Ground Report : पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम का जिक्र आते ही 2007 में भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलन की याद आ जाती है। तब तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलन शुरू किया। फिर ममता ने हुगली के सिंगूर में ऐसा भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलन छेड़ा कि 34 साल से सत्ता में काबिज वामदल उखड़ गए। इसी नंदीग्राम में पिछले विधानसभा चुनाव में सीएम ममता को पूर्व साथी शुभेंदु अधिकारी से हार का स्वाद चखना पड़ा। दरअसल, तमलुक संसदीय क्षेत्र में ही नंदीग्राम विधानसभा सीट आती है। ऐतिहासिक शहर तमलुक में इस बार रोचक मुकाबला देखने को मिल रहा है। तृणमूल ने युवा उम्मीदवार देवांशु भट्टाचार्य को मैदान में उतारा है। भाजपा ने कलकत्ता हाईकोर्ट के पूर्व जज अभिजीत गंगोपाध्याय पर दांव खेला है। माकपा से अधिवक्ता सायन बनर्जी मैदान में हैं। तमलुक में फील्डिंग सज चुकी है। ‘खेला होबे’ फेम देवांशु का जोश चलेगा या पूर्व जज अभिजीत के शिक्षक भ्रष्टाचार संबंधित मामलों में दिए गए फैसले का असर होगा, यह तो यहां के मतदाताओं पर निर्भर है। 2019 के आम चुनाव में तृणमूल उम्मीदवार दिव्येंदु अधिकारी ने 7,24,433 वोट हासिल करते हुए 1,90,165 वोटों के अंतर से जीत हासिल की। दिव्येंदु अधिकारी ने भाजपा के सिद्धार्थशंकर नस्कर को हराया, जिन्हें 5,34,268 वोट मिले थे।
विकास के पक्ष में हैं मतदाता
पर्यटन की दृष्टि से यदि उत्तर बंगाल का दार्जिलिंग सरताज है, तो दक्षिण बंगाल का तमलुक है। तमलुक में ही दीघा, हल्दिया, मंदारमणि, चांदपुर, ओल्ड दीघा आदि कई पर्यटन और औद्योगिक क्षेत्र हैं। सागर किनारे बसे तमलुक के लोग विकास के पक्ष में दिख रहे हैं। कई लोगों से बात करने के दौरान सुकुमार घोष कहते हैं कि यहां जो विकास करेगा, वहीं जीतेगा।
पहले वाममोर्चा के पाले में, अब तृणमूल का कब्जा
लंबे समय से इस सीट पर वाममोर्चा का कब्जा था। राज्य में सत्ता परिवर्तन की लहर शुरू होते ही तृणमूल का इस पर कब्जा हो गया। शुभेंदु अधिकारी 2009 से 2016 तक बतौर सांसद रहे। ममता सरकार में जब शुभेंदु को परिवहन मंत्री बनाया गया तो उन्होंने इस सीट से इस्तीफा दे दिया। फिर उनके भाई दिव्येंदु 2016 से सांसद रहे। लंबे अंतराल के बाद यह सीट अब अधिकारी परिवार के पास नहीं होगी। भाजपा ने इस बार शुभेंदु के लाख प्रयास के बाद भी उनके भाई दिव्येंदु को यहां से टिकट नहीं दिया। तब अधिकारी परिवार ने अपने सबसे भरोसेमंद व्यक्ति और पूर्व जज अभिजीत को भाजपा का उम्मीदवार बनाने के लिए कोशिश की। अब उनको जीत दिलाने के लिए यह परिवार पूरी कोशिश कर रहा है। शुभेंदु ने दिसम्बर 2020 में तृणमूल छोडक़र भाजपा का दामन थामा था, जबकि उनके भाई दिव्येंदु इस साल मार्च में भाजपा में शामिल हुए। अब ममता के नेतृत्व वाली तृणमूल के सामने फिर से यहां की बादशाहत बनाए रखने की चुनौती बढ़ गई है।
विस क्षेत्र: 4 पर तृणमूल, 3 पर भाजपा का कब्जा
तमलुक संसदीय क्षेत्र के तहत तमलुक, पांशकुड़ा पूर्व, मोयना, नंदकुमार, महिषादल, हल्दिया और नंदीग्राम ये सात विधानसभा सीटें हैं। इनमें से मोयना, हल्दिया और नंदीग्राम पर भाजपा का कब्जा है। बाकी चार पर तृणमूल ने जीत हासिल की है। तमलुक में एससी और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 30 फीसदी से ज्यादा है। सभी पार्टियां इन मतदाताओं पर फोकस कर रही हैं क्योंकि इन समुदाओं के 80 से 70 फीसदी वोट पड़ते हैं।
देवांशु भट्टाचार्य (तृणमूल कांग्रेस)
मजबूत पक्ष
-युवा वर्ग पर अच्छी पकड़, चर्चित चेहरा।
-टीएमसी के आईटी सेल प्रभारी व सोशल मीडिया पर पकड़।
-तृणमूल के मशहूर ‘खेला होबे’ नारे के जनक।
कमजोर पक्ष
-परिपक्वता का अभाव, चुनाव लडऩे का अनुभव नहीं।
-तमलुक के लिए बाहरी उम्मीदवार
-शुभेंदु अधिकारी जैसे किसी बड़े नेता का अभाव
अभिजीत गंगोपाध्याय (भाजपा)
मजबूत पक्ष
-शिक्षक भर्ती भ्रष्टाचार उजागर कर सुर्खियों में आए।
-पूर्व जज होने से लोगों में सम्मान।
-शुभेंदु अधिकारी जैसे परिपक्व नेता का मार्गदर्शन।
कमजोर पक्ष-
-राजनेता के तौर पर कोई अनुभव नहीं
-शुभेंदु अधिकारी परिवार के प्रभाव पर ही निर्भर
-तमलुक के लिए बाहरी उम्मीदवार