कच्चाथीवू द्वीप इन दिनों सुर्खियों में बना हुआ है. दरअसल 31 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तमिलनाडु में आयोजित एक रैली में कांग्रेस पर निशाना साधते हुए इस द्वीप को श्रीलंका को दिए जाने का विरोध जताया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि जिस तरह से नए तथ्य सामने आए हैं वो बताते हैं कि कांग्रेस की सरकार ने सोच समझकर कच्चाथीवू द्वीप को छोड़ दिया यही नहीं इस द्वीप को तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने श्रीलंका को गिफ्ट भी कर दिया. आइए जानते हैं आखिर कहां है कच्चाथीवू द्वीप, क्यों इसको लेकर पूर्व पीएम जवाहरलाल नेहरू ने महत्व नहीं दिया और क्यों इंदिरा गांधी ने इसे श्रीलंका को सौंप दिया.
कहां है कच्चाथीवू आयलैंड
कच्चाथीवू विवाद क्या है इस बारे में जानने से पहले यह जान लेते हैं कि आखिर कच्चाथीवू कहां पर है. यह आयलैंड रामेश्वरम और श्रीलंका के बीच स्थित एक छोटा सा द्वीप है. रामेश्वर से 12 मील की दूरी पर यह स्थित है. वहीं श्रीलंका के जाफना इलाके से इसकी दूरी 10.5 मील है. यह पूरा आयलैंड करीब 285 एकड़ में फैला हुआ है. लंबाई की बात की जाए तो 1.6 किमी है, जबकि इसकी चौड़ाई 300 मीटर है. हालांकि इस आयलैंड पर कोई नहीं बसा है. यह विरान पड़ा हुआ है. लेकिन इस आयलैंड के सबसे करीब आबादी वाले क्षेत्र की बात करें तो वह डेल्फ आयलैंड है, जो श्रीलंका में है.
20वीं सदी में कच्चथीवू में बना एक चर्च
कच्चाथीवू द्वीप की बात करें तो यहां पर सिर्फ एक ही इमारत मौजूद है और वह भी 20वीं शताब्दी में बनाई गई. यह इमारत एक चर्च है. हर वर्ष फरवरी और मार्च में यहां पूजा होती है. खास बात यह है कि इस पूजा में भारत और श्रीलंका दोनों के पादरी मौजूद रहते हैं. साथ ही बड़ी संख्या में श्रद्धालू भी आते हैं.
इसके बाद 20वीं सदी में ही यहां पर एक मंदिर का भी निर्माण हुआ. इसमें थंगाची मठ के पुजारियों ने नियमित पूजा करने का बीड़ा उठाया.
क्यों नेहरू ने नहीं दिया इस द्वीप को महत्व
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक तात्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस द्वीप को ज्यादा महत्व नहीं दिया. कुछ दस्तावेजों में इस बात का खुलासा भी हुआ. दरअसल पूर्व पीएम नेहरू ने 10 मई 1961 में इस द्वीप के विवाद पर एक नोट लिखा- उन्होंने कहा- ‘मैं इस द्वीप को बिल्कुल महत्व नहीं देता, साथ ही इस द्वीप पर अपना दावा छोड़ने में भी मुझे कोई झिझक नहीं है. इस तरह के मामलों को अनिश्चितकाल तक लंबित रखना और इसे संसद में बार-बार उठाया जाना भी पसंद नहीं है.’ इस तरह नेहरू के इस नोट ने साफ कर दिया कि उनकी कच्चाथीवू द्वीप में कोई रूचि नहीं थी.
इंदिरा गांधी ने क्यों किया गिफ्ट
कच्चाथीवू द्वीप को लेकर पंडित नेहरू के बाद पूर्व पीएम इंदिरा गांधी ने एक कदम बढ़ाते हुए इस द्वीप को श्रीलंका को ही सौंप दिया. वर्ष 1974 में इंदिरा ने श्रीलंका के साथ चल रहे समुद्री विवाद को हर करने की कोशिश की. दोनों देशों के बीच कई दौर की बातचीत हुई, इस बीच एक खास समझौता हुआ इस समझौते का नाम ‘इंडिया-श्रीलंका मैरिटाइम एग्रीमेंट’ है.
इस समझौते के तहत इंदिरा गांधी ने श्रीलंका के तात्कालीन राष्ट्रपति श्रीमा भंडारनायके को कच्चाथीवू द्वीप सौंप दिया.
इंदिरा गांधी ने इसे गिफ्ट करने के पीछे दिया यह तर्क
इस दौरान दोनों देशों के बीच कुल 4 सामुद्रिक समझौतों पर हस्ताक्षर हुए. इंदिरा गांधी ने कहा- कच्चाथीवू द्वीप को कोई सामरिक महत्व नहीं है. इस आयलैंड को श्रीलंका को देने से दोनों देशों के बीच रिश्ते मजबूत होंगे. दोनों देशों के बीच यह तय हुआ कि इस द्वीप पर जाने के लिए भारतीयों को किसी भी तरह के वीजा की जरूरत नहीं होगी. यही नहीं भारतीय मछुआरे इस द्वीप पर बिना किसी इजाजत के झाल डाल सकेंगे.
हालांकि इस समझौते के बाद भी कई बार श्रीलंका ने यहां भारतीय मछुआरों के जाने पर उन्हें पकड़ लिया. 1976 में दोनों देशों के बीच एक और समझौता हुआ जिसमें दोनों देशों के मछुआरों को इस द्वीप के आसपास जाने से रोका गया.
क्यों कांग्रेस पर हमलावर है बीजेपी
बीजेपी का आरोप है कि कांग्रेस सरकार ने जब कच्चाथीवू द्वीप को श्रीलंका को सौंपने का निर्णय लिया तो तमिलनाडु सरकार से कोई सलाह नहीं ली गई. हालांकि कांग्रेस का दावा है कि इस बारे में करुणानिधि से विचार-विमर्श किया गया था. हालांकि उस दौरान तमिलनाडु में इस द्वीप को सौंपे जाने पर जमकर प्रदर्शन भी हुआ.
एमके स्टालिन ने बीजेपी सरकार को लिखा खत
बीते वर्ष तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने पीएम मोदी को एक खत लिखा और इस द्वीप को दोबारा भारत में शामिल करने के लिए मांग की. यही नहीं इसके बाद से ही तमिलनाडु में लगातार इस मुद्दे को लेकर सियासी खींचतान चलती रहती है. चुनावों में भी यह मुद्दा सामने आता रहता है.