बंगाल में कांग्रेस-तृणमूल कांग्रेस में खुली जंग हो रही है। दोनों पार्टियों के नेता एक दूसरे के खिलाफ गंभीर आरोप लगा रहे हैं। पंजाब में कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी के साथ चुनाव गठबंधन से इंकार किया तो आम आदमी पार्टी की सरकार ने कांग्रेस के एक विधायक को नशीले पदार्थों की तस्करी के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस में मध्यप्रदेश और राजस्थान को लेकर भी सिर फुटौवल चल रही है।
शरद पवार इस सब से चिंतित हैं। उन्होंने कहा है कि अगर मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में आम आदमी पार्टी – कांग्रेस का समझौता नहीं हुआ, तो इंडी एलायंस की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े होंगे। हालांकि वह बंगाल को लेकर इतने चिंतित नहीं हैं, जहां प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी आए दिन ममता बनर्जी और उनके भतीजे के खिलाफ बयान दे रहे हैं। शरद पवार का कहना है कि जब चुनाव सामने आएगा, तब इन समस्याओं पर काबू पा लिया जाएगा।
सच्चाई यह है कि बंगाल में इंडी एलायंस के तीनों दलों में खुली जंग चल रही है। अभी अधीर रंजन ने आरोप लगा दिया कि ममता बनर्जी स्पेन में तीन लाख रुपए दैनिक किराए वाले होटल में ठहरी हुई हैं। ममता बनर्जी हालांकि अधीर रंजन के बयानों की ज्यादा परवाह नहीं करतीं, लेकिन वह जानती हैं कि ऊपरी आदेश के बिना वह ऐसी बयानबाजी नहीं कर रहे होंगे। इसलिए ममता बनर्जी ने भी बंगाल में कांग्रेस को उसकी हैसियत दिखाने की ठान ली है।
ममता बनर्जी ने कांग्रेस को बता दिया है कि वह उसके लिए बंगाल में लोकसभा की चार सीटें छोड़ सकती है। अब उसमें से वह एक या दो वामपंथियों को देना चाहे तो दे दे, वह उन सीटों पर वामपंथियों के सामने उम्मीदवार खडा नहीं करेंगी। लेकिन वह वामपंथियों के साथ गठबंधन के लिए सीधे कोई बात नहीं करेंगी।
पिछले लोकसभा चुनाव में वामपंथियों को भले ही एक भी सीट नहीं मिली, और भले ही कांग्रेस को दो सीटें मिल गईं थी, लेकिन वोट वामपंथियों को ज्यादा मिले थे। वामपंथियों को 35 लाख 94 हजार वोट मिले, जबकि कांग्रेस को 32 लाख 10 हजार वोट मिले थे। हालांकि वामपंथी भी ममता बनर्जी से गठबंधन की बात नहीं करना चाहते थे, लेकिन ममता बनर्जी ने कांग्रेस के खाते से एक-दो सीटों की जो पेशकश की है, उसे ठुकरा दिया है। वामपंथियों ने कांग्रेस को बता दिया है कि वे केरल और बंगाल में अकेले चुनाव मैदान में उतरेंगे। केरल में कांग्रेस और वामपंथियों में आमने सामने की टक्कर है, इसलिए गठबंधन का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता। हां, रणनीतिक एलायंस हो सकता है कि जहां कांग्रेस के जीतने की संभावना ज्यादा हो, वहां वामपंथी प्रतीकात्मक उम्मीदवार खड़ा करे और जहां वामपंथियों के जीतने की संभावना हो, तो वहां कांग्रेस प्रतीकात्मक उम्मीदवार खड़ा करे। इस तरह की रणनीति अपने समर्थकों और आम जनता को मूर्ख बनाने के लिए अपनाई जाती है। इसके उलट बंगाल में कांग्रेस और वामपंथी एक दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार खड़ा नहीं करेंगे, लेकिन कई जगहों पर उनके उम्मीदवारों की तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवारों