लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष का इंडिया एलायंस, मणिपुर हिंसा और कोर्ट एक्टिविज्म मोदी सरकार के सामने तीन बड़ी चुनौतियां खड़ी हो गई हैं|
तीनों बड़ी चुनौतियां हैं|
सरकार को आदेश देने की अदालतों की प्रवृति बढ़ती जा रही है, जो लोकतंत्र और समाज के लिए गंभीर खतरा है| मणिपुर की समस्या भी कोर्ट की ही पैदा की हुई है| सवाल उठता है कि कोर्ट को ऐसे मामले अपने हाथ में लेने ही क्यों चाहिए, जिसका वैधानिक अधिकार कार्यपालिका के पास है| मेइती समुदाय आरक्षण की मांग कर रहा था, इस पर वह कोर्ट में गया। कोर्ट को उसकी याचिका क्यों स्वीकार करनी चाहिए थी, जबकि यह तय करना सरकार का काम है| जैसे ही कोर्ट का फैसला आया, कुकी समुदाय ने हिंसा शुरू कर दी| अगले ही दिन मेइती समुदाय की ओर से जवाबी कार्रवाई की गई। इसी हिंसा प्रतिहिंसा के दौर में 4 मई की वह घटना हुई, जिसने सारे देश को शर्मसार किया|
सवा दो महीने तक इस घटना की देश को जानकारी नहीं थी
सवा दो महीने बाद वीडियो वायरल होने के बाद देश को जानकारी मिली| लेकिन क्या स्थानीय प्रशासन को भी इसकी जानकारी नहीं थी| जो खबरें छन कर आ रही हैं, उसके मुताबिक़ राज्य सरकार को उस घटना, और वैसी ही अन्य घटनाओं की भी जानकारी थी| यहां तक कि राष्ट्रीय महिला आयोग को भी जानकारी थी, क्योंकि राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ने खुलासा किया है कि उन्होंने राज्य सरकार को चिठ्ठी लिख कर रिपोर्ट मांगी थी| इसमें कोई शक नहीं कि केंद्र सरकार ने मणिपुर की गंभीरता को समझने में देरी की| 3 मई को दंगे शुरू हो गए थे, और केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह 29 मई को मणिपुर गए| वह मेइती और कुकी दोनों इलाकों में गए, चार दिन वहां रहने के दौरान उन्होंने दोनों समाजों के साथ जो वायदे किए थे, वे आज तक नहीं निभाए गए| अमित शाह के लौटने के बाद भी वहां शान्ति नहीं हुई, तो विपक्ष की प्रमुख नेता सोनिया गांधी ने मणिपुर की जनता को शान्ति बनाए रखने का एक वीडियो संदेश जारी किया| क्या यह काम प्रधानमंत्री को अमित शाह का मिशन फेल हो जाने के बाद अपने हाथ में नहीं लेना चाहिए था? वह भी ऐसा संदेश जारी कर सकते थे, और उन्हें करना चाहिए था|
मणिपुर मुद्दे पर विपक्ष का बड़ा प्लान, क्या सरकार की बढ़ेगी टेंशन?
20 जुलाई को संसद सत्र शुरू हुआ, उससे एक दिन पहले वह वीडियो जारी हुआ, जिसने सारे देश को शर्मसार किया| तब से मणिपुर को लेकर संसद में हंगामा चल रहा है। यदि मान भी लें कि संसद सत्र से पहले वीडियो जारी करना राजनीतिक साजिश का हिस्सा हो सकता है, लेकिन क्या सरकार और दोनों सदनों के अध्यक्षों को तुरंत कोई कदम नहीं उठाना चाहिए था| 27 जुलाई को विपक्षी गठबंधन ने सांसदों का 20 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल मणिपुर भेजने का फैसला किया| क्या सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजने का प्रस्ताव पहले ही सरकार को नहीं रखना चाहिए था| क्या लोकसभा के स्पीकर और राज्यसभा के सभापति को अपने सदनों को चलाने के लिए यह प्रस्ताव नहीं रखना चाहिए था| जम्मू कश्मीर में ऐसे प्रतिनिधिमंडल भेजे जाते रहे हैं| मणिपुर की घटनाओं के साथ साथ चुनाव आते आते कोर्ट एक्टिविज्म के कुछ मामले भी नरेंद्र मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा करेंगे| जिनमें से एक दिल्ली का अध्यादेश है, जो जल्द ही संसद से बिल पास होने के बाद क़ानून का रूप ले लेगा| कांग्रेस को अपनी गलती का एहसास कुछ सालों बाद होगा, लेकिन अपने त्वरित फायदे के लिए उसने अध्यादेश और बिल का विरोध करने का फैसला किया, ताकि इंडिया नामक एलायंस बनाने में मदद मिले|
सरकार अगर जरा भी सूझबूझ से काम लेती तो
