PM Narendra Modi And Parliament session : संसद का विशेष सत्र। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 18 सितंबर का लोकसभा में ऐतिहासिक भाषण और फिर आतंकी हमला। एक स्वर्णिम युग की याद। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब 75 सालों का संसदीय इतिहास समेट रहे थे तो उन्हें बरबस ही संसद पर हुए हमले की भी याद आ गई। वह हमला जिसने पूरे राजनीति की चूलें हिला दी थी। यह पहली बार था कि आतंकी जम्मू और कश्मीर की घाटी से निकल संसद तक पहुंचे थे। आतंकियों की कार से 30 किलो आरडीएक्स बरामद हुआ था। इसके बाद जो हुआ वह इतिहास है। आइए आज हम आपको बताते हैं…
13 दिसंबर 2001। शीतकालीन सत्र। सुबह की धूप अभी ठीक से गर्माहट भी नहीं दे रही थी। संसद के गलियारों में कहीं चाय की चुस्कियों का दौर चल रहा था तो कहीं रिपोर्ट और रिफ्रेंश दिए जा रहे थे। खुशनुमा सुबह में अचानक ही संसद का गलियारा गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा। एक पल तो किसी को भरोसा ही नहीं हुआ कि यह हो क्या रहा है। कहां पटाखे फूट रहे हैं लेकिन जब पता चला तो पैरों तले जमीन खिसक गई। सुरक्षाबलों को छोड़ सभी अपनी जान बचाने में लग गए। नेताओं को सदन में ही बंद कर दिया गया और सभी गेटों पर सुरक्षाकर्मियों ने मोर्चा संभाल लिया।
ऐसे किया हमला
संसद में आतंकी एक सफेद एंबेसडर कार से अंदर आए। इस कार पर लालबत्ती और गृह मंत्रालय का स्टीकर लगा हुआ था। यह आतंकी सेना की वर्दी पहने हुए थे और हर आतंकी के हाथ में एके 47 थी। ऐसे में आरंभ में किसी को कोई संदेह नहीं हुआ। फिर जब कार गेट नंबर 12 की तरफ बढ़ने लगी। इसी दौरान एक सुरक्षाकर्मी को शक हुआ और उसने कार को वापस लेने के लिए कहा कि इसमें आतंकियों की कार उपराष्ट्रपति कृष्णकांत के वाहन से टकरा गई। इसके आतंकी यहीं उतरकर एके 47 से फायरिंग शुरू कर देते हैं।
हमले में कई जवान हुए शहीद
आतंकियों की फायरिंग के साथ ही भारतीय संसद परिसर का अलर्ट अलार्म बजना शुरू हो जाता है। मुख्य इमारत के सभी गेट तुरंत बंद कर दिए जाते है और सुरक्षाकर्मी अब मोर्चा संभाल लेते हैं। आतंकियों को चारों तरफ से घेर लिया जाता है। बड़ी तैयारी के साथ संसद में हमला करने आए आतंकियों के साथ करीब आधे घंटे तक गोलीबारी होती है। इसमें दिल्ली पुलिस के पांच जवान, सीआरपीएफ की महिला कांस्टेबल, संसद के दो सुरक्षा सहायक, एक माली और एक फोटो पत्रकार की मौत हो जाती है।
आडवाणी समेत 200 सांसद थे मौजूद
संसद भवन पर यह हमला लश्कर ए तैयबा और जैश ए मोहम्मद के पांच आतंकियों ने मिलकर किया था। आतंकियों ने जिस समय हमला किया उस समय संसद में तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाडी से लेकर देश के दिग्गज राजनीतिक नेता मौजूद थे। करीब 200 सांसद संसद परिसर में ही थी। ऐसे में जैसे ही संसद भवन का अलर्ट अलार्म बजा सुरक्षाकर्मियों ने सबसे पहले सभी को सुरक्षा घेरे में ले लिया और उन्हें संसद भवन के कमरों में भेजकर सुरक्षित किया।
अफजल गुरु को फांसी
दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने संसद पर हुए हमले की प्राथमिकी जांच शुरू की तो जेकेएलएफ आतंकी मोहम्मद अफजल गुरु, शौकत हुसैन गुरु, शौकत की पत्नी अफसान गुरु और डीयू में अरबी प्रोफेसर एसएआर गिलानी मुख्स सजिशकर्ता के रूप में सामने आए। इस मामले में कोर्ट ने अफसान को रिहा करते हुए गिलानी, शौकत और अफजल का सजा सुनाई। उच्च न्यायालय में सबूतों के अभाव में गिलानी बरी हो गया। 2005 में उच्चतम न्यायालय ने शौकत को 10 साल की सजा सुनाई और अफजल गुरु को फांसी की सजा मुकर्रर की। 2013 में मनमोहन सरकार में अफजल गुरु को फांसी की सजा दी। गिलानी कौ मौत हार्ट अटैक से हो गई।
गृहमंत्री आडवाणी ने बताया था पाकिस्तान की साजिश
तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने लोकसभा में कहा था कि भारत की संसद पर आतंकी हमला करने की साजिश पाकिस्तानी आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद ने मिलकर रची। इन दोनों आतंकी संगठनों को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई की मदद मिलती है। संसद हमला करने वाले सभी आतंकी भी पाकिस्तान से ही थे।