से टक्कर जरुर होगी। केरल में तो भाजपा के पास एक भी सीट नहीं है, लेकिन बंगाल में 18 लोकसभा सीटों के साथ भाजपा दूसरे नंबर की पार्टी है, जहां उसके सामने विपक्ष के साझा उम्मीदवारों की संभावना बिलकुल नहीं दिखती। इंडी गठबंधन का मकसद भाजपा के सामने एक उम्मीदवार खड़ा करना था। यानि बंगाल की 42 सीटों को इसमें से बाहर किया जा रहा है। सबसे दिलचस्प खेल पंजाब में शुरू हुआ है। जहां प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और विधायक दल के नेता ने कांग्रेस आलाकमान के आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन के निर्देश को ही मानने से इंकार कर दिया है। आम आदमी पार्टी और केजरीवाल केंद्र सरकार पर अपने विरोधियों के खिलाफ सीबीआई और ईडी का इस्तेमाल करने का आरोप लगाते नहीं थकते, उन्हीं केजरीवाल ने कांग्रेस को बातचीत की टेबल पर लाने के लिए कांग्रेस के विधायक सुखपाल सिंह खेड़ा को गिरफ्तार कर लिया।
कांग्रेस विधायक को गिरफ्तार करने का तरीका भी पूरी तरह अवैध था। उन्हें पंजाब पुलिस ने चंडीगढ़ से गिरफ्तार किया, जबकि चंडीगढ़ पुलिस साथ नहीं थी। इससे पहले पंजाब में सरकार बनते ही जब अरविन्द केजरीवाल ने पंजाब पुलिस को दिल्ली के भाजपा नेता तेजेंद्र पाल सिंह बग्गा को गिरफ्तार करने भेज दिया था और पंजाब पुलिस उसे गिरफ्तार करके ले भी गई थी, तब पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने पंजाब पुलिस को फटकार लगाई थी। इसके बावजूद पंजाब पुलिस ने वही रवैया अपनाया। वह चंडीगढ़ पुलिस को सूचित किए बिना कांग्रेस के विधायक सुखपाल सिंह खेड़ा को गिरफ्तार कर पंजाब ले गई। जहां जलालाबाद की एक कोर्ट ने उन्हें 30 सितबंर तक पुलिस रिमांड दे दिया। कांग्रेस के विधायक को 8 साल पुराने नशीली दवाओं की तस्करी के मामले में गिरफ्तार किया गया है। इस मामले में निचली अदालत ने उन्हें 9 अन्यों के साथ दोषी करार दिया था, लेकिन हाईकोर्ट ने फैसले पर रोक लगा दी थी। केजरीवाल ने कांग्रेस विधायक की गिरफ्तारी पर कहा कि भगवंत सिंह मान पंजाब में नशीले पदार्थों की तस्करी को खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। जबकि कांग्रेस विधायक खेड़ा का दावा है कि इस मामले में उन्हें सुप्रीमकोर्ट से राहत मिल चुकी थी, नया केस बना कर उन्हें फंसाया गया है।
खेड़ा और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वारिंग ने यह भी कहा है कि केजरीवाल ने पंजाब कांग्रेस पर दबाव बनाने के लिए उन्हें गिरफ्तार करवाया है। लेकिन यह बात अब स्थानीय स्तर की नहीं रह गई है। प्रदेश कांग्रेस के एक प्रतिनिधिमंडल ने राज्यापाल से मिल कर पंजाब सरकार पर पुलिस का राजनीतिक दुरूपयोग करने का आरोप लगाया है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी कह दिया है कि कांग्रेस केजरीवाल की इन हरकतों को बर्दाश्त नहीं करेगी। यानि बंगाल में ममता के बाद कांग्रेस का दिल्ली और पंजाब में केजरीवाल के साथ भी तालमेल बिगड़ रहा है। अब हम बिहार पर आते हैं, जहां की 40 सीटों पर सबसे ज्यादा घमासान मचा हुआ है। लालू यादव और नीतीश कुमार की दो बैठकें हो चुकी हैं। नीतीश कुमार उन 16 सीटों में से कोई सीट छोड़ने को तैयार नहीं, जो जेडीयू ने 2019 में भाजपा के साथ गठबंधन के चलते जीती थीं। 2019 में भाजपा और जेडीयू गठबंधन ने 17-17 सीटें लड़ीं थीं।