कांग्रेस के शीर्ष नेताओं से बैकडोर बातचीत शुरू करके दिल्ली के मसले पर कांग्रेस का समर्थन हासिल कर सकती थी| इसमें दिल्ली के दो बड़े कांग्रेसी नेता अजय माकन और संदीप दीक्षित सरकार के मददगार हो सकते थे, जो अध्यादेश को उचित बता रहे थे| गृहमंत्री अमित शाह और संसदीय कार्यमंत्री प्रहलाद जोशी अहम भूमिका निभा सकते थे| संसदीय कार्यमंत्री का काम सदन में समन्वय बनाने का होता है। शायद वह समझते हैं कि उनकी भूमिका केवल संसद सत्र के दौरान ही होती है, लेकिन इस मामले में संसदीय कार्यमंत्री को अध्यादेश से पहले ही समन्वय की भूमिका निभानी चाहिए थी, वह कांग्रेस और सरकार में कड़ी का काम कर सकते थे| लेकिन मोदी सरकार के मंत्रियों तो क्या लोकसभा स्पीकर और राज्यसभा के सभापति की भी आदत बन गई है कि जितना आदेश मिले, उतना ही करो|
इन दो तीन घटनाओं ने लोकसभा चुनावों से आठ महीने पहले ही देश में चुनावी माहौल बना दिया है
अखबारों और टीवी चैनलों ने सर्वेक्षण एजेंसियों को काम पर लगा दिया है| देश भर में सर्वेक्षण शुरू हो चुके हैं कि एलायंस और भाजपा में सीधा मुकाबला हुआ तो क्या होगा| वैसे अभी के सर्वेक्षण से कोई अंदाज नहीं लग सकता कि आने वाले छह महीनों में तस्वीर का रूख क्या होगा| पांच साल पहले जनवरी 2019 तक लगभग सारे सर्वेक्षण कह रहे थे कि भाजपा को 200 से कम सीटें मिलेंगी| फिर 14 फरवरी को अचानक पुलवामा हो गया, तो लोग उम्मीद करने लगे कि मोदी अब कुछ करेंगे| अगर मोदी कुछ नहीं करते, तो निश्चित ही भाजपा की सीटें घटतीं| लेकिन जब मोदी सरकार के आदेश पर भारतीय फ़ौज ने पुलवामा के 12 दिन बाद पाकिस्तान में घुस कर बालाकोट में सर्जिकल स्ट्राईक कर दी, तो देश की फिजा ही बदल गई क्योंकि देश मोदी से यही उम्मीद करता था| उस मौके पर मोदी देश की उम्मीदों पर खरे उतरे, और तब तक के सारे सर्वेक्षण धरे रह गए| फिर भी भाजपा की सीटें शायद इतनी नहीं बढ़ती, अगर विपक्षी दल पुलवामा के आतंकी हमले को प्रायोजित न कहते और सर्जिकल स्ट्राईक का सबूत नहीं मांगते| राजनीतिक नेता कई बार जनता का मन पढ़ नहीं पाते| यह बात कौन मानेगा कि मोदी ने चुनाव जीतने के लिए पुलवामा में 40 जवान मरवा दिए होंगे, लेकिन विपक्षी दलों के नेताओं ने ऐसे अकल्पनीय आरोप लगाए|
चुनावों के समय की गई एक गलती भी भारी पड़ जाती है
मोदी सरकार गलतियों पर गलतियां करती जा रही है| अभी तक के चुनावी सर्वेक्षणों में ऐसा कुछ नहीं लगता कि इंडिया एलायंस के बावजूद मोदी सरकार वापस नहीं आएगी, लेकिन अब तक के सर्वेक्षण यह जरुर कह रहे हैं कि भाजपा और एनडीए की सीटें घटेंगी| ताजा सर्वे कहते हैं कि मोदी को पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, दिल्ली, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में लगभग बीस सीटों का नुकसान होगा| जबकि यूपी और बिहार में आठ दस सीटों का फायदा होगा| बिहार में भाजपा की खुद की सीटें तो बढ़ेंगी, लेकिन एनडीए की घटेंगी| पिछली बार तो नीतीश और पासवान के साथ गठबंधन के चलते एनडीए ने 40 में से 39 सीटें जीत ली थीं| इस बार यह आंकड़ा 25 पर रुक जाएगा, मतलब यह कि जिस बिहार ने मोदी विरोध की हवा बनाई है, वहां भी इंडिया एलायंस पर एनडीए भारी ही रहेगा| तेलंगाना में भी भाजपा की सीटें बढ़ेंगी, और आखिरी समय में आंध्र प्रदेश में टीडीपी से गठबंधन होता है, तो आंध्र में भाजपा का खाता खुल सकता है|
भाजपा को बड़ा नुकसान
कर्नाटक, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में हो सकता है| इन तीनों राज्यों में भाजपा की 67 सीटें हैं, जो घट कर 40 तक रह सकती हैं| यानि 303 में से 35-40 सीटें घटती भी हैं, तो भी सरकार मोदी की ही बनेगी, क्योंकि भाजपा के पार्टनर यूपी, बिहार, महाराष्ट्र से ज्यादा नहीं तो 20-22 सीटें तो लाएंगे ही| अगर मोदी सरकार आने वाले छह महीनों में मणिपुर में शान्ति बहाल करने के बाद डेमेज कंट्रोल करने में सफल होती है, और कोर्ट एक्टिविज्म का मुकाबला करने में सफलता हासिल कर लेती है, तो उसे कोई खतरा नहीं। लेकिन आज के हालात में कांग्रेस लोकसभा में सौ से ज्यादा सीटें हासिल करती दिख रही है| मोदी की तीसरी पारी में मजबूत विपक्ष सरकार को उस तरह काम नहीं करने देगा, जैसे दूसरी पारी में करने में सफल हुई, इसलिए अधूरे काम अभी करके भाजपा अपने वोटबैंक को फिर से संभाल सकती है