Sheikh Hasina China Visit Conflict: बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना इस सप्ताह की शुरुआत में अपनी यात्रा को बीच में ही खत्म करके चीन से अपने देश लौट आईं हैं। शेख हसीना, जिन्हें कथित तौर पर गुरुवार (11 जुलाई) की सुबह बीजिंग से रवाना होना था, वो बुधवार की रात को बीजिंग से रवाना हो गईं।
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री के रूप में शेख हसीना की यह पांचवीं और पांच साल में पहली चीन यात्रा थी। हालांकि, बीजिंग से उनका जल्दी लौटना इस बात का संकेत है, कि उन्हें इस यात्रा से वह नहीं मिला, जो वे चाहती थीं।
ऐसी रिपोर्ट है, कि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री को ना ही चीन से किसी भी तरह की वित्तीय मदद का आश्वासन मिला और ना ही उन्हें वो प्रोटोकॉल ही दिया गया, जो किसी देश के प्रधानमंत्री को दिया जाता है, जो उनका अपमान था, जिससे गुस्सा होकर उन्होंने बीच में ही अपना चीन का दौरा खत्म कर वतन की फ्लाइट पकड़ ली।
शेख हसीना के दौरे में क्या हुआ था?
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री हसीना ने बुधवार (10 जुलाई) को बीजिंग में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और उनके चीनी समकक्ष ली कियांग से मुलाकात की थी। इस दौरान दोनों देशों ने 21 समझौतों पर हस्ताक्षर किए, जिनमें तीन नए समझौता ज्ञापन (एमओयू) शामिल हैं।
बांग्लादेश की सरकारी समाचार एजेंसी बांग्लादेश संगबाद संस्था (बीएसएस) के मुताबिक, इस यात्रा में बीजिंग और ढाका ने अपनी “रणनीतिक साझेदारी” को “व्यापक रणनीतिक सहकारी साझेदारी” में बदल दिया और ढाका और बीजिंग ने सात और परियोजनाओं की भी घोषणा की। बीएसएस के मुताबिक, दोनों देशों के बीच प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता के बाद हसीना और ली की मौजूदगी में समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए। इसके अलावा, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री और उनकी चीनी समकक्ष के बीच द्विपक्षीय वार्ता में रोहिंग्या, व्यापार, वाणिज्य और ट्रेड, निवेश और दोनों देशों के संबंधों पर चर्चा हुई। दोनों ने क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मामलों पर भी चर्चा की गई। रिपोर्ट के मुताबिक, द्विपक्षीय समझौतों में मुख्य रूप से व्यापार और निवेश शामिल थे। पीटीआई ने बताया है, कि इनमें 6वें और 9वें बांग्लादेश-चीन मैत्री पुल का निर्माण, बांग्लादेश से कृषि उत्पादों का निर्यात, बुनियादी ढांचे का विकास और लोगों के बीच संपर्क भी शामिल है। बीएसएस ने चीनी राष्ट्रपति के हवाले से बताया है, कि चीन बांग्लादेश को आर्थिक अनुदान के साथ-साथ ब्याज मुक्त ऋण, रियायती ऋण और वाणिज्यिक ऋण भी देगा।
बांग्लादेश के विदेश मंत्री हसन महमूद ने शेख हसीना की शी जिनपिंग के साथ बैठक को “बहुत ही सौहार्दपूर्ण माहौल” में हुई “बहुत सफल चर्चा” बताया। वहीं, चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक, शेख हसीना से मुलाकात करने वाले चीन के पोलित ब्यूरो स्थायी समिति के सदस्य वांग हुनिंग ने कहा, कि “चीन और बांग्लादेश ने एक-दूसरे का सम्मान किया है और समानता का व्यवहार किया है, जो देशों के बीच मैत्रीपूर्ण सह-अस्तित्व और पारस्परिक रूप से लाभकारी सहयोग का एक अच्छा उदाहरण है।”
लेकिन शेख हसीना तय समय से पहले वापस क्यों लौटीं?
