India in Africa: चीन को काउंटर करने के लिए भारत अफ्रीकी महाद्वीप में चीन के ही रास्ते पर चल रहा है और एक रिपोर्ट के मुताबिक, अफ्रीका भारत से कर्ज हासिल करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश बन गया है।
नई दिल्ली ने प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न अफ्रीकी महाद्वीप में अपना प्रभाव बढ़ाने में चीन के साथ बराबरी करने की कोशिशें काफी तेज कर दी हैं।
ब्लूमबर्ग की एक ताजा रिपोर्ट में इसका खुलासा किया गया है। रिपोर्ट में भारत के एक्सपोर्ट-इंपोर्ट बैंक के मैनेजिंग डायरेक्टर हर्षा बंगारी का हवाला दिया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है, कि भारत ने 42 अफ्रीकी देशों में पिछले 10 सालों में 32 अरब डॉलर बांटे हैं। यानि, अफ्रीकी देशों ने जितना कर्ज लिया है, उसका 38 प्रतिशत ऋण सिर्फ भारत ने दिया है, जो चीन से थोड़ा ही कम है।
अफ्रीका में भारत की आर्थिक कूटनीति
ब्लूमबर्ग ने बंगारी के हवाले से कह है, कि एक्सपोर्ट-इंपोर्ट बैंक भारत की “आर्थिक कूटनीति” का एक साधन है।
उन्होंने कहा, कि भारत ने पूरे अफ्रीका में लगभग 12 अरब डॉलर मूल्य की 195 परियोजना-आधारित क्रेडिट लाइनें खोली हैं, जो पिछले एक दशक में अपने क्षेत्र की तुलना में तीन गुना ज्यादा है। उन्होंने कहा, कि “अफ्रीका ने स्वास्थ्य देखभाल, बुनियादी ढांचे, कृषि और सिंचाई सहित अलग अलग परियोजनाओं के लिए भारतीय क्रेडिट लाइनों का जमकर इस्तेमाल किया है और भारत में मांग में लगातार वृद्धि देखी जा रही है।”
भारत, पिछले लंबे अर्से से अफ्रीका में अपने पांव जमाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन भारत की तमाम कोशिशें, चीन के सामने नाकाफी साबित हो रही थीं। जिसके बाद अब भारत ने आर्थिक कूटनीति का सहारा लिया है और भारत, इतनी तेजी स अफ्री देशों में ऋण बांट रहा है, कि कई अमीर देश भारत के मुकाबले पीछे रह गये हैं।
बोस्टन विश्वविद्यालय के वैश्विक विकास नीति केंद्र के आंकड़ों के मुताबिक, 2016 के बाद से अफ्रीका के लिए चीन के ऋण में गिरावट आई है। चीन ने अफ्रीकी देशों के 134.6 अरब डॉलर का ऋण बांटने का वादा किया था, लेकिन अब चीन अपने इस वादे से पीछे हट गया है, ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, यह भारत द्वारा दी गई ऋण की पेशकश से लगभग 11 गुना ज्यादा है, लेकिन चीन के पीछे हटने के बाद भारत खुद को एक विकल्प के तौर पर पेश कर रहा है।
अफ्रीका के साथ गहरे संबंध
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने राजनयिक और आर्थिक संबंधों को मजबूत करते हुए अफ्रीका के साथ गहरे जुड़ाव पर जोर दिया है। नई दिल्ली को अफ्रीका महाद्वीप में और विस्तार करने का अवसर दिख रहा है, क्योंकि वह महामारी के आर्थिक प्रभावों और यूक्रेन में रूस के संघर्ष से काफी नुकसान पहुंचा है।
पिछले नौ सालों में भारत ने 25 नए भारतीय दूतावासों या वाणिज्य दूतावासों खोले हैं, जिनमें से 18 अफ्रीकी देशों में हैं। वहीं, इसी साल फरवरी में, भारत ने वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन में 48 अफ्रीकी देशों की मेजबानी की।
पीएम मोदी की नीति के तहत, भारत खुद को ग्लोबल साउथ का नेता के तौर पर प्रोजेक्ट कर रहा है और भारत ने विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में ऋण संकट की तरफ लगातार दुनिया का ध्यान आकर्षित करने के लिए जी20 जैसे प्लेफॉर्म्स के जरिए कई अहम कदम भी उठाए हैं।
28 जून को भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने एक कार्यक्रम में कहा था, कि ‘भारत अब अगले 25 साल के बाद की दुनिया को सोचकर चल रहा है।’ उन्होंने कहा था, कि “और अपने आप से पूछना चाहिए, कि 2047 में हम कहां होंगे और इसकी तैयारी के लिए हमें अभी से क्या करना चाहिए।”
बंगारी ने कहा, कि चीन के वित्तपोषण की मात्रा भारत से बड़ी है, लेकिन नई दिल्ली को सरकारों को यह तय करने देना चाहिए, कि उन्हें क्या चाहिए और उन पर उस तरह की दिखावटी परियोजनाओं का बोझ नहीं डालना चाहिए, जिसके लिए बीजिंग की अक्सर आलोचना की जाती है।
उन्होंने कहा, कि ‘अफ्रीकी देशों में भारत ने जिन परियोजनाओं के लिए ऋण बांटे हैं, उनसे उन देशों को काफी फायदा हुआ है और भारत जिन प्रोजेक्ट्स के लिए ऋण दे रहा है, वो डायरेक्ट आम लोगों से संबंधित है, जिसका फायदा भारत को अपने सॉफ्ट पावर को दिखाने में होता है, जैसा अफगानिस्तान के लोग भारत को काफी पसंद करते हैं।’
आपको बता दें, कि अफ्रीकी देश भारत के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण हैं और कई अफ्रीकी देश समुद्र मार्ग से सीधे भारत से जुड़ते हैं, लिहाजा भारत की कोशिश अफ्रीका में चीन को काउंटर करने की है, ताकि चीन उसका फायदा नहीं उठा सके।