Asian Fuel Market: लाल सागर के पार स्वेज नहर और उसके बाद यूरोप तक कॉमर्शियल जहाजों का नेविगेशन, ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों के मिसाइल हमलों की चपेट में आ गया है। हूती विद्रोही अपने हमलों के जरिए हमास के प्रति एकजुटता जता रहे हैं।
हूती विद्रोहियों का मकसद अंतर्राष्ट्रीय जल व्यापार को बुरी तरह से प्रभावित करना है। हालांकि अमेरिका और उसके सहयोगी देश हूती विद्रोहियों के खिलाफ हमले भी कर रहे हैं, लेकिन लाल सागर में जहाजों पर होने वाले हमलों में अभी तक कमी नहीं आई है। हूतियों को कहना है, कि वो जहाजों को इजराइल तक नहीं जाने देंगे।
अमेरिका और सऊदी अरब के लिए भी लाल सागर में होने वाले हमलों को रोकना मुश्किल साबित हो रहा है। जबकि दूसरी तरफ, यमन आंतरिक युद्ध में उलझा हुआ है, क्योंकि ईरान समर्थित शिया आतंकी संगठन हूती विद्रोही का राजधानी सना पर कब्जा है, जिसने पूर्ववर्ती सुन्नी शासन को खत्म कर दिया था, जिसके अधिकारी अब सऊदी अरब में रहते हैं। एक समय हूती विद्रोही, सऊदी साम्राज्य के तेल प्रतिष्ठानों पर मिसाइल हमला कर रहे थे, लेकिन सऊदी अरब और ईरान के बीच समझौता होने के बाद से हमले रूक गये हैं। वहीं, हूती विद्रोहियों को अमेरिका के खिलाफ इसलिए भी खड़ा किया गया है, क्योंकि अमेरिका ईरान का विरोधी और इज़राइल का कट्टर समर्थक है, जबकि अमेरिका और सऊदी इस क्षेत्र में सहयोगी हैं।
ईरान- एक तीर से कई निशाने
नई दिल्ली जी-20 शिखर सम्मेलन के अंत में, भारत, सऊदी अरब, इजराइल और अमेरिका ने भारतीय पश्चिमी बंदरगाह कांडला से अरब सागर के रास्ते सऊदी अरब तक एक नई समुद्री-भूमि कनेक्टिविटी खोलने की महत्वाकांक्षी योजना की घोषणा की थी, जो यूरोप तक जाती है। ईरान ने इसे अपना अपमान माना, क्योंकि इस योजना में ईरान को कनेक्टिविटी रूट और नक्शे से बाहर रखा गया था और सऊदी और इज़राइल को सुविधाएं प्रदान की गई थीं। 7 अक्टूबर 2023 से कुछ दिन पहले, जिस दिन हमास ने दक्षिणी इजराइल पर हमला किया था, उससे पहले तक अमेरिका की मध्यस्थता में सऊदी अरब और इजराइल के बीच सुलह के लिए तेजी से बातचीत चल रही थी। लेकिन, ईरान को ये समझौता भी गवारा नहीं था। इसके अलावा, अपने ऊपर लगे अमेरिकी प्रतिबंध से भी ईरान बौखलाया हुआ था, और फिर ईरान के प्रॉक्सी हमास ने इजराइल पर हमला किया और इजराइल के जवाबी कार्रवाई करने के साथ ही ये तमाम समझौते ठप पड़ गये। लाल सागर में हूती विद्रोहियों के हमलों को काउंटर करने के लिए अमेरिका और ब्रिटेन एक साथ काम तो कर रहे हैं, लेकिन इसका असर एशियाई तेज बाजार पर गंभीर से पड़ रहा है। ऑयल ब्रोकरेज लिमिटेड में शिपिंग रिसर्च के वैश्विक प्रमुख अनूप सिंह ने कहा, टैंकर पर हालिया हमले से पता चलता है, कि चीजें बदतर हो रही हैं, बेहतर नहीं। हूती विद्रोहियों ने लाल सागर के अलावा, अदन की खाड़ी में यमन के तट के पास अमेरिकी स्वामित्व वाले जहाज पर भी मिसाइल दागी।
तेज बाजार पर हमलों का गंभीर असर
आशंका यह है, कि हालात सामान्य होने में काफी वक्त लग सकता है। वाणिज्यिक जहाजों को लगातार मिल रही धमकियों से होने वाले संभावित नुकसान को ध्यान में रखते हुए, कई बड़ी शिपिंग कंपनियों ने अपने मालवाहक जहाजों को अफ्रीकी महाद्वीप के दक्षिणी सिरे पर केप ऑफ गुड होप के माध्यम से फिर से रूट करने का आदेश दिया है। अफ्रीका के तट के आसपास जलमार्ग को नया रूट बनाने से दो बड़े असर होते हैं। पहला असर ये, कि माल ढुलाई में लागत काफी बढ़ जाती है और दूसरा असर ये, कि सामान ट्रांसपोर्ट करने में लगने वाला समय काफी बढ़ जाता है। ब्लूमबर्ग की 30 जनवरी की रिपोर्ट में कहा गया है, कि लाल सागर शिपिंग संकट, एशिया के ईंधन बाजारों में लहरें पैदा कर रहा है, जिससे “उन मार्गों पर भी लागत बढ़ रही है, जो जलमार्ग का उपयोग नहीं करते हैं, जबकि विक्रेताओं को उच्च माल ढुलाई की भरपाई के लिए कार्गो प्रीमियम को कम करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।”
