हरियाणा की सियासत के ताऊ चौधरी देवीलाल की विरासत संभाल रहे ‘चौटाला परिवार’ की एक समय तूती बोलती थी. चौटाला परिवार के बिना राज्य की सियासत अधूरी है. सिरसा के गांव तेजा खेड़ा में जन्मे चौधरी देवीलाल का हरियाणा की सियासत में ऊंचा स्थान रहा है.
चौधरी देवीलाल देश के उप प्रधानमंत्री बने और उनकी सियासी विरासत को ओम प्रकाश चौटाला ने आगे बढ़ाया, जो हरियाणा के सीएम रहे. देवीलाल के नाम की बदौलत उनकी चौथी पीढ़ी भले ही राजनीति में हो, लेकिन अब न सियासत के किंग रहे और न ही किंगमेकर. अब तो चौटाला परिवार को विधानसभा चुनाव में अपने सियासी वजूद को बचाए रखने की चुनौती है.
आजादी के बाद 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में चौधरी देवीलाल विधायक बने. इसके बाद सियासत में मुड़कर पीछे नहीं देखा. विधानसभा पहुंचकर उन्होंने भाषा के आधार पर अलग हरियाणा राज्य की मांग उठाई. पंजाब से हरियाणा बनने के बाद उनकी मुख्यमंत्री बंसीलाल से खटपट हो गई. मतभेद इतने गहरे हो गए कि 1968 के मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस ने देवीलाल को टिकट ही नहीं दिया. देवीलाल का कांग्रेस से मोहभंग हो गया और 1971 में उन्होंने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया. इसके बाद आपातकाल के दौर में सक्रिय हुए और जनता पार्टी के हरियाणा में सबसे बड़े नेता बनकर उभरे.
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देवीलाल ने हरियाणा की सियासत में ऐसी जड़े जमाई कि 1977 और फिर 1987 में हरियाणा के मुख्यमंत्री बने. इसके बाद वीपी सिंह और चंद्रशेखर की सरकार में उप प्रधानमंत्री रहे. देवीलाल के चार बेटे हुए, ओम प्रकाश चौटाला, रणजीत सिंह, प्रताप सिंह और जगदीश सिंह. इस तरह देवीलाल की सियासी वारिस बनकर ओम प्रकाश चौटाला उभरे. ओम प्रकाश चौटाला पांच बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने. बेसिक टीचर भर्ती घोटाला में घिर जाने के बाद ओम प्रकाश चौटाला की सियासत पर संकट गहरा गया. यही से चौटाला परिवार की सियासत फिर से उभर नहीं पाई और पार्टी भी दो धड़ों में बंट गई. हालांकि, चौटाला परिवार में उसी समय दरार पड़ गई थी, जब ओम प्रकाश चौटाला सियासत में आए थे.
चौटाला बनाम चौटाला परिवार
चौधरी देवीलाल ने अपना सियासी वारिस ओम प्रकाश चौटाला को चुना तो उनके दूसरे बेटे रणजीत चौटाला ने दूरी बना ली. इसके बाद रणजीत चौटाला ने अपने पिता की लोकदल से किनारा कर लिया और कांग्रेस में शामिल हो गए. सिरसा की रानियां विधानसभा क्षेत्र उनकी कर्मभूमि बनी. कांग्रेस से लेकर आजाद उम्मीदवार के तौर पर जीत दर्ज की. 2019 में उन्होंने निर्दलीय विधायक बनने के बाद हरियाणा की बीजेपी सरकार को समर्थन देकर मंत्री बने, लेकिन अब उन्हें अपने सियासी वजूद की चिंता सता रही है.
रणजीत चौटाला 2024 में सिरसा सीट से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन जीत हासिल नहीं कर सके. अब उनकी सीट रानियां सीट से गोपाल कांडा के भाई अपने बेटे को चुनाव लड़ाना चाहते हैं, जिसकी घोषणा भी कर दी है. ऐसे में रणजीत के लिए कशमकश की स्थिति बनी हुई है और बीजेपी से बागी हो चुके हैं. इस बार निर्दलीय चुनावी मैदान में उतरते हैं तो उन्हें अपनी जीत के लिए कड़ी मशक्कत करनी होगी.
