Punjab Lok Sabha Elections: पंजाब में संभवत: ऐसा पहली बार हो रहा है जब चुनावी मैदान में उतरे सभी दल बिना कोई गठबंधन बनाये अलग अलग चुनाव लड़ रहे हैं। पंजाब के चार प्रमुख दल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, शिरोमणि अकाली दल और भाजपा सभी एक दूसरे को चुनौती दे रहे हैं।
पंजाब की 13 लोकसभा सीटों के लिए अंतिम चरण 1 जून को मतदान है जिसके लिए नामांकन प्रक्रिया 7 मई से शुरू होगी। 25 साल से गठबंधन में चुनाव लड़ रहे अकाली दल और भाजपा एक दूसरे के खिलाफ मैदान में हैं, वहीं दिल्ली के साथ हरियाणा, गुजरात और असम में कांग्रेस से गठबंधन कर चुनाव लड़ रही आम आदमी पार्टी ने पंजाब में अकेले लड़ने का फैसला किया है।
गठबंधन न होने का सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा और अकाली दल को होता दिख रहा है। भाजपा और अकाली दल ने 1997 से लेकर 2019 तक सभी चुनाव साथ मिलकर लड़े। अगर 2019 का आंकड़ा देखें यो लोकसभा चुनाव में भाजपा को 2 सीटें (9.74 फीसद वोट), अकाली दल को 2 सीटें (27.76 फीसद वोट), आम आदमी पार्टी को 1 सीट (7.38 फीसद वोट) और कांग्रेस को 8 सीटें (40.12 फीसद वोट) मिली थीं।
इसलिए इस बार कांग्रेस के सामने जहां 2019 के प्रदर्शन को दोहराने की चुनौती है, वहीं आम आदमी पार्टी को विधानसभा चुनाव में मिले प्रचंड बहुमत को लोकसभा चुनाव में बरकरार रखना होगा। इसलिए पंजाब का यह चुनाव किसी भी दल के लिए आसान नहीं रहने वाला है। 2019 में भाजपा ने पंजाब की दो सीटों गुरूदासपुर और होशियारपुर से जीत दर्ज की थी। इस बार गुरूदासपुर से सनी देओल का टिकट काटकर दिनेश बब्बू को दिया गया है, वहीं होशियारपुर से मौजूदा सांसद सोमपाल की पत्नी को मैदान में उतारा है।
पंजाब में अकाली दल से गठबंधन टूटने के बाद भाजपा ने दूसरे दलों के नेताओं को दलबदल करवा कर टिकट देने की रणनीति बनाई है। अमृतसर से पूर्व राजदूत तरनजीत सिंह संधू को, दिल्ली से सांसद रहे पंजाबी गायक हसंराज हंस को फरीदकोट से, आप पार्टी सासंद सुशील कुमार रिेंकू को जालंधर से और कांग्रेस के लुधियाना से सासंद रवनीत सिंह बिट्टू को और पटियाला से कांग्रेस सांसद परणीत कौर को भाजपा ने मैदान में उतारा है। पंजाब में भाजपा अपने कैडर के दम पर नहीं बल्कि उम्मीदवार की अपनी लोकप्रियता के दम पर मैदान में है। भाजपा का शहरी इलाकों को छोड़कर प्रदेश में कोई बड़ा जनाधार नहीं है।