कांग्रेस नेता राहुल गांधी का राजनीति भविष्य अभी अंधेरे में है।
लेकिन इसके बावजूद वे सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में बेहद सक्रिय हैं। शुक्रवार को वे सोनीपत के एक गांव में किसानों के साथ धान की रोपनी करने लगे। दस दिन पहले वे मणिपुर के हिंसा प्रभावित राहत शिविर में पहुंचे और बच्चों के साथ दोपहर का भोजन किया।
एक महीने पहले अंबाला से चंडीगढ़ तक ट्रक में सवारी की। इसके पहले भी वे आम लोगों से जुड़ने की कोशिश करते रहे हैं। लेकिन इन कोशिशों का राजनीतिक भविष्य क्या है ? मोदी सरनेम मामले में हुई सजा अभी तक बरकरार है।
अगर सुप्रीम कोर्ट से उन्हें राहत नहीं मिली तो 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ना मुमकिन नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट जब तक उनकी सजा निरस्त नहीं करता या फिर दो साल की सजा कम नहीं करता उनका चुनाव लड़ना संभव नहीं है।
अगर राहुल को बिना सांसदी के नेता चुन लिया जाय तो ?
अगर मान लिया जाय कि राहुल गांधी 2024 का लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ें और चुनाव में कांग्रेस या उसके गठबंधन को जीत मिल जाय तो क्या होगा ? और फिर अगर कांग्रेस के निर्वाचित लोकसभा सदस्य राहुल गांधी को संसदीय दल का नेता चुन लें तो क्या राहुल गांधी प्रधानमंत्री बन सकते हैं ?
इस संबंध में एक उदाहरण तो है
लेकिन इन दोनों मामलों में एक अंतर सजा की अवधि को लेकर है। सिक्किम के सीएम प्रेम सिंह तमांग यह उदाहरण पूर्वोत्तर राज्य सिक्किम का है जो मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग से जुड़ा है। प्रेम सिंह तमांग 1996 में सिक्किम के पशुपालन मंत्री थे। उन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा था। इस मामले में कोर्ट ने 2017 में उन्हें एक साल की सजा सुनायी थी। इसकी वजह से उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द हो गयी। वे अगस्त 2017 से अगस्त 2018 तक जेल में रहे।
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 8 के मुताबिक
सजा पूरी होने के बाद से 6 साल तक संबंधित व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकता था। दोषी साबित होने के बाद भी सीएम बने थे तमांग इस बीच 2019 में सिक्किम विधानसभा का चुनाव आ गया। प्रेम सिंह तमांग की पार्टी सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा ने चुनाव लड़ा। लेकिन प्रेम सिंह तमांग ने 6 साल प्रतिबंध के कारण चुनाव नहीं लड़ा। चुनाव में तमांग की पार्टी ने 32 में से 17 सीटें जीत कर बहुमत प्राप्त कर लिया। फिर घटनाचक्र तेजी से घुमा। सिक्किम डेमोक्रेटिक मोर्चा के विधायकों ने पार्टी अध्यक्ष प्रेम सिंह तमांग को विधायक दल के नेता चुन लिया। राज्यपाल ने प्रेम सिंह तमांग को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया। 28 मई 2019 को उन्होंने सिक्किम के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। लेकिन अब समस्या ये थी कि तमांग को सीएम बने रहने के लिए छह महीने के अंदर विधायक बनना था। उपचुनाव लड़ने के लिए चुनाव आयोग से गुहार 2019 के सिक्किम विधानसभा चुनाव में 3 विधायक दो सीटों से जीते थे। इन्हें एक-एक सीट छोड़नी पड़ी। इसकी वजह से तीन सीटों पर उपचुनाव तय हो गया।
21 अक्टूबर को उपचुनाव होना था।
इस उपचुनाव के लिए तमांग की पार्टी और भाजपा ने समझौता कर लिया। दो सीट पर भाजपा और एक सीट पर खुद तमांग के चुनाव लड़ने पर सहमति बनी। हालांकि विधानसभा चुनाव में तमांग और भाजपा ने अलग अलग चुनाव लड़ा था। चूंकि तमांग ने 28 मई को सीएम पद की शपथ ली थी इसलिए उनका 28 नवम्बर 2019 से पहले विधायक बनना अनिवार्य था। 21 अक्टूबर का उपचुनाव उनके लिए सबसे बड़ा मौका था। लेकिन वे 6 साल के प्रतिबंध के कारण चुनाव नहीं लड़ सकते थे। इसलिए उन्होंने चुनाव आयोग से सजा (6 साल) कम करने की गुहार लगायी। चुनाव आयोग ने पांच साल कर कर दी थी सजा उन्होंने तर्क दिया कि जिस मामले में उन्हें दोषी ठहराया गया था वह 1996-97 का है और उस समय दोषी के लिए सजा पूरी होने के बाद 6 साल तक चुनाव नहीं लड़ने से संबंधित कोई प्रावधान नहीं था। इस दरख्वास्त के बाद चुनाव आयोग ने प्रेम सिंह तमांग की सजा की अवधि 5 साल कम कर केवल एक साल एक महीना कर दी।
यानी वे सजा पूरी होने के एक साल एक महीने बाद चुनाव लड़ सकते थे। यह समय सीमा 10 सितम्बर 2019 को पूरी हो गयी। इसके बाद प्रेम सिंह तमांग ने अक्टूबर 2019 का उपचुनाव लड़ा। इस चुनाव में जीत हासिल कर उन्होंने अपनी सीएम की कुर्सी बरकरार रखी। तो इसलिए वायनाड में नहीं हो रहा उपचुनाव प्रेम सिंह तमांग आज भी मुख्यमंत्री के रूप में काम कर रहे हैं लेकिन इसके बावजूद वे आज की तारीख में कंविक्ट हैं।
उनकी अपील अभी भी लंबित है।
चुनाव आयोग ने विशेषाधिकार के तहत केवल उनकी सजा कम की है। उनकी सजा माफ नहीं हुई है। लेकिन यहां एक अंतर है। प्रेम सिंह तमांग को केवल एक साल की सजा हुई लेकिन राहुल गांधी को 2 साल की सजा हुई है।
अब अगर राहुल गांधी सुप्रीम कोर्ट में अपील करते हैं
और उनकी सजा दो साल से कम हो जाती है तो उनकी संसद सदस्यता बच जाएगी। इन्हीं कानूनी संभावनाओं के कारण चुनाव आयोग वायनाड में उपचुनाव को लेकर अभी इंतजार कर रहा है। जनवरी 2023 में लक्षद्वीप के सांसद मोहम्मद फैजल को हत्या एक मामले में दोषी करार दिया गया था। इसके बाद उनकी सांसदी खत्म हो गयी। फिर चुनाव आयोग ने तुरंत ही लक्षद्वीप के लिए उपचुनाव की घोषणा कर दी। इसी बीच केरल हाईकोर्ट ने मोहम्मद फैजल की सजा निरस्त कर दी। तब चुनाव आयोग को उपचुनाव की अधिसूचना वापस लेना पड़ी थी।