Space Up India: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने अपने सफल अभियानों के इतिहास में रविवार की सुबह एक और नया अध्याय जोड़ दिया है। ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान अथवा पोलर सेटेलाइट लॉन्च व्हीकल (पीएसएलवी) श्रृंखला के 56वें यान ने उड़ान भरी। यान अपने साथ ले जाए गए सिंगापुर के सात उपग्रहों को उनकी निर्दिष्ट कक्षा में भेजने में सफल रहा।
इसरो का यह तीसरा व्यावसायिक अभियान था। चौथा अभियान सितंबर में प्रस्तावित है। इस श्रेणी का पहला डेडिकेटेड कमर्शियल मिशन पीएसएलवी-सी51/ अमेजॉनिया-1, 28 फरवरी 2021 को और दूसरा, पीएसएलवी-सी 53 पिछले साल 30 जून को प्रक्षेपित किया गया था। पीएसएलवी-सी 56 मिशन को पूरा किया है इसरो की आनुषंगिक कंपनी न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (एन एस आई एल) ने। यह कंपनी इसी साल 22 अप्रैल को भी पीएसएलवी-सी55/ टेलईओएस सफलतापूर्वक प्रक्षेपित कर चुकी है।
एनएसआईएल की शुरुआत 2019 में हुई थी। इसके अलावा इसरो की एक और व्यावसायिक कंपनी सितंबर 1992 में आरंभ की गई एन्ट्रिक्स कॉर्पोरेशन लि. (ए सी एल) है। यह मुख्यत: मार्केटिंग के लिए है। इसका काम इसरो के अंतरिक्ष उत्पादों, तकनीकी परामर्श सेवाओं, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण आदि का प्रचार व व्यावसायिक दोहन करना है ।
पिछले तीस साल में व्यावसायिक दृष्टि से इसरो ने एक लंबा और महत्वपूर्ण सफर तय किया है। लेकिन अगर वैश्विक अंतरिक्ष बाजार के आकार के हिसाब से देखें तो हमें अभी बहुत कुछ करना बाकी है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2022 में ग्लोबल स्पेस एक्स्प्लोरेशन मार्केट 186 अरब डॉलर का था। यह 16.21% की सालाना दर से बढ़ रहा है। इस दर से यह वर्ष 2032 तक बढ़कर 1879 अरब डॉलर हो जाएगा। इसके मुकाबले भारतीय अंतरिक्ष बाजार की मौजूदा वैल्यू आठ अरब डॉलर ही है, और विकास दर सिर्फ 4%।
इस विकास दर के हिसाब से हमारी अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था वर्ष 2040 तक 40 अरब डॉलर की होगी। लेकिन, इस क्षेत्र में अपेक्षाकृत अधिक संभावनाएं हैं। मल्टीनेशनल मैनजमेंट कन्सल्टेंसी फर्म आर्थर डी लिटिल (एडीएल) की रिपोर्ट ‘इंडिया इन स्पेस : ए डॉलर 100 बिलियन इंडस्ट्री बाय 2040’ का दावा है कि वर्ष 2040 तक भारत की स्पेस इकोनॉमी 100 अरब डॉलर तक पहुँच सकती है। इसकी वजह है सरकार द्वारा अंतरिक्ष को प्राइवेट सेक्टरों के लिए खोल देना।
इस समय भारत में करीब 190 एक्टिव स्पेस स्टार्टअप्स हैं, जो इसरो के साथ मिलकर अंतरिक्ष में हमारे लिए एक महत्वपूर्ण जगह सुनिश्चित कर रही हैं। ये कंपनियां, स्पेस लॉन्च व्हीकल्स निर्माण और हाइपरस्पेक्ट्रल इमेजिंग कैमरों वाले सेटेलाइटों का निर्माण तथा उपग्रह आधारित डेटा सेवाएं उपलब्ध कराने जैसी तरह- तरह की अंतरिक्षीय गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं। 2014 में देश में केवल एक स्टार्ट अप था। एक दशक में दो सौ गुना संख्या हो जाना, स्वयं में बहुत उत्साहवर्द्धक है।
2021-30 की अवधि के दौरान अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में काम करने वाली स्टार्टअप्स पर इंक42 की रिसर्च बताती है कि इनकी औसत वार्षिक विकास दर लगभग 30% है और वर्ष 2030 तक इनके लिए करीब 77 अरब डॉलर के अवसर उपलब्ध होंगे। देश में स्पेसटेक स्टार्टअप्स को 205 मिलियन डॉलर की फंडिंग मिल चुकी है और उन्होंने वर्ष 2014 से मई 2023 तक, कुल 33 डील की हैं।
भारत में करीब चार सौ निजी स्पेस कंपनियाँ हैं। इस विशाल संख्या की बदौलत भारत सर्वाधिक स्पेस कंपनियों वाले देशों में पाँचवें स्थान पर पहुँच चुका है। इन कंपनियों में छिपी संभावनाओं को देखते हुए सरकार ने इनमें लगभग 112 मिलियन डॉलर का निवेश भी किया है।
