Cricket World Cup: साबरमती नदी के तट पर सवा लाख लोगों का नीला समंदर…जीत की नाव चलाता भारत और डूबता पाकिस्तान। अहमदाबाद के नरेंद्र मोदी क्रिकेट स्टेडियम पर कहानी सिर्फ इतनी ही रही। ‘रिकॉर्ड बनते हैं टूटने के लिए’ कहकर वनडे विश्व कप में भारत और पाकिस्तान के मुकाबलों का इतिहास बदलने का दम भरने वाले पाकिस्तान क्रिकेट टीम के कप्तान बाबर आजम के दावों की हवा निकालने में भारत के सूरमाओं ने जरा भी वक्त नहीं लगाया।
अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पहले बल्ला थामे उतरी बाबर की सेना 50 ओवर के इस खेल में सात ओवर पहले ही घुटनों पर थी। ये वही टीम थी, जो श्रीलंका के खिलाफ पिछले मुकाबले में 345 रनों के लक्ष्य को सफलतापूर्वक पार कर भारत के खिलाफ मैच में दाखिल हुई थी। जब बारी गेंद से आई तो टीम इंडिया के बल्लेबाजों ने शाहीन एक्सप्रेस समेत पाकिस्तान की रफ्तार को पटरी से कब उतार दिया, पता ही नहीं चला। नतीजा ये रहा कि मैच खत्म होने के करीब 20 ओवर पहले ही ‘मेन इन ब्ल्यू’ के दीवाने जीत का जश्न मना रहे थे और स्टेडियम में वंदे मातरम गूंज रहा था।
हालांकि ये सिर्फ वनडे विश्व कप मुकाबलों में पाकिस्तान के खिलाफ बादशाहत का बरकरार रहना या स्कोर के 8-0 होना भर नहीं है। रोहित शर्मा एंड कपंनी की इस जीत में कई संदेश भी छिपे हैं। जीत के बाद खुद कप्तान रोहित भी कहते दिखे कि उनकी टीम न तो बहुत ज्यादा उत्साहित होना चाहती और न ही खुद को बहुत कम आंकना चाहती है। कप्तान रोहित की मानें तो टीम को न तो अतीत की चिंता है और न भविष्य की फिक्र… और रही बात खिलाड़ियों की तो, वो तो बस कप्तान की ताल से ताल मिलाकर वर्तमान में जीना चाहते हैं। टीम की ये सोच एक चैंपियन की सोच मानी जा सकती है।
50 ओवरों के महाकुंभ में दुनिया भर की टीमों से जोर आजमाइश कर रहे रोहित शर्मा के राउडीज में मैदान पर कभी 1983 के कपिल देव के डेयरडेविल्स की झलक दिखाई देती है तो कभी 2011 के माही के मतवालों की। ये बात इसलिए कही जा सकती है क्योंकि हर खिलाड़ी में खुद को साबित करने का जज्बा और जीत के लिए जुनून साफ तौर पर नजर आ रहा है। उन्हें क्रिकेट को जुनून की हद तक पसंद करने वाले 140 करोड़ भारतीयों की उम्मीदें बोझ नहीं लगतीं और न ही वो इस बात से परेशान होना चाहते हैं कि टीम ने पिछले 10 साल से कोई भी आईसीसी ट्रॉफी नहीं जीती है और न ही वो 12 साल से वनडे विश्व कप जीत पाई है। टीम इंडिया के बल्लेबाज और गेंदबाज एक दूसरे के बैकअप की तरह मैदान पर प्रदर्शन करते दिख रहे हैं, और एक-दूसरे का भार कम कर रहे है। उनके लिए ये बात मायने नहीं रखती कि टीम का कॉम्बिनेशन क्या है। एक टीम के लिहाज से ये बात बहुत अहम है और टीम के लिए सकारात्मक संकेत भी है।
टीम की बदली सोच क्या कमाल कर सकती है, कैसे इतिहास बदल सकती है, इसे याद करने के लिए आपको 40 साल पीछे ले चलते हैं। 1983 विश्व कप में कपिल देव की जिस टीम ने इंग्लैंड में लॉर्ड्स के मैदान पर इतिहास रचा, उस टीम को अंडरडॉग माना जा रहा था। लेकिन हर खिलाड़ी मैदान पर खुद को साबित करता चला गया और इतिहास बनता गया। उस विश्व कप में कप्तान कपिल ने हर खिलाड़ी के अंदर जोश भरा, उस भर भरोसा किया और खुद लीड फ्रॉम द फ्रंट की मिसाल भी पेश की। मुश्किल हालात में हर खिलाड़ी ने जब अपने कप्तान की तरफ मुड़कर देखा तो उन्होंने उसे मायूस नहीं किया और फिर दो बार की विश्व चैंपियन वेस्टइंडीज की टीम को मात देकर इतिहास बन ही गया। इस बार के विश्व कप के पहले तीन मैचों में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिला। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टूर्नांमेंट के पहले मैच में कप्तान रोहित शर्मा समेत तीन टॉप बल्लेबाज बगैर खाता खोले ही पवेलियन लौट गए थे। तब विराट कोहली और के. एल. राहुल ने मोर्चा संभालते हुए इस अंदाज में टीम को जीत दिलाई थी, मानों कह रहे हों कि- चिंता न कीजिए, हम हैं ना। वहीं दूसरे मैच में कप्तान रोहित शर्मा ने शतकीय पारी खेलकर अफगानिस्तान को घुटनों पर ला दिया।
