिणामों को बहुत गंभीरता से कभी नहीं लिया है. हालांकि अब लगता है कि हालात बदल सकते हैं. छह राज्यों में हाल ही में हुए उपचुनावों में इंडिया ब्लॉक ने जीत का सेहरा पहनकर जो नैरेटिव सेट किया है उसके बाद भाजपा को भी रणनीति बदलनी ही होगी. यह इसलिए भी जरूरी होगा क्योंकि इसी साल महाराष्ट्र और हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने हैं. साथ ही उत्तर प्रदेश की 10 खाली विधानसभा सीटों पर चुनाव होने जा रहे हैं.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत की गोरखपुर में लगातार बैठकों के बाद बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने लखनऊ में कई दौर की रणनीतिक बैठकें की हैं. इस तथ्य को दरकिनार नहीं किया जा सकता कि पहली बार है जब सीएम योगी आदित्यनाथ ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया कि लोकसभा चुनाव में पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन के लिए जाति के आधार पर वोटों का विभाजन एक महत्वपूर्ण फैक्टर था. इसका तात्पर्य यह है कि अकेले हिंदुत्व के बल पर कोई पार्टी जातिगत समीकरणों को धता बता नहीं सकती है.
यह स्वाभाविक है क्योंकि हमारे समाज का गहराई से विभाजित तबका किसी भी राजनीतिक दल द्वारा फैलाई गई धार्मिक और आध्यात्मिक लहरों में लगातार शरण नहीं ढूंढ सकता है. अब जब रामलला को अपना स्थान वापस मिल गया है तो बीजेपी को अपने विकास के मुद्दे पर आगे बढ़ने की जरूरत है जिसमें रोटी, कपड़ा और मकान से कहीं ज्यादा कुछ शामिल होना चाहिए. दूसरी ओर, राहुल गांधी और अन्य भारतीय गुट के नेताओं को विपक्ष में रहने का फायदा है और वे हर तरफ से भाजपा का मुकाबला करना जारी रखेंगे. याद कीजिए, जब राहुल गांधी पहली बार सोमनाथ में माथे पर तिलक लगाए और फिर अपना जनेऊ दिखाते दिखे थे, तो बीजेपी ने तीखा हमला करते हुए उन्हें ‘चुनावी मौसम का हिंदू’ करार दिया था. हालांकि इससे भाई-बहन की इस जोड़ी पर कोई असर नहीं पड़ा क्योंकि 2017 के यूपी विधानसभा चुनावों के दौरान प्रियंका ने गंगा यात्रा शुरू की और उन्होंने अपना मंदिर अभियान जारी रखा, भले ही हर बार पीएम मोदी ने ही सुर्खियां बटोरीं. राम मंदिर अभिषेक इसका हालिया उदाहरण है.
जिस तरह से राहुल गांधी ने लोकसभा में भगवान शिव तस्वीर दिखाई और ‘आइडिया ऑफ इंडिया’ पर हमला करने के लिए बीजेपी पर ‘हिंदुइज्म’ को लेकर कटाक्ष किया, वह इस बात का उदाहरण था कि अयोध्या की जीत ने विपक्ष को आत्मविश्वास दिया है. हालांकि राहुल कभी भी मुखर नहीं दिखे लेकिन उन्होंने अमित शाह और यहां तक कि पीएम मोदी को हस्तक्षेप करने और हिंदू धर्म के बारे में उनके विवरण को स्पष्ट करने या सही करने के लिए मजबूर तो कर ही दिया. बद्रीनाथ का चुनावी परिणाम इस भावना को और मजबूत करेगा. लेकिन विपक्ष को यह समझना होगा कि बूस्टर खुराक मिलने के बावजूद बड़ा जनादेश बीजेपी के साथ गया है. अगले आम चुनाव से पहले उन्हें एक दर्जन से ज्यादा विधानसभा चुनावों में बीजेपी का सामना करना है. उनकी चुनौती अपने समर्थन आधार को बढ़ाते रहने की होगी.
दूसरी ओर, केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी के पास सुधार करने का मौका है. मोदी को अपने तीसरे कार्यकाल में गठबंधन सहयोगियों पर अपनी निर्भरता का एहसास जल्दी हो गया है. यह अपने आप में यह सुनिश्चित करेगा कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के साझेदारों को निर्णय लेने में अधिक अधिकार मिले. इससे उन राज्यों में उनकी एकजुट उपस्थिति को मजबूत करने में मदद मिलेगी जहां बीजेपी एक जूनियर सहयोगी की भूमिका में है. युवा रोजगार सृजन चाहते हैं, किसान बेहतर कीमतों की मांग करते हैं, हाशिए पर रहने वाले गरीब लोग तेजी से आर्थिक उत्थान की मांग करते हैं और वेतनभोगी वर्ग कर राहत चाहता है.
एक सप्ताह तक प्रतीक्षा करें… जब बजट संसद में पेश किया जाएगा तो सरकार को अपने इरादे बताने का मौका मिलेगा.