Russia-Ukraine War: पिछले साल फरवरी में यूक्रेन के खिलाफ सैन्य अभियान शुरू करने वाले रूस को पिछले करीब पौने दो सालों के युद्ध में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं। लेकिन, अब.. 24 फरवरी को शुरू हुए संघर्ष की शुरुआत के बाद पहली बार, रूस इस युद्ध की जीतने के बिल्कुल करीब पहुंचता हुआ दिखाई दे रहा है। शायद ये जीत बिल्कुल जल्द नहीं मिलने वाली है, लेकिन रूस अब ऐसी स्थिति में पहुंच गया है, जहां से उसे आखिरकार जीत हासिल हो जाएगी।
और इस जीत के पीछे रूस के ताकतवर राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ही हैं, जो अभी भी पहले की तरह ही शक्तिशाली हैं, और छह महीने से भी कम समय के बाद, पश्चिमी मीडिया वैगनर विद्रोह के दौरान, जिसने उनकी संभावित मौत की भविष्यवाणियां करने वाले खूब लेख लिखे थे, वो पुतिन की जीत की घोषणा करने के लिए मजबूर हो रहा है।
लेकिन बात जीत तक कैसे पहुंच चुकी है? और क्या यूक्रेन अब भी इस हारी हुई बाजी को पलट सकता है?
दोनों देशों की धैर्य की प्रबल परीक्षा
इस साल की शुरूआत से ही यूक्रेन ने जवाबी कार्रवाई को लेकर खूब हो-हल्ला मचाया और पश्चिमी मीडिया ने यूक्रेनी थाप पर खूब ढोल बजाए। पश्चिमी मीडिया ने हर एंगल से खबरें लिखीं, कि कैसे पुतिन इस युद्ध में हार जाएगे, कैसे यूक्रेन की जबावी कार्रवाई से रूसी सैनिकों युद्ध छोड़कर भागना पड़ेगा, लेकिन साल के अंत में अब पता चल रहा है, कि पश्चिमी मीडिया सिर्फ भोंपू बना हुआ था, असल में रूसी सैनिक अभी भी यूक्रेन में जमे हुए हैं और अब ये लड़ाई, धैर्य की हो चली है।
यूक्रेन का जवाबी हमला फेल हो चुका है। हालांकि, युद्ध के मैदान में रूसी हताहतों की संख्या यूक्रेन के मुकाबले काफी ज्यादा है, लेकिन रूस, जो एक बहुत बड़ा देश है, वो बड़े जख्म को झेलने की भी स्थिति में है। युद्ध की सामग्री लागत का भी यही हाल है। जबकि, रूसी अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है, पुतिन ने रूसी तेल राजस्व को सीमित करने की पश्चिम की योजना को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया है, युद्ध शुरू होने के बाद से यूक्रेन को अपने सकल घरेलू उत्पाद का 35 प्रतिशत तक का नुकसान हो चुका है। लब्बोलुआब यह है, कि युद्ध जितना लंबा खिंचता है, दोनों पक्षों के लिए यह उतना ही महंगा होता जाता है, लेकिन इन लागतों से निपटने के लिए रूसी पक्ष, यूक्रेन की तुलना में कहीं बेहतर स्थिति में मौजूद है। पश्चिम की कमजोर होती कसम अपना समर्थन जारी रखने के लिए पश्चिम की घटती भूख को देखते हुए यूक्रेन की सहनशक्ति विशेष रूप से संदिग्ध स्थिति में पहुंच चुकी है। अक्टूबर में रॉयटर्स/इप्सोस सर्वेक्षण में केवल 41 प्रतिशत रिस्पॉंडर ही इस कथन से सहमत थे, कि वाशिंगटन को “यूक्रेन को हथियार प्रदान करना जारी रखना चाहिए।” जो बाइडेन का 60 अरब डॉलर का फंडिंग पैकेज कांग्रेस में अटका हुआ है, और डोनाल्ड ट्रम्प, जो अगले साल उनके उत्तराधिकारी बनने के लिए बेहतर स्थिति में हैं, किसी भी अमेरिकी समर्थन को जारी रखने का विरोध कर रहे हैं। लिहाजा, जो बाइडेन ऐसी स्थिति में पहुंच चुके हैं, जहां से अब यूक्रेन की मदद कर पाना उनके लिए करीब करीब असंभव जैसा दिखने लगा है। महत्त्वपूर्ण बात यह है, कि यूरोप बहुत बेहतर प्रदर्शन नहीं कर रहा है। 50 मिलियन यूरो का सहायता पैकेज हंगरी और जर्मनी (बजटीय कारणों से) के साथ अटका हुआ है, और हाल ही में, इतालवी प्रधान मंत्री जियोर्जिया मेलोनी ने कहा, कि “यूरोप थक चुका है।” हाल ही में, अनाज निर्यात के मुद्दे पर यूक्रेन का पोलैंड के साथ भी गहरा मतभेद हो चुका है। द इकोनॉमिस्ट के हालिया संपादकीय में कहा गया है, कि “अपनी और यूक्रेन की खातिर, पश्चिम को तत्काल अपनी सुस्ती दूर करने की जरूरत है।”