दिलचस्प बात ये रही कि रोहित ने 63 गेंदों पर वनडे विश्व कप का सबसे तेज भारतीय शतक जड़कर 40 साल पहले के जिस रिकॉर्ड को पीछे छोड़ा, वो कपिल देव का ही था, जो उन्होंने 1983 विश्व कप में जिंबाब्वे के खिलाफ 175 रनों की अपनी रिकॉर्डतोड़ पारी के दौरान बनाया था। पाकिस्तान के खिलाफ मुकाबले में भी रोहित 85 रन की पारी खेलकर टीम की जीत लगभग तय करके ही पवेलियन लौटे। अगर ये सिलसिला आगे के मुकाबलों में भी जारी रहा तो फिर टीम की खिताबी जीत पक्की ही समझिए क्योंकि रोहित शर्मा को बड़े मैचों का खिलाड़ी माना जाता है। टीम इंडिया के करोड़ो प्रशंसकों को याद तो 2011 भी आ रहा है। 2011 में वनडे फॉर्मेट में टीम इंडिया का विश्व विजेता बनना भला कौन भूल सकता है। 28 साल का सूखा खत्म करते हुए महेंद्र सिंह धोनी की अगुवाई में टीम ने खिताब जीता था। धोनी के बारे में कहा जाता था कि मैदान पर जहां बाकी कप्तानों की सोच खत्म होती है, धोनी की सोच वहां से शुरू होती है। 2011 वर्ल्ड कप टीम का हिस्सा रहे आर. अश्विन के शब्दों में अगर धोनी की कप्तानी को बयां करें तो धोनी को एक कप्तान नहीं बल्कि एक फिल्म डायरेक्टर कह सकते हैं क्योंकि धोनी पहले अपने किरदार तय करते थे और फिर अपने दिमाग में बिठा लेते थे कि किस किरदार का रोल क्या है और उसे हूबहू मैदान पर उतारते थे। यही उनकी कामयाबी का राज है और नतीजा सुनहरी कामयाबी के तौर पर दुनिया के सामने हैं।
अब लगता है कि रोहित शर्मा भी अपने पूर्व कप्तान के नक्शे कदम पर चल पड़े हैं। पाकिस्तान के खिलाफ मुकाबले के बाद रोहित खुद भी कहते दिखे कि कप्तान के तौर पर उनका काम महत्वपूर्ण होना चाहिए। उन्हें ये पता लगाना होगा कि किस मैच में कौन सा खिलाड़ी क्या रोल निभा रहा है और उसी हिसाब से उन्हें उसके साथ जाना होगा। रोहित के मुताबिक हर खिलाड़ी को उसके रोल के बारे में साफ तौर पर पता होना चाहिए। एक कप्तान की यही सोच उसे बेहतर कप्तान और टीम को चैंपियन बनाती है। विश्व कप के शुरूआती तीन मुकाबलों में टीम इंडिया के टॉप ऑर्डर बल्लेबाज फॉर्म में नज़र आए। कप्तान रोहित शर्मा हों, विराट कोहली हों या फिर के. एल. राहुल या श्रेयस अय्यर, सभी के बल्ले से रन बरसे। गेंदबाज़ों ने भी कमाल किया है, चाहे वो चोट से उबरकर वापस आए जसप्रीत बुमराह हों, मोहम्मद सिराज हों या फिर स्पिनर कुलदीप यादव और रवीन्द्र जडेजा। टीम इंडिया न तो अतीत के बारे में सोच रही है और न ही उसे भविष्य की चिंता नजर आ रही है। यानी मेन इन ब्ल्यू वर्तमान में जीना चाहते हैं और अगर वर्तमान बेहतर है तो भविष्य का उज्जवल होना तय है। पाकिस्तान के खिलाफ टीम इंडिया को मिली शानदार जीत इसकी मिसाल है।
हालांकि विश्व कप काफी लंबा टूर्नामेंट हैं। टूर्नामेंट में कुल नौ लीग मैच हैं और फिर सेमीफाइनल और फाइनल मुकाबले हैं। कप्तान रोहित शर्मा भी मानते हैं कि इतने लंबे टूर्नामेंट में टीम को बस संतुलन बनाए रखना है और आगे बढ़ना है। टीम इंडिया अगर संतुलन बनाए रखने में कामयाब रही तो 19 नवंबर को अहमदाबाद के इसी नरेंद्र मोदी स्टेडियम पर कप्तान रोहित शर्मा विश्व कप ट्रॉफी हाथ में थामे नजर आएंगे।