हालांकि, शेख हसीना ने बेटी के स्वास्थ्य खराब होने का हवाला दिया है, लेकिन दिखने में जितना दिख रहा है, ये मामला उससे कहीं ज्यादा का है। बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय के अनुसार, चीन ढाका को 1 बिलियन युआन ($137 मिलियन या 11,52 करोड़ रुपये) की आर्थिक सहायता देगा। शेख हसीना से मुलाकात के दौरान ली ने यह घोषणा की। लेकिन ढाका को इससे कहीं ज्यादा वित्तीय मदद की उम्मीद थी। इकोनॉमिक टाइम्स (ईटी) की रिपोर्ट के मुताबिक, शेख हसीना वादे से कम वित्तीय सहायता और उनके लिए “उचित प्रोटोकॉल” की कमी से “नाराज़” हो सकती हैं। बांग्लादेशी पीएम की यात्रा से पहले, चीन ने ढाका को 5 अरब डॉलर की ऋण सहायता का वादा किया था, लेकिन हसीना की यात्रा के दौरान इसे घटाकर सिर्फ 100 मिलियन डॉलर कर दिया गया, जो शेख हसीना की नाराजगी की सबसे बड़ी वजह थी। बांग्लादेश के प्रधानमंत्री को उम्मीद थी, कि वे शी जिनपिंग से लंबी बातचीत करेंगी, लेकिन शी जिनपिंग ने उन्हें काफी कम वक्त दिया और उन्हें प्रधानमंत्री ली से बात करने के लिए कहा। इसके अलावा, चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने शेख हसीना की बीजिंग यात्रा के दौरान उनसे मुलाकात ही नहीं की। ये अपने आप में चौंकाने वाली बात है, कि किसी देश का प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति दौरे पर आए, और मेजबान देश का विदेश मंत्री ही कहीं मौजूद ना हो। जबकि अमूमन चीन की सरकारी मीडिया, देश आए विदेशी नेताओं के दौरे को भरपूर कवरेज देता है, लेकिन उसने बांग्लादेश के प्रधानमंत्री के साथ वैसा व्यवहार नहीं किया। और चीन के इस रूखेपन ने शेख हसीना की यात्रा पर गंभीर असर डाला और शेख हसीना ने चीन का दौरा पहले ही खत्म कर वापस लौट आईं। बांग्लादेश-चीन में कैसे हैं संबंध? बीजिंग के साथ ढाका के संबंध मैत्रीपूर्ण रहे हैं। मुख्य रूप से रक्षा और आर्थिक सहयोग के मामलों में बांग्लादेश में चीन की उपस्थिति काफी बढ़ गई है। चीन 13 वर्षों से बांग्लादेश का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार रहा है। पिछले साल बांग्लादेश में चीनी निवेश 3.2 अरब डॉलर तक पहुंच गया है, जिससे बीजिंग, बांग्लादेश के लिए विदेशी निवेश का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत बन गया। संयुक्त राज्य अमेरिका ढाका का सबसे बड़ा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश स्रोत बना हुआ है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन ने बांग्लादेश में बुनियादी ढांचे के विकास में बड़ा योगदान दिया है, जिसमें सात रेलवे परियोजनाएं, 12 राजमार्ग, 21 पुल और 31 बिजली स्टेशन शामिल हैं। बांग्लादेश 2016 में चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) में शामिल हो गया। दोनों देशों के बीच रक्षा संबंधों का भी विस्तार हुआ है। चीन ने हाल के वर्षों में बांग्लादेश को सैन्य लड़ाकू जेट, टैंक और पनडुब्बियां सौंपी हैं। इसके अलावा, 2015-2019 की अवधि में बांग्लादेश के हथियारों के आयात में चीन का हिस्सा 74 प्रतिशत था। इसके अलावा, जब इस साल जनवरी में अमेरिका और यूरोपीय देशों ने शेख हसीना की सरकार पर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने का दबाव बनाया, तो चीन ने खुलकर उनका पक्ष लिया था। इसके अलावा ढाका और बीजिंग अगले साल अपने राजनयिक संबंधों की स्वर्ण जयंती मनाएंगे।
भारत-चीन के बीच फंसा है बांग्लादेश?
बांग्लादेश के भारत के साथ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध हैं, जो एशिया में उभरती हुई शक्ति है, जिसका चीन के साथ लंबे समय से सीमा विवाद है।
ढाका ने भारत और चीन के प्रति संतुलित नजरिया बनाए रखने की कोशिश की है। अंतरराष्ट्रीय थिंक टैंक द इंस्टीट्यूट फॉर पॉलिसी, एडवोकेसी एंड गवर्नेंस (आईपीएजी), इंडिया के अध्यक्ष सैयद मुनीर खसरू ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है, कि शेख हसीना ने “एक महीने में नई दिल्ली की दो यात्रा करते भारत के साथ मजबूत संबंध होने का संकेत दिया था।”
शेख हसीना ने 9 जून को दिल्ली में पीएम मोदी के तीसरे शपथ ग्रहण समारोह में भाग लिया था। इसके दो हफ्ते बाद ही वो दोबारा दिल्ली आईं, जहां उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के साथ द्विपक्षीय वार्ता की और फिर इस हफ्ते वो चीन की यात्रा पर गईं थीं और उनकी इस यात्रा से संकेत मिलता है, कि शेख हसीना नई दिल्ली और बीजिंग दोनों के साथ साझेदारी चाहती हैं। हालांकि, मौजूदा जियो-पॉलिटिकल स्थिति में बांग्लादेश के लिए भारत और चीन के बीच संतुलन बनाना मुश्किल हो सकता है।
खसरू ने अखबार के लिए अपने लेख में लिखा है, कि “बांग्लादेश को चीन के साथ आर्थिक सहयोग ने विकास के लिए लाभ दिया है, लेकिन चीन पर ऋण निर्भरता ने उसकी चिंताएं भी बढ़ाई हैं। दक्षिण एशिया और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में विकसित हो रहे भू-राजनीतिक परिदृश्य ने बांग्लादेश के तटस्थ रुख को बनाए रखना मुश्किल बना दिया है। बांग्लादेश खुद को क्षेत्रीय सुरक्षा, जल अधिकार और आर्थिक एकीकरण जैसे जटिल मुद्दों से जूझता हुआ पाता है, जिससे दोनों दिग्गजों के साथ उसके रिश्तों में तनाव पैदा होने की संभावना है।”