इस बीच, मध्य पूर्व को जापान से जोड़ने वाले बड़े टैंकरों की लागत 2020 के बाद से सबसे ज्यादा हो गई है। बाल्टिक एक्सचेंज के आंकड़ों के मुताबिक, दक्षिणी कोरिया से सिंगापुर तक 35,000 टन ईंधन की शिपिंग की लागत कथित तौर पर पिछले सप्ताह की तुलना में लगभग 50 प्रतिशत बढ़कर 49,000 अमेरिकी डॉलर प्रति दिन से ज्यादा हो गई है, जो 2020 के बाद से सबसे ज्यादा है। इसका असर ये हो रहा है, कि रिफाइंड के बाद तेल की ढुलाई के लिए साफ टैंकरों की डिमांड में 3 प्रतिशत का इजाफा हो गया है। माल ढुलाई लागत में इजाफे को देखते हुए, ऐसे संकेत हैं, कि ईंधन उत्पादकों को गैस, तेल और जेट ईंधन के लिए कम खरीददारी के बीच ग्राहकों के लिए आपूर्ति को किफायती बनाए रखने के लिए कार्गो की कीमतों में कटौती करनी होगी। अनुमान यह है, कि लाल सागर में हिंसा भड़कने से एशियाई बाजार में ईंधन की आपूर्ति तो प्रभावित नहीं होगी, लेकिन कमोडिटी की कीमत को बढ़ा सकती है।
पिछले हफ्ते तेल की कीमतों में 2 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोतरी हुई, जो इस साल के उच्चतम इंट्राडे स्तर पर पहुंच गई, जब अमेरिका और ब्रिटिश ने लाल सागर शिपिंग पर हमलों के जवाब में हौथी आतंकवादियों के खिलाफ दर्जनों हवाई हमले शुरू किए। तनाव के कारण शिपिंग माल ढुलाई पर युद्ध प्रीमियम बढ़ गया है, कई लोगों को पिछले साल के अंत से लंबा रास्ता अपनाना पड़ा है। अब, अधिक तेल और गैस टैंकरों को अशांत लाल सागर मार्ग से हटाया जा रहा है।
लाल सागर में हमलों पर एशिया पर असर
अगर लाग सागर में होने वाले हमलों का असर देखें, तो एशिया पर इसका असर, इसकी आपूर्ति पर खतरे के बजाय ज्यादा महंगे कच्चे तेल और कार्गो के लिए लंबी प्रतीक्षा अवधि तक हो सकता है। इनसीड में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर पुषन दत्त का मानना है, “यदि संघर्ष कम उग्र रहता है और लाल सागर तक सीमित रहता है, और अगर संघर्ष होर्मुज जलडमरूमध्य (ईरान के पास) तक नहीं फैलता है, तो एशिया में तेल की आपूर्ति प्रभावित होने की संभावना नहीं है।
होर्मुज जलडमरूमध्य एशिया में तेल आपूर्ति के लिए कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है और लगभग 20 प्रतिशत वैश्विक तेल खपत के लिए एक ट्रांजिशन प्वाइंट है। इसका मतलब यह है, कि जब तक ईरान संघर्ष में प्रत्यक्ष भागीदार नहीं बनता, तब तक एशिया को तेल की आपूर्ति प्रभावित नहीं होनी चाहिए। हालांकि, एशियाई आयातकों को दुनिया भर में उच्च माल ढुलाई और बीमा लागत का झटका महसूस होगा, क्योंकि मध्य पूर्व से यूरोप तक जहाजों और टैंकरों को संघर्ष क्षेत्र से बचने के लिए अपने माल रूट को बदलना पड़ा है और रूट बदलाव का मतलब है, माल ढुलाई में ज्यादा दिन लगना, यानि बीमा की रकम में इजाफा होना। अभी तक के हालातों को देखने से ईरान के मध्य पूर्व संघर्ष में शामिल होने की संभावना कम है। तेहरान अपनी शक्ति प्रदर्शित करने के प्रॉक्सी का ही इस्तेमाल करता रहेगा। वहीं, जहां तक अमेरिका का सवाल है, राष्ट्रपति बाइडेन ने कहा है, कि यूक्रेन में शामिल होने और चीन के साथ प्रतिस्पर्धा के कारण अमेरिका मध्य पूर्व के अन्य क्षेत्रों में लड़ाई को बढ़ाना नहीं चाहता है।
जिसका मतलब ये हुआ, कि पेट्रोल-डीजल की कीमत का असर फिलहाल भारतीय बाजार पर मामूली हो सकता है, लेकिन अगर संघर्ष ईरान तक फैलता है, तो स्थिति बेकाबू हो सकती है।