उज्जैन : सिंहस्थ में कोई वीआईपी नहीं है। धर्म के महामेले और जन आस्था को सर्वोच्च रख मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस अनूठी पहल की शुरुआत स्वयं से की है। उन्होंने बिना किसी वीआईपी सुविधा के पत्नी साधनासिंह के साथ एक आम श्रद्धालु की तरह सिंहस्थ को जीया।
बिना पूर्व घोषित कार्यक्रम के शुक्रवार को मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान सप्त्नीक शाम 6.30 बजे हेलीकॉप्टर से ग्राम निनौरा पहुंचे। वहां प्रभारी मंत्री भूपेंद्रसिंह व अधिकारियों से चर्चा के बाद उन्होंने फॉलो और बिना लाल बत्ती वाहन के ही सिंहस्थ क्षेत्र में भ्रमण किया। इस दौरान उनके साथ अधिकारी-नेताओं का काफिला नहीं था। सहयोग के लिए सिर्फ सीएम पीएस विवेक अग्रवाल व इक्का-दुक्का अधिकारी ही थे। भीड़ से परे चौहान ने गऊघाट पर ही अमृृतमयी शिप्रा में डुबकी लगाकर शाही स्नान किया।
यहां सब आम है
मुख्यमंत्री चौहान ने पत्रिका से चर्चा में कहा, मैंने प्रशासन को निर्देश दिए हैं, सिंहस्थ में कोई वीआईपी नहीं है। ना बत्ती ना सायरन, यहां के राजा महाकाल हैं, सब उनकी प्रजा है। मैं भी आम श्रद्धालु की तरह ही आया हूं। दिनभर की खबर लेकर यहां आया हूं किसी को कोई व्यवधान नहीं हुआ। शाही स्नान में अपेक्षा से कम भीड़ पर उन्होंने कहा शाही, पर्व व नित्य स्नान मिलाकर 5 करोड़ श्रद्धालुओं के आने का अनुमान है।
सीएम की पहल और मायने वीआईपी ट्रीटमेंट से दूर
मायने : सिंहस्थ में प्रोटॉकाल, फॉलो आदि में सरकारी मशीनरी लगती है। सिंहस्थ में बड़ी संख्या में वीआईपी आएंगे। ऐसे में यहां आने वाले सभी वीआईपी एक महीने इन सुविधा से दूर रहे हैं तो उक्त मशीनरी का सिंहस्थ व्यवस्था में अतिरिक्त उपयोग हो सकेगा।
गऊघाट पर स्नान
मायने : आम हो या खास सिंहस्थ में हर कोई रामघाट पर स्नान करना चाहता है। खासकर वीआईपी। इससे एक ही क्षेत्र में दबाव बढ़ता व व्यवस्था प्रभावित होती है। सीएम ने गऊघाट पर स्नान कर दर्शाया कि पूरी शिप्रा अमृतमयी है और हर घाट का महत्व रामघाट समान है।
काफिले से दूरी
मायने : अधिकारी और नेताओं के काफिले के बिना वह सिंहस्थ में घूमे। उन्होंने संदेश दिया कि बड़े काफिले का अनावश्यक प्रभाव दिखाना व्यर्थ है। इससे दूसरों के कार्य प्रभावित हो सकते हैं।