भारत का सबसे स्वच्छ और साफ-सुथरा दिखने वाला शहर इंदौर अब आबोहवा के मामले में भी नंबर वन पर है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के स्वच्छ वायु सर्वेक्षण 2023 में 10 लाख से ऊपर आबादी वाले शहरों में इंदौर 187 अंकों के साथ पहले नंबर पर आया है।
दरअसल, मध्य प्रदेश के इंदौर को लगातार छह बार देश का सबसे साफ-सुथरा शहर होने का सम्मान मिल चुका है। आखिर क्यों इंदौर भारत का सबसे सुंदर शहर है? चलिए, पांच कारणों से समझने की कोशिश करते हैं।
कचरे का कुशल प्रबंधन
साल 2015 से पहले इंदौर के लोग भी देश के बाकी हिस्सों की तरह रंग के आधार पर डस्टबिन में कचरा अलग करके डालने की बात को नहीं मानते थे। तब इस समस्या से निपटने के लिए इंदौर नगर निगम ने एक डस्टबिन रहित शहर के मॉडल को अपनाया। इसके बाद कचरे को डोर-टू-डोर (घर-घर जाकर) उठाना शुरू किया। जब एक बार लोगों को ये आदत लग गयी तो नगर निगम ने लोगों को गीला और सूखा कचरा अलग-अलग करके देने के लिए कहा।
इसके बाद कचरा इकट्ठा करने वाली गाड़ियों में जैविक और अजैविक कचरे को डालने के विभाजन किये गये। इस तरह से इंदौर कचरा मुक्त शहर बन गया। इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक यहां प्रतिदिन 1,200 टन सूखा कचरा और 700 टन गीला कचरा उत्पन्न होता है। करीब 850 वाहन घरों से कचरा इकट्ठा करते हैं। इन कचरों को छह श्रेणियों में अलग किया जाता है। गाड़ियों में विभिन्न प्रकार के कचरे के लिए अलग-अलग डिब्बे होते हैं। उदाहरण के लिए, सैनिटरी नैपकिन को भी एक अलग डिब्बे में रखा जाता है। ताकि उन कचरों को चुनना न पड़े और रिसाइकिल के लिए समय न बर्बाद हो।
कचरे से बना रहे सीएनजी गैस
शहर में इंदौर नगर निगम (आईएमसी) का एक बायो-सीएनजी संयंत्र है। जो शहर से एकत्र किये गये गीले कचरे पर चलता है। फरवरी 2022 में देवगुराड़िया ट्रेंचिंग ग्राउंड में 150 करोड़ रुपये के 550 मीट्रिक टन प्रतिदिन क्षमता के इस प्लांट का उद्घाटन किया गया था। यह 17,000 से 18,000 किलोग्राम बायो-सीएनजी और 10 टन जैविक खाद उत्पन्न कर सकता है।
इस बायो-सीएनजी पर शहर में 150 सिटी बसें चलाई जा रही हैं। जो वाणिज्यिक सीएनजी से 5 रुपये सस्ती है। आईएमसी ने साल 2021 में कचरा निपटान से 14.45 करोड़ रुपये कमाये थे। वहीं अंतरराष्ट्रीय बाजार में कार्बन क्रेडिट की बिक्री से 8.5 करोड़ रुपये और बायो-सीएनजी संयंत्र को कचरा उपलब्ध कराने के लिए एक निजी कंपनी से वार्षिक प्रीमियम के रूप में 2.52 करोड़ रुपये कमाए थे।
तीन शिफ्ट में काम करते हैं सफाईकर्मी
इंदौर नगर निगम को साफ रखने के लिए लगभग 8,500 सफाईकर्मी तीन शिफ्टों में काम करते हैं। शहर में उत्पन्न सीवेज को भी तीन स्पेशल प्लांट्स के जरिए उसे दोबारा उपयोग के लायक बनाया जाता है। इसे शहर के अंदर तकरीबन 200 सार्वजनिक उद्यानों, खेतों और निर्माण गतिविधियों के लिए पुन: उपयोग किया जाता है।
हर 200 मीटर पर शौचालय
इंदौर में लगभग 2.5 लाख की चलायमान आबादी है। जो रोजाना अपने काम के सिलसिले में यात्रा करती है। इंदौर नगर निगम ने प्रत्येक 200 मीटर के बाद एक सार्वजनिक शौचालय का निर्माण किया है। जिनका काफी अच्छी तरह से रखरखाव किया जाता है। वहीं शौचालय साफ होने पर लोगों को उनके इस्तेमाल के लिए बार-बार सोचने की जरूरत नहीं पड़ती है।
हवा को साफ रखने के लिए बनाये ये नियम
इंदौर की सड़कों को मैकेनाइज्ड स्वीपिंग पद्धति से लगातार साफ किया जाता है। ताकि, सड़कों पर ज्यादा धूल न उड़े। निर्माण कार्य स्थलों पर ले जाने वाले सामानों के सभी वाहनों को तारपोलिन से ढंककर ले जाना अनिवार्य किया गया। सभी कंस्ट्रक्शन साइट पर ग्रीन नेट से कवर करना अनिवार्य है। जबकि कोयला और लकड़ी से जलने वाले तंदूर के लिए स्वच्छ ग्रीन ईंधन में परिवर्तित किया गया। नगर निगम द्वारा ‘रेड लाइट ऑन इंजन ऑफ’ जैसी मुहिम चलाकर लोगों को जागरुक किया। वहीं निर्माण सामग्री ढोने वाले वाहनों को शहर में रात के समय प्रवेश करने की अनुमति दी। इन सभी उपायों से आज इंदौर देश का सबसे स्वच्छ शहर बन चुका है।