चौटाला की पार्टी दो धड़ों में बंटी
ओम प्रकाश चौटाला ने अपने बेटे अजय चौटाला और अभय चौटाला को आगे बढ़ाया, लेकिन 2019 में इनेलो उनके दोनों ही बेटों में बंट गई. चौटाला के बड़े बेटे हैं अजय चौटाला ने अपने बेटे दुष्यंत चौटाला के साथ मिलकर अलग जनता जननायक पार्टी बना ली. 2019 के विधानसभा चुनाव में जेजेपी दस सीटें जीतने में कामयाब रही. इसके बदौलत दुष्यंत चौटाला ने बीजेपी को समर्थन देकर डिप्टी सीएम बने, लेकिन पांच साल के बाद जेजेपी के दस में सात विधायक पार्टी छोड़ चुके हैं. इस बार जेजेपी के लिए अपने सियासी वजूद को बचाए रखने का चुनाव है, जिसके लिए अजय से लेकर दुष्यंत चौटाला तक ने मोर्चा खोल रखा है. इसके बावजूद मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही है. ऐसे में देखना है कि जेजेपी विधानसभा चुनाव में क्या अपना सियासी वजूद बचाए रखने में सफल हो पाएगी.
इनेलो का बसपा से गठबंधन
ओम प्रकाश चौटाला ने अपनी राजनीतिक विरासत छोटे बेटे अभय सिंह चौटाला को सौंपी है. वह इनेलो के राष्ट्रीय महासचिव हैं. उन्होंने अपनी सियासी करियर की शुरुआत चौटाला गांव से की और उपसरपंच का चुनाव जीता. 2000 में वह सिरसा की रोड़ी सीट से विधायक चुने गए. इसके बाद 2009, 2014 और 2021 में विधायक चुने गए. इनेलो को दो धड़ों में बंट जाने के चलते अभय चौटाला के लिए अपने सियासी वजूद को बचाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है. पिछले विधानसभा चुनाव में इनेलो से सिर्फ अभय चौटाला ही जीतने में सफल रहे थे और 2024 के विधानसभा चुनाव में बसपा के साथ मिलकर किस्मत आजमा रहे हैं.
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अभय चौटाला ने हरियाणा में दलित और जाट समीकरण बनाकर चुनावी मैदान में उतरे हैं, लेकिन कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी लड़ाई बनती दिख रही है. ऐसे में अभय चौटाला के लिए खुद को साबित करने की ही नहीं बल्कि चौटाला परिवार की सियासी विरासत को बचाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है. अभय चौटाला की पत्नी कांता चौटाला भी राजनीति में उतर आई हैं. अपने पति के साथ कदम से कदम मिलाकर वह पार्टी की नीतियों का प्रचार करती हैं. ऐसे में देखना है कि अभय चौटाला इस बार क्या सियासी गुल खिलाते हैं.
आदित्य का बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ना लगभग तय
अभय चौटाला के चचेरे भाई आदित्य चौटाला भी विधायक बने हैं. देवीलाल के बेटे जगदीश चौटाला फिलहाल राजनीति से दूर रहे, लेकिन उनके बेटे आदित्य बीजेपी से जुड़े हैं. 2016 में उन्होंने अभय की पत्नी कांता चौटाला को जिला परिषद चुनाव में हराया था. 2019 में डबवाली विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें हार मिली. बीजेपी के प्रति उनकी सेवा को देखते हुए मनोहर सरकार ने उन्हें हरियाणा स्टेट एग्रीकल्चर मार्केटिंग बोर्ड की चेयरमैन नियुक्त किया. 2024 के विधानसभा चुनाव में उनका भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ना तय है. ऐसे में देखना है कि चौटाला परिवार की सियासत क्या करवट लेती है.