Border Roads: पिछले सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अरुणाचल प्रदेश में नवनिर्मित सेला सुरंग राष्ट्र को समर्पित की। भारतीय सीमा पर बसे गावों तक पहुंचने और सेना की आवाजाही में यह सुरंग टाइम और पैसा दोनों बचाएगी। पूरी तरह से भारतीय सीमा के अंदर बनी इस सुरंग पर चीन ने ना सिर्फ ऐतराज जताया है, बल्कि फिर यह गीदड़भभकी दी है कि भारत के इस कदम से सीमा संबंधी मुद्दे और उलझ जाएंगे।
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने पीएम मोदी की अरुणाचल प्रदेश यात्रा पर एक सवाल का जवाब देते हुए कहा कि अरुणाचल (चीन इसे ज़ंगनान क्षेत्र कहता है) चीन का क्षेत्र है और भारत को इस ज़ंगनान के क्षेत्र को मनमाने ढंग से विकसित करने का कोई अधिकार नहीं है।
चीन ऐसा पहली बार नहीं कर रहा, बल्कि हर बड़े भारतीय अधिकारी या मंत्री के अरुणाचल दौरे पर एतराज जताता है। आखिर चीन को सीमा पर तेजी से बढ़ रहे भारतीय रोड नेटवर्क से डर क्यों लगता है? सेला परियोजना का महत्व पीएम मोदी रणनीतिक रूप से तवांग के लिए हर मौसम में कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए लगातार रोड नेटवर्क बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं। इसी कड़ी में अरुणाचल में 13,000 फीट की ऊंचाई पर सेला सुरंग का निर्माण किया गया है, जिसका उद्घाटन पीएम ने हाल ही में किया है।
इस परियोजना की आधारशिला भी पीएम मोदी ने ही फरवरी 2019 में रखी थी। 825 करोड़ रुपये की लागत से बनी सेला सुरंग असम के तेजपुर को अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम कामेंग जिले से जोड़ेगी। यह इतनी ऊंचाई पर भारत की सबसे लंबी सड़क सुरंग है। सेला सुरंग के चालू हो जाने के बाद किसी भी आकस्मिक जरूरत के समय चीन के साथ लगी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के अग्रिम स्थानों पर सैनिकों और हथियारों की बहुत कम समय में तैनाती की जा सकेगी। सीमा सड़क संगठन द्वारा निर्मित सेला परियोजना में दो सुरंगें और एक लिंक रोड शामिल हैं। एक सुरंग 980 मीटर लंबी सिंगल-ट्यूब है, और दूसरी सुरंग 1,555 मीटर लंबी है, जिसमें आपातकालीन सेवाओं के लिए एक बाय-लेन ट्यूब है। दोनों सुरंगों के बीच लिंक रोड 1,200 मीटर लंबी है। चीन के डर का कारण सेला दर्रा सर्दियों में कुछ महीनों के लिए बंद रहता है। 1962 में, चीनी सैनिकों ने इसी क्षेत्र से भारत में घुसकर तवांग शहर पर कब्ज़ा करने की कोशिश की थी। इस समय चीन भारत से लगी सीमा पर बहुत तेज विकास कर रहा है, लेकिन वह भारत के रोड नेटवर्क को लेकर कुछ ज्यादा ही चिंता दिखाता है। जबकि चीन का इस क्षेत्र में बुनियादी ढांचे का विकास, उद्योग लगाने का काम और सैन्य तैयारी में कहीं कोई रुकावट नहीं है। दरअसल चीन को भारत की सड़क परियोजनाओं पर आपत्ति का मुख्य कारण है सेना को रसद और युद्ध सामग्री पहुंचाने के लिए बनाया जा रहा बुनियादी ढांचा। सैन्य विशेषज्ञों के अनुसार चीनी सड़कें हमारी तोपखाने की तोपों से काफी दूरी पर हैं, जबकि भारत की सड़कें उनके तोपखाने के पास तक जाती हैं। चीन हमेशा इस धारणा में रहता है कि भारत एक प्रतिद्वंद्वी है जिसे कमजोर करने, तोड़ने और अपने अधीन रखने की जरूरत है। लंबे समय तक चीन ने भारत को गुमराह किया