India on Israel: पिछले साल जब इजराइल और फिलीस्तीन को लेकर यूनाइटेड नेशंस में वोटिंग चल रही थी, उस वक्त भारत ने वोटिंग से दूर रहने का फैसला किया था, जो इस बात का संकेत था, कि भले ही भारत इजराइल के काफी करीब है, लेकिन अभी तक फिलीस्तीन को लेकर उसकी पॉलिसी बदली नहीं है।
लेकिन, शनिवार को हमास के बर्बर हमले ने इजराइल को दहला कर रख दिया और सोशल मीडिया पर वायरल होती तस्वीरों ने बता दिया, कि हमास के आतंकियों में इंसानियत नाम मात्र का भी नहीं है। इजराइली महिलाओं के साथ बर्बरता की गई और इस आतंकी हमले को लेकर भारत का रूख स्पष्ट था, इजराइल का समर्थन।
इजराइल और हमास के बीच चल रहे संघर्ष में 500 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं और असल आंकड़ा कहां तक जाएगा, फिलहाल अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है, लेकिन इस हमले को आतंकी हमला कहकर भारत ने इजराइल-फिलीस्तीन के बीच अपनी स्थिति तय कर दी है।
भारत की बदली फिलीस्तीन नीति?
हालांकि, नई दिल्ली ने अभी तक विदेश मंत्रालय के माध्यम से आधिकारिक तौर पर कोई बयान नहीं दिया है, लेकिन प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स (पूर्व में ट्वीटर) पर अपनी संक्षिप्त पोस्ट में दो बातें कहीं। उन्होंने हमास के हमले को “आतंकवादी हमला” कहा और “इजरायल के साथ एकजुटता” व्यक्त की।
प्रधान मंत्री मोदी का ये ट्वीट इजराइल के बेगुनाहों के लिए है, जिसमें उन्होंने इस कठिन समय में उनके साथ सहानुभूति और एकजुटता दिखाई है। लेकिन, पीएम मोदी के इस ट्वीट का लहजा सावधानीपूर्वक बनाए गए संतुलन से अलग, एक स्पष्ट बदलाव का प्रतीक है, जिसने इज़राइल और फिलिस्तीनी आतंकवादियों के बीच पहले के गतिरोधों पर नई दिल्ली की प्रतिक्रिया को मौजूदा प्रतिक्रिया से अलग किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल मीडिया पर लिखा, कि “इजरायल में आतंकवादी हमलों की खबर से गहरा सदमा लगा। हमारी संवेदनाएं और प्रार्थनाएं निर्दोष पीड़ितों और उनके परिवारों के साथ हैं। हम इस कठिन समय में इज़राइल के साथ एकजुटता से खड़े हैं।” हमास ने बर्बर हमला उस वक्त किया है, जब भारत-इज़राइल संबंध एक मजबूत रणनीतिक साझेदारी के ढांचे में विकसित हुए हैं। दरअसल, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और इज़राइल के प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के बीच व्यक्तिगत केमिस्ट्री, उनके द्विपक्षीय संबंधों में दिखाई देती रही है। इज़राइल, दुनिया में भारत के लिए सबसे विश्वसनीय और प्रमुख रक्षा और सुरक्षा भागीदारों में से एक रहा है। लेकिन, भारत पश्चिम एशिया में एक जटिल जियो-पॉलिटिकल स्थिति से भी गुजर रहा है। पश्चिम एशिया की चार प्रमुख शक्तियां सऊदी अरब, ईरान, इजराइल और संयुक्त अरब अमीरात हैं और दिलचस्प ये है, कि इन चारों से भारत के काफी बेहतरीन संबंध हैं और हर देश, भारत के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है। लिहाजा, युद्ध जैसे हालात भारत के लिए कठिन फैसला करने के हालात उत्पन्न करते हैं।
पश्चिम एशिया में भारत की स्थिति अब, इज़राइल, यूएई और बहरीन के बीच अमेरिका की मध्यस्थता वाले अब्राहम समझौते का टेस्ट किया जाएगा और I2U2 संगठन, जिसमें भारत के अलावा इज़राइल, अमेरिका और यूएई हैं, उसका भी टेस्ट हो सकता है। वहीं, हाल ही में घोषित भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा अपनी पहली चुनौती का सामना करेगा, क्योंकि हमास ने जो हमला शुरू किया है, उसका मिडिल ईस्ट में व्यापक असर पड़ेगा और चूंकी भारत ने अपनी नीति बदलने के संकेत दिए हैं, लिहाजा भारत को लेकर भी विचार बदल सकते हैं। इसके अलावा, भारत का कोई भी कदम, मिडिल ईस्ट में रहने वाले करीब 90 लाख भारतीयों को तत्काल प्रभावित कर सकता है, जहां से भारत को एक मजबूत आर्थिक समर्थन भी मिलता है। इज़राइल में भारतीय दूतावास ने शनिवार को देश में सभी भारतीय नागरिकों को “सतर्क रहने” और “सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन करने” के लिए कहा है। लेकिन, भारत के लिए राहत की बात ये है, कि फिलीस्तीन को लेकर सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात की नीति भी बदली है। शनिवार को इजराइल पर हमास के हमले के बाद सऊदी अरब ने ‘हल्का’ बयान जारी किया है, जो बताता है, कि सऊदी अरब और यूएई जैसे देश, अब फिलीस्तीन से पीछा छुड़ाना चाहते हैं।
लिहाजा, मोदी सरकार का इजराइल के पक्ष में हमले के करीब 6-7 घंटे के बाद खुलकर खड़ा होना साफ तौर पर दर्शाता है, कि भारत ने नफा-नुकसान को कैलकुलेट कर लिया होगा और उसके बाद ही हमास के हमले को आतंकवादी हमला कहते हुए, इजराइल के पक्ष में खुलकर खड़ा होने का फैसला किया होगा।