सैन्य स्तर पर भी हारता यूक्रेन
हालांकि, बात सिर्फ सहनशक्ति और धैर्य के बारे में ही नहीं है, बल्कि ये मानव संसाधनों के बारे में भी है। मनोबल मायने रखता है, लगातार अपनी जान जोखिम में डालने वाले सैनिकों के साथ-साथ दैनिक कठिनाइयों का सामना करने वाले नागरिकों को यह विश्वास करना चाहिए, कि उनकी पीड़ा व्यर्थ नहीं होगी। लेकिन, इस मामले में भी कीव का प्रदर्शन मॉस्को से कहीं ज़्यादा ख़राब है।
रूसी युद्ध मशीन के लगातार दबाव और पश्चिम से कमजोर समर्थन के बीच, यूक्रेन में मूड कुछ हद तक निराशाजनक है। इस निराशा के साथ, एक समय एकजुट रही राजनीति में दरारें उभरने लगी हैं। राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की, अब वह प्रिय एकजुट करने वाली शक्ति नहीं रहे, जो पहले हुआ करते थे। घोटालों और भ्रष्टाचार के कारण उनकी छवि खराब हो रही है। और ग्रीष्मकालीन आक्रमण की शुरुआत में सेना द्वारा अपने ऊंचे वादों को पूरा करने में विफलता के बीच, युद्ध की थकान धीरे-धीरे, लेकिन निश्चित रूप से, राष्ट्र को जकड़ रही है। पुतिन बदल चुके हैं युद्ध की बाजी दूसरी तरफ, रूस और व्लादिमीर पुतिन शायद युद्ध की शुरुआत से भी बेहतर स्थिति में पहुंच चुके हैं। जैसा कि द इकोनॉमिस्ट के लेख में कहा गया है, कि पुतिन जीत रहे हैं, क्योंकि “उन्होंने घर पर अपनी स्थिति मजबूत कर ली है… आम रूसी युद्ध पसंद नहीं कर सकते हैं, लेकिन अब वे इसके अभ्यस्त हो गए हैं।”
अपने नागरिकों के लिए संघर्ष को “पश्चिम के खिलाफ अस्तित्व के लिए संघर्ष” बताकर पुतिन ने युद्ध के लिए उस हद तक समर्थन जुटा लिया है, जिसे पश्चिमी टिप्पणीकारों ने हाल तक संभव नहीं माना था।
यूक्रेन में जीत की राह पर रूस, मायने क्या हैं?
क्या यूक्रेन अब भी रूस की तुलना में युद्ध को अपने तरीसे से लड़ने और बाजी को अपनी तरफ पलटने की हैसियत में है? हां, लेकिन किसी चमत्कार के कारण नहीं, कि यह अपने आप सफल हो सकता है। बल्कि, इस समय, यूक्रेन पूरी तरह से या तो रूस में आंतरिक उथल-पुथल के कारण उसके युद्ध प्रयासों को विफल करने पर निर्भर है, या पश्चिम में अचानक राजनीतिक इच्छाशक्ति के उभरने से उसके समर्थन में कई गुना वृद्धि होने की उम्मीद कर सकता है। यानि, या तो पुतिन का शासन चला जाए, या फिर अमेरिका के साथ साथ यूरोप, एक बार फिर से पूरी ताकत के साथ उसके समर्थन में खड़ा हो जाए।
लेकिन, इसकी संभावना अब नहीं लगती है। हालांकि, करीब छह महीने पहले वैगनर के लड़ाके टैंक लेकर मॉस्को की तरफ कूच कर चुके थे और इसे पुतिन की कुर्सी का तख्तापलट माना गया और पश्चिमी टिप्पणीकारों ने तुरंत इसे, पुतिन शासन के असामयिक निधन की घोषणा कर दी थी। इस बारे में कई राय लिखी गईं, कि कैसे रूस को अराजकता में झोंक दिया जाएगा, और यह यूक्रेन के लिए अच्छा क्यों है। लेकिन पुतिन जीत गए। निकट भविष्य में उनके सत्ता में बने रहने की संभावना से किसी को अब इनकार नहीं है। जैसा कि द इकोनॉमिस्ट कहता है: “2025 तक युद्ध चलाने का दबाव पुतिन पर हावी होना शुरू हो सकता है। रूसियों में जबरन लामबंदी, मुद्रास्फीति और सामाजिक खर्च को सेना की ओर मोड़ने पर नाराजगी बढ़ सकती है। फिर भी केवल यह आशा करना, कि पुतिन का शासन ध्वस्त हो जाएगा, ये कोई नहीं कह सकता है। लिहाजा, अब युद्ध बहुत जल्द अंजाम की तरफ बढ़ निकला है, जिधर व्लादिमीर पुतिन को जीत के तख्त पर बैठा देखा जा सकता है।