मणिपुर के मुद्दे पर संसद के दोनों सदनों में हंगामा जारी है, इस बीच विपक्षी दलों ने लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया। वैसे तो सत्ताधारी एनडीए के पास संख्याबल है, ऐसे में वो जीत हासिल कर लेगी। इस वजह उसके नेता भी सहज स्थिति में नजर आ रहे।
मौजूदा वक्त में लोकसभा में बीजेपी के 301 सांसद हैं। अगर उसके सहयोगी दलों को मिला लें, तो एनडीए का आंकड़ा 333 का है। वहीं दूसरी ओर विपक्ष के पास कुल 142 सांसद हैं, ऐसे में उसके अविश्वास प्रस्ताव का टिकना मुश्किल है। हालांकि इतिहास में तीन प्रधानमंत्री ऐसे भी रहे हैं, जिनकी सरकार के लिए अविश्वास प्रस्ताव ‘काल’ बन गया।
वीपी सिंह (1990)
जनता दल के नेता वीपी सिंह 1989 से 1990 तक प्रधानमंत्री पद पर रहे। वैसे तो उनकी सरकार को कई दलों का समर्थन प्राप्त था, लेकिन राम मंदिर के मुद्दे पर 1990 में बीजेपी ने समर्थन वापस ले लिया। जिसके बाद उनके खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव आया और वो हार गए। इस पर उन्होंने 10 नवंबर 1990 को इस्तीफा दे दिया था। वो कुल 11 महीने तक ही पीएम पद पर रहे।
देवेगौड़ा (1997)
1996 के आम चुनाव के बाद संयुक्त मोर्चा गठबंधन सरकार बनी, जिसके तहत 1 जून 1996 को जनता दल के नेता देवेगौड़ा प्रधानमंत्री बने। उनको कांग्रेस का भी समर्थन प्राप्त था। करीब 10 महीने बाद अचानक से सीताराम केसरी के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने अपना समर्थन वापस ले लिया। जिसके बाद संसद में अविश्वास प्रस्ताव आया। उसमें वो हार गए।
अटल बिहारी वाजपेई (1999)
बीजेपी नेता अटल बिहारी वाजपेयी दो बार प्रधानमंत्री बने और दोनों ही कार्यकाल में उनको अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा। वो पहली सरकार में 17 अप्रैल 1999 को अविश्वास प्रस्ताव एक वोट से हार गए। उस वक्त जयललिता के नेतृत्व वाली अन्नाद्रमुक ने समर्थन वापस ले लिया। हालांकि फिर से उनकी सत्ता में वापसी हुई। 2003 में उनके दूसरे कार्यकाल में भी विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया, लेकिन उस वक्त वो जीत गए थे।