जैसे ही 24 दिसंबर आता है, वैसे ही इस दिन बॉलीवुड और म्यूजिक लवर्स को सिर्फ एक महान शख्सियत मोहम्मद रफी (Mohammed Rafi) की याद सताने लगती है.
आज यानी रविवार को फिल्म इंडस्ट्री के साथ-साथ लाखों फैंस मोहम्मद रफी की 100वीं बर्थ एनिवर्सरी मना रहे हैं. 24 दिसंबर, 1924 को आजादी से पहले के पंजाब स्थित कोटला सुल्तान सिंह में जन्मे रफी का इंडियन म्यूजिक इंडस्ट्री में योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता. उन्होंने न सिर्फ भारत में बल्कि दुनिया भर के लोगों को अपनी आवाज का दीवाना बना दिया था. एक प्लेबैक सिंगर के रूप में मोहम्मद रफी का सफर 1944 से 1980 तक तीन दशकों तक चला, जिसमें उन्होंने इंडियन क्लासिक, गजल, प्लेबैक सिंगिंग, कव्वाली और ठुमरी की फील्ड में कभी ना मिटने वाले छाप छोड़ी. उनकी आवाज ने बड़ी ही मधुरता से अलग-अलग शैलियों को पार कर लिया, जिससे वह संगीत की दुनिया में एक महान सिंगर बनकर उभरे.
इस फिल्म से की बॉलीवुड में अपनी शुरुआत
मोहम्मद रफी म्यूजिक करियर की शुरुआत 1940 के दशक में बॉलीवुड में प्लेबैक सिंगिंग की दुनिया में कदम रखने के साथ हुई. फिल्म ‘गांव की गोरी’ में अपने पहले गाने के साथ, उन्होंने एक शानदार जर्नी शुरू की, जिसमें उन्होंने अनगिनत मशहूर गीतों को अपनी आवाज दी. रफी की आवाज सिर्फ पर्दे पर एक्टर्स के साथ कोलैब करने भर की नहीं थी, ये कई भावनाओं का एक माध्यम था, जिसमें अक्सर कैरेक्टर्स का सार समाहित होता था. जो चीज मोहम्मद रफी को अलग करती थी, वो न केवल उनकी शानदार सिंगिंग रेंज थी, बल्कि हर सुर में आत्मा और भावना को समाहित करने की उनकी क्षमता भी थी. अपने गीतों के जरिए सैकड़ों फीलिंग्स को जाहिर करने में उनकी महारत, चाहे वो प्यार, खुशी, या दुख हो, पीढ़ी दर पीढ़ी दर्शकों के बीच गहराई से गूंजती रही.
मोहम्मद रफी के नाम हैं कई अवॉर्ड
रफी ने एसडी बर्मन, शंकर-जयकिशन, नौशाद और आर.डी. बर्मन जैसे म्यूजिशियन के साथ कई गाने रिकॉर्ड किए, जिसका परिणाम ये हुआ को उन्होंने कई सदाबहार गाने संगीत प्रेमियों को दिए जो आज भी उनके कानों में गूंजती है. ‘ना तो कारवां की तलाश है’ जैसी कव्वालियों से लेकर ‘जीने वाले से जुवा’ जैसे रोमांटिक सॉन्ग्स तक, रफी का भंडार कालजयी क्लासिक्स का खजाना है. अपने शानदार करियर के दौरान मोहम्मद रफी को कई अवॉर्ड मिले, जिनमें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और छह फिल्मफेयर पुरस्कार शामिल हैं. हालांकि, पुरस्कारों और मान्यता से परे, उनकी विरासत दुनिया भर के संगीत प्रेमियों के दिलों में जीवित है. उनके गानें समय और स्थान की बाधाओं को पार करते हुए मंत्रमुग्ध करते हैं और पुरानी यादों को जगाते हैं.
महात्मा गांधी की हत्या के बाद गाया ये गाना
बहुत कम लोगों को पता है कि मोहम्मद रफी ने 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए एक गाना भी बनाया था. इस ट्रैक का टाइटल था, ‘सुनो सुनो ऐ दुनियावालों, बापूजी की अमर कहानी’ और जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें अपने आवास पर गाने के लिए आमंत्रित किया था. उनसे जुड़ा एक किस्सा ये है कि बचपन में रफी ने अमृतसर की गलियों में एक फकीर के मंत्रों की नकल करके गाना शुरू किया. बाद में उन्होंने उस्ताद अब्दुल वाहिद खान, पंडित जीवन लाल मट्टू और फिरोज निजामी से शास्त्रीय संगीत सीखा. रफी ने कई भाषाओं में गाने गाए, जिनमें असमिया, कोंकणी, भोजपुरी, अंग्रेजी, फारसी, डच, स्पेनिश, तेलुगु, मैथिली, उर्दू, गुजराती, पंजाबी, मराठी, बंगाली और कई अन्य भाषाएं शामिल हैं. उन्होंने लगभग 4516 हिंदी गाने, 112 अन्य भाषा वाले गाने और लगभग 328 व्यक्तिगत गाने गाए हैं.