वर्ष 2022 में अंतरिक्षीय कार्यक्रमों पर खर्च के मामले में हम आठवें स्थान पर थे। अमेरिका (61.97 अरब डॉलर), चीन (11.94 अरब), जापान (4.90 अरब), फ्रांस (4.20), रूस (3.42), यूरोपियन यूनियन (2.60), जर्मनी (2.53) के मुकाबले हमने सिर्फ 1.93 बिलियन डॉलर ही खर्च किए। इसके बावजूद हम एक स्पेस सुपर पॉवर बनने की ओर अग्रसर हैं। फिर भी हमारी इसरो, विश्व की छठवीं सबसे बड़ी स्पेस एजेंसी है। आज हम अमेरिकी खर्च के चार प्रतिशत से भी कम खर्च के बावजूद उसकी बराबरी में खड़े हैं, उसके साथ समझौते कर रहे हैं तो इससे अंतरिक्ष के क्षेत्र में हमारे बढ़ते प्रभुत्व का परिचय मिलता है।
हमारी किफायत ही हमारी ताकत है। इस ताकत का परिचय दुनिया को हमने एक दशक पहले वर्ष 2013 में दिया था, जब महज 450 करोड़ रूपए के खर्च में हमने अपने मार्स ऑर्बिटर मिशन को सफलतापूर्वक पूरा कर सबको हैरान कर दिया था। आज हम दुनिया भर में कम लागत वाले उपग्रहों के निर्माण के लिए जाने जाते हैं। इस ताकत को हम लगातार बढ़ाते गए हैं। पिछले दो दशकों में इसरो 34 देशों के 381 उपग्रहों को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में पहुंचा चुका है।
वैश्विक अंतरिक्ष कार्यक्रमों में व्यावसायिक गतिविधियों वाला हिस्सा काफी बड़ा रहने वाला है। अगले एक दशक में यह करीब 48% हो सकता है। भारत अगर इसमें अपनी पैठ बनाने में सफल रहता है तो उसे इसका काफी लाभ मिलेगा।
अंतरिक्ष उद्यमों में छिपी अपार संभावनाओं का दोहन करने के लिहाज से सरकार ने इस साल ‘इंडियन स्पेस पॉलिसी 2023’ को स्वीकृति प्रदान की है। इसके मुताबिक इसरो मुख्यत: नई अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों व अनुप्रयोगों में अनुसंधान व विकास और बाह्य अंतरिक्ष के बारे में इंसानी समझ के विस्तार पर ध्यान देगा। अंतरिक्ष नीति चार विभिन्न, लेकिन एक-दूसरे से सम्बद्ध इकाईयों पर जोर देती है, जिनका उद्देश्य निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ाना है। खासकर ऐसी गतिविधियों में, जो पारंपरिक रूप से इसरो के अधिकार क्षेत्र में आती हैं।
इसरो के अलावा, इन इकाईयों में प्रमुख है, इनस्पेस (इंडियन नेशनल स्पेस प्रमोशन एंड ऑथराइजेशन सेंटर)। इनस्पेस स्पेस लॉन्च, लॉन्च पैड तैयार करने, सेटेलाइटों की खरीद-बिक्री, डेटा प्रसार जैसे कामों के लिए सिंगल विंडो क्लीयरेंस और ऑथराइजेशन का काम करेगी। साथ ही, यह सरकारी तथा निजी कंपनियों के साथ प्रौद्योगिकियॉं, उत्पाद, प्रक्रियाएं और उत्कृष्ट कार्यप्रणालियॉं भी साझा करेगी। दूसरी इकाई न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों और प्लेटफॉर्मों के व्यावसायिक दोहन, निजी अथवा सार्वजनिक क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए उत्पादन, लीजिंग, स्पेस उपकरणों, प्रौद्योगिकी, प्लेटफॉर्मों और अन्य परिसंपत्तियों की व्यवस्था का काम देखेगी।
इनके अलावा अंतरिक्ष विभाग है, जो अंतरिक्षीय प्रौद्योगिकी के क्रियान्वयन के लिए नोडल एजेंसी होगा तथा अंतरिक्ष नीति के तहत समग्र दिशानिर्देश उपलब्ध कराएगा। यह वैश्विक अंतरिक्ष विषयों में अंतरराष्ट्रीय सहयोग व समन्वय सुनिश्चित करने व अंतरिक्षीय गतिविधियों के दौरान उत्पन्न विवादों के समाधान के लिए तंत्र विकसित करने के लिए उत्तरदायी होगा।
अंतरिक्ष के क्षेत्र में निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करने वाली इस नीति से निश्चय ही भारत को बढ़त मिलेगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह ग्लोबल स्पेस इकोनॉमी में भारत की हिस्सेदारी को 2% से 10% तक पहुँचा सकती है।