अंटार्कटिका पृथ्वी का वो हिस्सा है, जहां हद से ज्यादा ठंड पड़ती है। यहां आपको हर ओर बर्फ ही बर्फ दिखाई देगी। इस बर्फ के नीचे सैकड़ों राज छिपे हैं, जिनमें से एक से अब पर्दा हट गया। 1911 में ब्रिटिश सरकार के आदेश पर एक शोध अभियान अंटार्कटिका में चला था। उस वक्त वहां पर एक झील दिखी, जिसके आसपास लाल रंग का पानी बह रहा था। जिसे खूनी झरना कहा जाने लगा। अब दशकों बाद उसके रंग से जुड़े रहस्य को सुलझा लिया गया है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक
अमेरिकी वैज्ञानिकों की एक टीम ने नवंबर 2006 से नवंबर 2018 के बीच तक खूनी झरने से नमूने लिए। इसके बाद शक्तिशाली इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप का उपयोग करके उसका विश्लेषण किया गया। जिसमें कई नई चीजें पता चलीं।
इस ग्लेशियर के नीचे आयरन सॉल्ट (लौह नमक) है
इसे फेरिक हाइड्रोक्साइड भी कहा जाता है। इसके अलावा ग्लेशियर के नीचे एक दूसरी दुनिया है, जिसमें कई सूक्ष्म जीव हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक इन्हीं की वजह से पानी खारा और खून की तरह लाल है। मामले में जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक केन लिवी ने बताया कि जैसे ही उन्होंने माइक्रोस्कोप से सैंपल को देखा, उनको छोटे नैनोस्फेयर नजर आए, जो लौह समृद्ध थे। ये छोटे कण प्राचीन रोगाणुओं से आते हैं और मानव लाल रक्त कोशिकाओं के आकार के सौवें हिस्से के बराबर होते हैं। वे खूनी ग्लेशियर में काफी ज्यादा मात्रा में हैं। वहीं लोहे के साथ-साथ, नैनोस्फेयर में सिलिकॉन, कैल्शियम, एल्युमीनियम और सोडियम भी मिले। ये अनूठी संरचना उस नमकीन पानी का हिस्सा है, जो ग्लेशियर से निकल रहा। सूरज की रोशनी और ऑक्सीजन की वजह से ये पानी को लाल और चमकदार कर देते हैं।
ब्रिटिश वैज्ञानिक के नाम पर है
इसका नाम जहां पर ये लाल झरना बहता है, उसे टेलर ग्लेशियर कहा जाता है। इसका नाम ब्रिटिश वैज्ञानिक थॉमस ग्रिफिथ टेलर के नाम पर रखा गया था। उन्होंने पहली बार 1910 से 1913 के अभियान के दौरान ब्लड फॉल्स को देखा था।