साल 1999 में देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने के लिए लाहौर पहुंचे थे. 21 फरवरी 1999 को पाकिस्तान के साथ लाहौर समझौते पर हस्ताक्षर हुआ. भारत की कोशिश थी कि दोनों देशों के बीच रिश्ते मधुर बने, लेकिन ठीक चार महीने बाद पाकिस्तान ने भारत की पीठ में छुरा घोंप दिया. जिसके रूप में हमें कारगिल युद्ध लड़ना पड़ा. आज इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे पाकिस्तान ने भारत पर हमले की साजिश रची और भारत ने पाकिस्तान को कैसे करारा जवाब दिया था.
कैसे घुसी थी पाकिस्तानी सेना?
रविवार, 2 मई 1999 को ताशी नामग्याल नाम का एक चरवाहा अपने याक की खोज कर रहा था. ताशी का नया याक कहीं पहाडों में खो गया था, वह काफी देर से अपना याक ढूंढ रहा था. इसी बीच वह अपने याक की तलाश में कारगिल के पहाड़ियों की ओर चला गया. जब वह वहां पहुंचा तो उसने कई लोगों को देखा, उसे शक हुआ कि ये उसके इलाके के लोग नहीं लग रहे हैं.
ताशी को यकीन हो गया कि वो सभी पाकिस्तानी हैं जो घुसपैठ कर भारतीय सीमा में आए हैं. उसने बिना देर किए अगले दिन भारतीय सेना को इसकी सूचना दी. सूचना मिलते ही सेना सक्रिय हो गई और माना जाता है कि यह कारगिल की पहली घटना थी.
शुरू हुआ ‘ऑपरेशन विजय’
3 मई 1999 को पाकिस्तान ने करीब 5 हजार सैनिकों के साथ कारगिल की पहाड़ियों में घुसपैठ कर इलाके पर कब्जा कर लिया. वहीं, ताशी ने भी इस बात की पुष्टि की थी कि पाकिस्तानी घुसपैठिए के तौर पर भारतीय सीमा में घुस आए हैं. भारत ने इस नापाक हरकत को विश्वघात माना और इसके जवाब में ‘ऑपरेशन विजय’ शुरू किया.
इस तरह से हुई थी जीत
यह युद्ध भारत के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण था क्योंकि इस जंग को 18 हजार फीट की ऊंचाई पर लड़ना था, जहां पाकिस्तानी सेना पहले ही इलाके पर कब्जा कर चुकी थी. भारतीय सेना और वायुसेना ने युद्ध की योजना बनाई. यह युद्ध लगभग 60 दिनों तक चला, जिसमें पाकिस्तान को औंधे मुंह गिरना पड़ा और हारकर तुरंत पीछे हटना पड़ा.
26 जुलाई 1999 को भारत ने कब्जे वाले सभी क्षेत्रों से पाकिस्तानी सेना को खदेड़ दिया. हालांकि इस युद्ध में हमारे 527 सैनिक शहीद हुए थे और 1300 से ज्यादा सैनिक घायल हुए थे. एक तरफ पूरा देश जवानों की शहादत से दुखी था तो दूसरी तरफ इस बात की खुशी भी थी कि हमारे वीर जवानों ने पाकिस्तान को पूरी दुनिया के सामने बेनकाब कर दिया था