नई दिल्ली : शिवभक्तों के लिए महाशिवरात्रि से बड़ा कोई त्योहार नहीं। भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए भक्त पूरे साल इस दिन खास दिन का इंतजार करते हैं, लेकिन इस बार पंचांग भेद होने के कारण शिवरात्रि 13 फरवरी को मनाई जाए या 14 फरवरी को, इसे लेकर मतभिन्नता आ रही है। और इसीलिए लोग भी उलझन में हैं कि आखिर शिवरात्रि किस दिन मनाई जाए। इसे लेकर पंचांगों में मतभेद हो सकता है, लेकिन ज्योतिष के प्रमुख ग्रंथ निर्णय सिंधु के अनुसार क्या कहता है नियम, आइये जानते हैं:
महाशिवरात्रि को लेकर उलझन की स्थिति इसलिए बनी है क्योंकि शिवरात्रि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि को मनाने का विधान है। पंचांगों के अनुसार 13 फरवरी को पूरे दिन त्रयोदशी तिथि है, जो रात्रि 10.34 बजे तक रहेगी। इसके बाद चतुर्दशी तिथि लग जाएगी। जबकि 14 फरवरी को पूरे दिन चतुर्दशी तिथि रहेगी लेकिन मध्यरात्रि में 12.46 बजे अमावस्या प्रारंभ हो जाएगी।
ऐसी दुविधा की स्थिति में तिथि, व्रत और त्योहार का सही निर्णय करने में प्रमुख ग्रंथ निर्णय सिंधु राह दिखाता है। इसमें कहा गया है कि
परेद्युर्निशीथैकदेश-व्याप्तौ पूर्वेद्युः संपूर्णतद्व्याप्तौ पूर्वैव।
इसका अर्थ यह हुआ कि चतुर्दशी तिथि दूसरे दिन निशीथकाल में केवल कुछ ही समय के लिए हो और उससे पूर्व के दिन में हो तो पहले दिन ही यह व्रत किया जाना चाहिए। निशीथकाल रात्रि के मध्यभाग को कहा जाता है। इसके अनुसार निशीथकाल का समय 13 की रात्रि में ही प्रारंभ होगा और संपूर्ण समय तक रहेगा। जबकि 14 फरवरी को रात्रि में 12 बजकर 46 मिनट से अमावस्या प्रारंभ हो जाएगी, इसलिए वह निशीथकाल नहीं माना जाएगा। शास्त्रों का कथन है कि निशीथकाल कम से कम ढाई घटी यानी एक घंटा होना चाहिए। इसलिए महाशिवरात्रि 13 फरवरी को ही मनाया जाना शास्त्र सम्मत होगा।
13 को शिवरात्रि मनाना इस लिहाज से भी उत्तम है कि 13 को ही चतुर्दशी तिथि संपूर्ण रूप से निशीथ व्यापिनी रहेगी। इसके अलावा मंगलवार, रविवार को शिवरात्रि आए तो यह और अधिक फलदायी हो जाता है और मंगलवार 13 फरवरी को ही है, इसलिए भी 13 को शिवरात्रि मनाया जाना सर्वथा उचित है।