28 सितंबर को हुई दूसरी मीटिंग में लालू यादव और नीतीश कुमार में 16-16 सीटें लड़ने और बाकी की 8 सीटें सहयोगियों के लिए छोड़ने की सहमति तो बनी, लेकिन लालू यादव जेडीयू को उसकी 2019 में जीती हुई सभी सीटें देने को तैयार नहीं हैं। वे जेडीयू से उसकी जीती हुई सीतामढी, मधेपुरा, गोपालगंज, सीवान और भागलपुर सीटें राजद के लिए छोड़ने और उसके बदले दूसरी सीटें लेने का दबाव बना रहे हैं। एक तरफ राजद और जेडीयू में सीटों के बंटवारे पर अडंगा फंसा हुआ है, तो दूसरी तरफ इन दोनों की ओर से छोडी गई सिर्फ 8 सीटों पर कांग्रेस और वामपंथी सहमत नहीं हैं। कांग्रेस और वामपंथी दस दस सीटों की मांग कर रहे हैं। कांग्रेस और वामपंथियों का फार्मूला यह है कि सभी दस दस सीटों पर चुनाव लड़ें, जिस पर लालू और नीतीश कुमार सहमत नहीं हैं। 2019 में राजद को भले ही एक भी सीट नहीं मिली थी, लेकिन उसे 4.74 प्रतिशत गिरावट के बावजूद 15.36 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस को भले ही एक सीट मिल गई थी, लेकिन उसे पूरे राज्य में सिर्फ 7.77 प्रतिशत वोट मिले थे, जो राजद से आधे थे, इसलिए उसे दस सीटें कैसे मिल सकती हैं। वामपंथी भी अपने गठबंधन के लिए दस सीटों की मांग कर रहे हैं, जबकि सीपीआई एमएल लिबरेशन अकेले ही पांच सीटों पर दावा ठोक रही है।
अब तक की बातचीत के आधार पर कहा जा सकता है कि वामपंथी केरल और बंगाल की तरह शायद बिहार में भी अकेले चुनाव लड़ने का फैसला करेंगे। पिछले लोकसभा चुनाव में बिहार में तीन गठबंधन थे। राजद, कांग्रेस, आरएलएसपी, हम और वीआईपी मिलकर चुनाव लडे थे। राजद ने गठबंधन में कांग्रेस को 9 सीटें दी थीं। जबकि सीपीआईएमएल लिबरेशन, एसयूसीआई, सीपीआई, सीपीएम और फारवर्ड ब्लाक अलग वामपंथी गठबंधन में 19 सीटों पर चुनाव लड़े थे। अब महाराष्ट्र की बात करते हैं। महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की शिवसेना का राजनीतिक रूतबा भले ही घटा हो, लेकिन वह कांग्रेस, एनसीपी गठबंधन में अपना पलड़ा भारी चाहती है। पिछली बार भाजपा के साथ गठबंधन में शिवसेना ने 23 सीटें लड़ कर 18 सीटें जीतीं थीं। वह चाहती है कि पिछली बार लड़ी गई 23 की संख्या उसके पास रहनी चाहिए, कुछ सीटें भले ही बदल जाएं।
इसका मतलब हुआ कि कांग्रेस और एनसीपी के पास सिर्फ 25 सीटें बचेंगी। जबकि पिछले चुनाव में कांग्रेस ने एनसीपी के साथ गठबंधन में 26 सीटें लड़ी थी, और एनसीपी ने 22 सीटें लड़ी थीं। कांग्रेस ने अपनी एक सीट बहुजन विकास आघाडी को दी थी। एनसीपी के चार और कांग्रेस का एक सांसद ही जीत पाया था। महाराष्ट्र की बाकी बची 2 सीटों में से एक निर्दलीय और एक एआईएमआईएम जीती थी थी। महाराष्ट्र में कांग्रेस अपना पलड़ा सबसे भारी रखने पर अड़ी हुई है, क्योंकि जहां एनसीपी और शिवसेना टूटी हैं, शरद पवार और उद्धव ठाकरे 2019 के मुकाबले कमजोर हुए हैं, वहीं कांग्रेस एकजुट और ज्यादा मजबूत है। कांग्रेस ने शरद पवार और एनसीपी दोनों को 12-12 सीटों की पेशकश की है। उद्धव ठाकरे को यह मंजूर नहीं है। इसलिए बात अटकी हुई है।