कि वह 1962 की तरह भारत पर कोई आक्रमण नहीं करेगा। परिणामस्वरूप भारत ने लंबे समय तक एलएसी पर कोई महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे का निर्माण नहीं किया। पर अब भारत ने देर से ही सही, चीन के साथ अपनी सीमाओं पर पर्याप्त संपर्क और बुनियादी ढांचा नहीं होने की इस ऐतिहासिक गलती को सुधारना शुरू कर दिया है। पिछले 10 वर्षों से भारत बीआरओ के माध्यम से सीमा पर लगातार सड़कें बनाने का काम कर रहा है। इससे चीन चिंतित है कि किसी संभावित लड़ाई में भारत भी अब उन पर हमला करने के लिए समान रूप से तैयार हैं। गलवान में 20 बहादुरों के संघर्ष के बाद हुईं शहादत को चीन ने पहले यह कर प्रचारित करना चाहा कि भारतीय सैनिक उनके सैनिकों के मुकाबले बहुत कमजोर हैं, लेकिन जब दुनिया के सामने यह सच उजागर हुआ कि 20 भारतीय सैनिकों के मुकाबले चीन के 42 सैनिक मारे गए हैं तो चीन की चालाकी धरी रह गई। उन्हें लग गया कि भारतीय सेना के साथ आमने सामने की लड़ाई में वे कभी भी जीत नहीं सकते।
दुनिया जानती है कि आज का भारत चीन से नहीं डरता। इसीलिए चीन भारत के सैन्य विकास और अन्य देशों के साथ उसके मैत्रीपूर्ण संबंधों से बहुत चिंतित है। चीन भारत, अमेरिका और भजापान के संयुक्त सैनिक अभ्यास को लेकर भी चिंतित है। पहले से ही भारत और जापान चीन के प्रतिद्वंद्वी हैं और इन दोनों का चीन के साथ सीमा विवाद भी है। रणनीतिक स्तर पर चूंकि भारत और अमेरिका एक साथ हैं और अमेरिका शायद चीन के खिलाफ (दक्षिण चीन सागर के अलावा) कम लागत वाला दूसरा मोर्चा भारत के साथ मिलकर खोलने के लिए बहुत उत्सुक है, शायद चीन इससे भी चिंतित हो गया है। भारत में ढांचागत विकास में काफी तेजी भारत इस समय बड़े पैमाने पर ढांचागत सुविधाओं के निर्माण में लगा है। अमेरिका के बाद भारत के पास सड़कों का दूसरा सबसे बड़ा नेटवर्क है और 2024 के अंत तक अमेरिका से भी आगे निकलने की उम्मीद है। सड़क घनत्व के मामले में भारत पहले से ही संयुक्त राज्य अमेरिका से तीन गुना आगे है। अमेरिका और चीन दोनों के पास भारत की तुलना में लगभग 2.5 से 3 गुना अधिक जमीन है।
मोदी सरकार कई बड़ी परियोजनाओं पर एक साथ काम कर रही है। जहां सागरमाला परियोजना बंदरगाह के बुनियादी ढांचे पर केंद्रित हैं तो भारतमाला परियोजना रोड नेटवर्क पर। स्मार्ट सिटी परियोजना के जरिए शहरी बुनियादी ढाँचे का विकास किया जा रहा है, ताकि शहर के प्रशासन को टिकाऊ और स्वच्छ बनाया जा सके। अमृत योजना के जरिए शहरों में विश्व स्तरीय बुनियादी ढांचे को विकसित किया जा रहा है। समर्पित माल गाड़ी गलियारा और इसके चारों ओर औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने वाले लॉजिस्टिक्स कॉरीडोर का भी निर्माण किया जा रहा है। अमेरिका में लगभग 6.8 मिलियन किलोमीटर सड़क है, जबकि भारत में इस समय केवल 6.4 मिलियन किलोमीटर सड़क है। पिछले 5 वर्षों में, भारत ने लगभग 6,00, 000 किलोमीटर से अधिक सड़क का निर्माण किया है। पिछले 10 साल में नेशनल हाईवे की लंबाई 60 प्रतिशत बढ़ी है। केन्द्रीय सड़क निर्माण मंत्री नितिन गडकरी का दावा है कि सड़क क्षेत्र के कारण केवल 5 वर्षों में अर्थव्यवस्था को 30 प्रतिशत बढ़ाने में मदद मिली है। चीन में लगभग 5.2 मिलियन किलोमीटर लंबी सड़कें हैं।